वैज्ञानिकों ने बताई ब्लड प्लाज्मा की 'प्रभावी' उम्र, कहा- इतने दिनों में निष्क्रिय हो जाती है एंटीबॉडीज

वैज्ञानिकों ने बताई ब्लड प्लाज्मा की 'प्रभावी' उम्र, कहा- इतने दिनों में निष्क्रिय हो जाती है एंटीबॉडीज
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टोरंटो
की काट खोजने के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक वैक्सीन बनाने में जुटे हैं। संक्रमण शुरू होने के 10 महीने बाद भी अभी तक विश्व स्वास्थ्य संगठन ने किसी भी वैक्सीन को अपना एप्रूवल नहीं दिया है। भारत और अमेरिका समेत दुनियाभर के कई देश कोरोना वायरस का इलाज करने के लिए ब्लड का उपयोग कर रहे हैं। हाल में ही हुए एक रिसर्च में वैज्ञानिकों ने कोरोना संक्रमण से ठीक हुए लोगों के शरीर से निकाले गए ब्लड प्लाज्मा की प्रभावी उम्र का पता लगाया है।

3 महीने होती है प्लाज्मा की उम्र
कनाडा के क्यूबेक में एक रक्तदान केंद्र हेमा-क्यूबेक की रिसर्च टीम ने दावा किया है कि संक्रमण से ठीक हुए लोगों के खून से निकाले गए ब्लड प्लाज्मा की प्रभावी उम्र केवल 3 महीनें ही है। अगर इसके बाद किसी संक्रमित को इसकी डोज दी जाती है तो उसका कोई प्रभाव नहीं होगा। रिसर्चर्स ने इसके लिए कोरोना से ठीक हुए मरीजों के एक ग्रुप से प्लाज्मा को निकाला था। जिसके बाद उन्होंने पाया कि 3 महीने बाद उनके खून से एंटीबॉडी खत्म हो गए।

21 दिनों में आधी हुई एंटीबॉडीज
रिसर्चर ने यह भी कहा कि उन्होंने देखा कि खून के नमूनों से केवल 21 दिनों में ही एंटीबॉडीज की संख्या आधी हो गई थी। टीम ने सुझाव दिया कि इससे बचने के लिए कोरोना से ठीक हुए मरीजों के शरीर से जितनी जल्दी हो सके प्लाज्मा निकालकर संक्रमित व्यक्ति को दे देना चाहिए। इससे संक्रमित मरीज के शरीर में एंटीबॉडी का विकास तेजी से होगा।

अमेरिका में भी प्लाज्मा थेरेपी को लेकर विरोधाभास
अगस्त में यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने प्लाज्मा थेरेपी से इलाज को हरी झंडी दी थी। उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप के इस फैसले को कोरोना वायरस के इलाज के लिए ऐतिहारिक करार दिया था। वहीं, यूएस के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के एक पैनल ने बयान जारी कर कहा था कि प्लाज्मा थेरेपी से संक्रमित मरीजों के ठीक होने को लेकर उनके पास पर्याप्त डेटा नहीं है। इसलिए ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि इस थेरेपी से कोरोना का इलाज कितने प्रभावी ढंग से किया जा सकता है।

प्लाज्मा थेरेपी क्या है
कोरोना से ठीक हो चुके एक व्यक्ति के शरीर से निकाले गए खून से कोरोना पीड़ित चार अन्य लोगों का इलाज किया जा सकता है। प्लाज्मा थेरेपी सिस्टम इस धारणा पर काम करता है कि जो मरीज किसी संक्रमण से उबर कर ठीक हो जाते हैं उनके शरीर में वायरस के संक्रमण को बेअसर करने वाले प्रतिरोधी एंटीबॉडीज विकसित हो जाते हैं। इसके बाद उस वायरस से पीड़ित नए मरीजों के खून में पुराने ठीक हो चुके मरीज का खून डालकर इन एंटीबॉडीज के जरिए नए मरीज के शरीर में मौजूद वायरस को खत्म किया जा सकता है।

प्लाज्मा थेरपी कैसे काम करती है
जब कोई वायरस किसी व्यक्ति पर हमला करता है तो उसके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज कहे जाने वाले प्रोटीन विकसित करती है। अगर वायरस से संक्रमित किसी व्यक्ति के ब्लड में पर्याप्त मात्रा में एंटीबॉडीज विकसित होता है तो वह वायरस की वजह से होने वाली बीमारियों से ठीक हो सकता है। कान्वलेसन्ट प्लाज्मा थेरेपी के पीछे आइडिया यह है कि इस तरह की रोग प्रतिरोधक क्षमता ब्लड प्लाज्मा थेरेपी के जरिए एक स्वस्थ व्यक्ति से बीमार व्यक्ति के शरीर में ट्रांसफर की जा सकती है। कान्वलेसन्ट प्लाज्मा का मतलब कोविड-19 संक्रमण से ठीक हो चुके व्यक्ति से लिए गए ब्लड के एक अवयव से है। प्लाज्मा थेरेपी में बीमारी से ठीक हो चुके लोगों के एंटीबॉडीज से युक्त ब्लड का इस्तेमाल बीमार लोगों को ठीक करने में किया जाता है।

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