पैंगोंग में भारतीय जवानों की बढ़त से खौफ में चीन, बातचीत में छिपी है ड्रैगन की कुटिल चाल
लद्दाख संकट को सुलझाने के लिए भारत और चीन के बीच जारी वार्ता एक बार फिर से बेनतीजा रही। भारतीय वार्ताकार पूर्वी लद्दाख में सभी विवादित जगहों से सेना को हटाने और यथास्थिति की बहाली की मांग कर रहे हैं। उधर, चीन लगातार इस बात पर जोर दे रहा है कि भारत पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे पर स्थित रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण ऊंचाई वाली चोटियों से अपने जवानों को हटाए।
हालांकि भारत और चीन के बीच कमांडर लेवल की छठे दौर की मीटिंग में महत्वपूर्ण सहमति भी बनी है। दोनों ही देशों के सैन्य अधिकारियों ने इस बात पर सहमति जताई है कि भारत और चीन अग्रिम चौकियों पर अब और ज्यादा सैनिक नहीं भेजेंगे। इसके अलावा दोनों पक्ष आपसी समस्याओं को उचित ढंग से सुलझाने, सीमावर्ती क्षेत्रों में संयुक्त रूप से शांति सुनिश्चित करने के लिए व्यावहारिक कदम उठाएंगे। ऐसे में माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में बॉर्डर पर बढ़े तनाव में कमी आएगी।
‘जमीनी स्तर पर स्थिति को एकतरफा बदलने से परहेज’
इस साझा बयान में कहा गया है कि दोनों देश सातवें दौर की जल्द से जल्द वार्ता करेंगे और जमीनी स्तर पर समस्या को सुलझाने के लिए व्यवहारिक कदम उठाएंगे। साथ ही सीमाई इलाके में संयुक्त रूप से शांति और सद्भाव की रक्षा करेंगे। बताया जा रहा है कि दोनों ही पक्षों के बीच मोल्डो में करीब 13 घंटे तक बातचीत चली लेकिन किसी विषय पर सहमति नहीं बन पाई। साझा बयान में कहा गया है कि दोनों ही पक्ष अग्रिम मोर्चों पर और ज्यादा सैनिक नहीं भेजेंगे, जमीनी स्तर पर स्थिति को एकतरफा बदलने से परहेज करेंगे और ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे जिससे स्थिति और ज्यादा बिगड़ जाए।
इस बीच एक भारतीय अधिकारी ने कहा है कि पहले हम चीनी सेना से मध्य अप्रैल की स्थिति को बहाल करने के लिए कहते थे लेकिन अब पीएलए यह मांग कर रही है कि पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे के ऊंचाई वाले इलाके से हट जाएं। बता दें कि इन भारतीय चोटियों पर भारत ने 29 अगस्त को अपनी तैनाती की थी। इसके बाद से लगातार चीन भारतीय सैनिकों को हटाने के प्रयास कर रहा है। इन चोटियों से भारतीय जवान चीन के इलाके पर निगरानी कर रहा और मोल्डो चीनी सैन्य ठिकाना भी भारतीय जवानों की जद में है।
संयुक्त बयान को लेकर विशेषज्ञों ने भारत को आगाह किया
उधर, विशेषज्ञों ने इस संयुक्त बयान को लेकर भारत आगाह किया है। एमआईटी में प्रफेसर विपिन नारंग कहते हैं कि यह संयुक्त बयान वर्तमान स्थिति की बहाली की बात करता है जिससे चीन को बहुत ज्यादा फायदा होगा। वहीं चीनी मामलों के एक अन्य विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी कहते हैं कि चीन की यह आक्रामकता लंबी तैयारी का नतीजा है। इसका एक संकेतक एलएसी पर आधारभूत ढांचे का निर्माण था। दूसरा संकेतक मोदी के शिजिनपिंग के स्वागत के बाद पैंगोंग झील में मशीन गन से लैस नौका की तैनाती थी। भारत ने इन चेतावनी संकेतों को कैसे मिस कर दिया।
चेलानी ने कहा कि भारत के खिलाफ चीन की वर्तमान रणनीति जबरदस्ती करना और ब्लैकमेल करना है। इसमें अक्साई चिन इलाके में परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम मध्यम दूरी की मिसाइल की तैनाती शामिल है। साथ ही दुनिया को यह बताना कि स्थिति नियंत्रण में है। इस साझा बयान में यही है और इसमें प्रगति की कमी है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि इस साझा बयान से यह साबित होता है कि सेनाओं को हटाने को लेकर दोनों ही देशों में गंभीर मतभेद है।