WORLD OZONE DAY: धरती से 15 किमी ऊपर Ozone Layer को बचाना क्यों है जरूरी, समझें

WORLD OZONE DAY: धरती से 15 किमी ऊपर Ozone Layer को बचाना क्यों है जरूरी, समझें
Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail

न्यूयॉर्क
हमारी धरती पर जीवन संभव इसलिए है क्योंकि यह सूरज से ऐसी दूरी पर स्थित है। सूरज की रोशनी और गर्मी की वजह से यहां जीवन पनपता है। हालांकि, सूरज से आने वाले रेडिएशन के ज्यादा होने से जीवों को नुकसान होता है। ओजोन धरती के वायुमंडल की एक पतली सतह है जो सूरज से आने वाली अल्ट्रावॉइलट रोशनी को सोखने का काम करती है। 16 सितंबर को इसी ओजोन लेयर की हमारे जीवन में अहमियत और उसे होने वाले खतरे को समझने और उसे बचाने के लिए गए काम को याद रखने के लिए मनाया जाता है।

क्या करती है ओजोन
ओजोन अल्ट्रावॉइलट लाइट को सोख लेता है। अगर ऐसा न हो तो UV जीवों की खाल से होकर DNA संरचना को प्रभावित कर सकता है। यहां तक कि UVA लाइट की वजह से स्किन कैंसर, मेलानोमा और उम्र से पहले बुढ़ापे जैसी बीमारियां हो सकती हैं। ओजोन लेयर सूरज से आने वाले 98% रेडिएशन को सोख लेता है।

परत को नुकसान से जीवों पर असर
कई जगहों पर यह परत काफी पतली होती जा रही है, जिसे ‘ओजोन छिद्र’ (Ozone Hole) कहते हैं। हालांकि, यह पूरी तरह छेद नहीं हैं। यह नुकसान सबसे ज्यादा ध्रुवों के पास है, दक्षिण ध्रुव पर इसका असर ज्यादा देखने को मिलता है। सतह के पतला होने से सूरज से ज्यादा अल्ट्रावॉइलट रोशनी धरती तक पहुंचने लगती है जिससे सभी जीवों पर बुरा असर पड़ता है। यह परत धरती से 15-30 किमी की ऊंचाई तक रहती है। इसकी मोटाई अलग जगहों पर अलग रहती है।

इंसानी गतिविधियों से नुकसान
ओजोन को नुकसान गाड़ियों-फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं के कारण पहुंचता है। इससे पेड़-पौधों को नुकसान होता है और इंसान को सांस संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। 1970 के दशक में वैज्ञानिकों ने पाया कि इंसानी गतिविधियों की वजह से ओजोन में छेद हो रहा है। ऐरोसॉल (aerosol) और फ्रिज-एसी में इस्तेमाल होने वाली गैसें ओजोन से रिएक्ट करके इस परत को पता करती जा रही थीं।

उठाए गए कई कदम
इसे लेकर वैज्ञानिकों ने चिंता जाहिर की और आखिरकार 1985 में ओजोन की रक्षा के लिए विएना कन्वेन्शन (Vienna Convention for the Protection of the ) पर साइन किया गया। इस कन्वेन्शन के Montreal Protocol के तहत सरकार, वैज्ञानिकों और इंडस्ट्री ने साथ मिलकर 99% तक ऐसी चीजों को बंद करने का फैसला किया जिनसे ओजोन को नुकसान होता है। Montreal Protocol की कोशिशों की वजह से इस नुकसान की गति में कमी आई है और उम्मीद है कि जो स्तर 1980 से पहले था वह 2050 तक हासिल किया जा सकेगा।

इस प्रोटोकॉल के सपॉर्ट में 2019 में बने Kigali Amendment की मदद से ऐसे हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs) और ग्रीनहाउस गैसों पर काबू करने की कोशिश है जिनसे जलवायु परिवर्तन हो सकता है और पर्यावरण को नुकसान हो सकता है।

Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail

WatchNews 24x7

Leave a Reply

Your email address will not be published.