चीन की लालच से बर्बादी की कगार पर इस देश का पर्यावरण, जंगल-जमीन और जानवरों पर बुरा असर

चीन की लालच से बर्बादी की कगार पर इस देश का पर्यावरण, जंगल-जमीन और जानवरों पर बुरा असर
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हरारे
चीन इन दिनों तेजी से अपने कर्ज और लालच के जाल में दुनिया के गरीब देशों को फंसा रहा है। ड्रैगन की इस डेट ट्रैप डिप्लोमेसी के चक्कर में कई देश बर्बाद होने की ओर आगे बढ़ रहे हैं। अभी तक चीन की नजर खास तौर पर एशियाई देशों पर ही सीमित थी, लेकिन अब अफ्रीका का एक देश चीन के लालच के चक्कर में बर्बादी की कगार पर खड़ा है। इस देश में चीन के कारण न सिर्फ जमीन बल्कि जानवर और जंगल भी खतरे का सामना कर रहे हैं।

जिंबाब्वे पर कैसे पड़ी चीन की नजर
जिंबाब्वे अफ्रीका महाद्वीप के मध्य में स्थित है जहां दुनिया के सबसे बेहतरीन किस्म का कोयला पाया जाता है। इसके बावजूद जिंबाब्वे की बड़ी आबादी गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर करती है। चीन ने अपनी ऊर्जा संबंधी जरूरतों को पूरा करने और अफ्रीका में अपनी पैठ को मजबूत बनाने के लिए जिंबाब्वे के साथ द्विपक्षीय संबंध विकसित किए। जिंबाब्वे को भी विदेशी निवेश और फंड की जरूरत थी। पैसों के बदले इस देश ने अपनी कई कोयला की खानों को चीन को सौंप दिया।

चीन ने जिंबाब्वे के प्राकृतिक संसाधनों का किया दोहन
चीन की सरकारी कोयला कंपनियां जेनक्सिन कोल माइनिंग ग्रुप और एफ्रोक्लाइन स्मेल्टिंग ने जिंबाब्वे के प्राकृतिक संसाधनों का जमकर दोहन किया है। जिसके कारण वहां, जंगल, जानवर और जमीन को भारी नुकसान पहुंचा है। इस देश के कई पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने चीनी कंपनियों के खिलाफ कई आंदोलन चलाए, लेकिन सरकार ने उन आंदोलनों को कुचल कर रख दिया।

जिंबाब्वे के नेशनल पार्ट में कोयला खोदेगा चीन
अब ये कंपनियां जिंबाब्वे के ह्वांगे नेशनल पार्क में कोयला की खुदाई करने की योजना बना रही हैं। यह पार्क जैव विविधता और जंगली जानवरों के आवास के कारण दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इस जंगल में लगभग 40 हजार अफ्रीकी हाथी रहते हैं। इसके अलावा यहां दुनिया में लुप्तप्राय हो चुके काले राइनो भी पाए जाते हैं। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि अगर जिंबाब्वे की सरकार इस इलाके में खनन की अनुमति देती है तो इससे न सिर्फ जिंबाब्वे बल्कि अफ्रीका के पर्यावरण को भी भारी नुकसान पहुंचेगा।

पर्यावरण को पहुंचेगा भारी नुकसान
3 सितंबर को ह्वांगे नेशनल पार्क में खनन की खबर ने दुनियाभर में तहलका मचा दिया। जिसके बाद आनन फानन में जिंबाब्वे की सरकार ने इस प्रोजक्ट पर प्रतिबंध का ऐलान कर दिया। सरकार ने यह भी कहा कि देश के सभी राष्ट्रीय उद्यानों में खनन गतिविधियों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया जाएगा। इस खबर से सरकार ने अंतरराष्ट्रीय जगत को ऊपरी तौर पर खुश कर दिया।

जिंबाब्वे की सरकार ने अपने ही लोगों से खेला गेम
लेकिन जमीन पर जिंबाब्वे की सरकार ने अलग ही गेम खेला है। इस मंगलवार को हरारे की हाईकोर्ट ने इन दोनों चीनी कंपनियों के खिलाफ दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया। जिसका अर्थ है कि इन कंपनियों के खनन के अधिकार पहले की तरह बने हुए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार ने क्या झूठा ऐलान किया था? सरकार ने ऐलान के हफ्ते भर बाद भी इस संबंध में कोई संसदीय या विधायी कागजात को पेश नहीं किया गया है।

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