लाठी हत्या का हथियार नहीं, यह ग्रामीणों की पहचान:सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि लाठी ग्रामीणों की पहचान से जुड़ी है, इसे हत्या का हथियार नहीं कह सकते हैं। यह टिपण्णी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हत्या की एक धारा को गैर इरादतन हत्या की धारा में बदल दिया। वहीं अदालत ने आरोपी के जेल में रहने की अवधि को सजा मानते हुए उसे तुरंत रिहा करने का आदेश भी दिया।
छत्तीसगढ़ के एक मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस आरएफ नरीमन की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय बेंच ने बृहस्पतिवार को अपने आदेश में कहा कि गांव के लोग लाठी लेकर चलते हैं, जो उनकी पहचान है। यह तथ्य है कि लाठी को हमले के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन इसे सामान्य तौर पर हमला करने या हमले का हथियार नहीं माना जा सकता। जस्टिस आरएफ नरीमन, इंदिरा बनर्जी और नवीन सिन्हा की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि मामले में आरोपी ने लाठी से सिर पर हमला किया। इसके बाद पीडि़त की दो दिन बाद मौत हो गई। ऐसे मामले में अदालत को हत्या के पीछे के कारण का पता लगाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत को मारपीट के तरीके, हत्या की प्रकृति, चोटों की संख्या समेत कई अन्य तथ्यों पर विचार करने के बाद ही कोई फैसला देना चाहिए। गौरतलब है कि आरोपी जुगत राम ने भूमि विवाद में एक व्यक्ति के सिर पर लाठी से हमला किया था, हमले की वजह से पीडि़त की दो दिन बाद अस्पताल में मौत हो गई। इसके बाद साल 2004 में आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। पुलिस ने धारा 302 के तहत मामला दर्ज किया और फिर सेशन कोर्ट ने जुगत राम को उम्रकैद की सजा सुना दी। इसके बाद हाईकोर्ट ने भी इस सजा को बरकरार रखा। हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि यह हत्या पहले से योजना बना कर नहीं की गई थी बल्कि गुस्से में हो गई थी, हालांकि अदालत ने धारा 302 के तहत सजा बरकरार रखी थी जिसके बाद इस फैसले को आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।