चीन कैसे बनाता है इतना सस्ता सामान? जानवरों जैसे हालात में काम करते हैं कैदी
दुनियाभर में चीन हर तरीके के उत्पाद कम दाम पर बेचता है लेकिन इन सामान को बनाने वाले मजदूर कैसी हालत में रहते हैं, यह जानकर किसी के भी होश उड़ सकते हैं। चीन की जेलों में जो कैदी ये सामान बनाते हैं, उन्हें कोई पैसे नहीं मिलते और तय संख्या से कम सामान बनाने पर जेलगार्डों से सजा भी मिलती है। वहां काम कर चुकीं ली दियान्की ने The Epoch Times को बताया है कि शेन्यान्ग स्थित Liaoning Women’s Prison इंसानों के रहने लायक जगह नहीं है। ली बताती हैं कि गिरफ्तार करने के बाद जानवरों की तरह काम कराते हैं और उनके जैसा ही खाना भी खाने को देते हैं।
खाना-बाथरूम ब्रेक नहीं
यहां सस्ती ब्रा और पैजामे बनाए जाते हैं। कपड़ों के अलावा यहां एक्सपोर्ट के लिए नकली फूल से लेकर कॉस्मेटिक्स और हैलोवीन के आइटम बनाए जाते हैं। एक बार 60 वर्कर्स की एक टीम अपना काम पूरा नहीं कर पाई तो उन्हें तीन दिन लगातार बिना खाए, यहां तक कि बिना बाथरूम जाए लगातार काम कराया गया। झपकी आने पर गार्ड इलेक्ट्रिक बैटन से कैदियों को झटके तक दे दिया करते थे।
‘चीन की सप्लाई चेन इन्फेक्टेड’
अमेरिका के पूर्व डिप्लोमैट फ्रेड रोकाफोर्ट जो अब अंतरराष्ट्रीय लॉ फर्म हैरिस ब्रिकेन में काम करते हैं, उनका कहना है कि जेल और जबरन मजदूरी ने चीन की सप्लाई चेन को इनफेक्ट कर दिया है। फ्रेड 10 साल से ज्यादा चीन में कमर्शल वकील के तौर पर काम कर चुके हैं। इस दौरान वह फॉरन ब्रैंड्स की इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी की रक्षा और जबरन मजदूरी को लेकर 100 से ज्यादा ऑडिट कर चुके हैं।
‘विदेशी ब्रैंड के लिए काम करते हैं मजदूर’
उनका कहना है कि यह समस्या शिन्जिंयांग में जारी मानवाधिकार संकट से ज्यादा पुरानी है। उन्होंने बताया कि विदेशी कंपनियां चीन के सप्लायर्स को काम देती हैं जो जेल के कैदियों से काम कराने वाली कंपनियों या जेलों से ही कॉन्ट्रैक्ट करते हैं। जेलों के वॉर्डन कम दामों पर मजदूर उपलब्ध कराते हैं। विदेशी ब्रैंड आमतौर पर इसकी स्क्रूटिनी नहीं करते हैं कि कहीं जबरन मजदूरी तो नहीं कराई जा रही लेकिन हाल में इसे लेकर जागरूकता बढ़ी है।
‘सारी रात करना पड़ता है काम’
ली ने बताया कि विमिन्स प्रिजन में सैकड़ों कैदियों से कई यूनिट होते हैं जिनमें काम बांटा जाता है। ली जिस यूनिट में थीं वहां हर दिन 14 घंटे कपड़े बनवाए जाते थे। इसके बाद हर कैदी को 10-15 नकली फूलों के स्टेम बनाने होते थे। ये काम करते-करते आधी रात हो जाती थी और धीरे काम करने वाले लोग सारी रात जागते थे।
‘सांस में खींचने को मजबूर धुआं-प्लास्टिक’
दक्षिण कोरिया के लिए कॉस्मेटिक्स बनाने वाली यूनिट से निकलने वाले धुएं और महक से लोगों को सांस से जुड़ी परेशानियां होती थीं लेकिन गार्ड्स से कहने पर उन्हें सजा मिलती थी। यहां तक कि प्लास्टिस के सामान से निकलने वाले डस्ट से बचने के लिए गार्ड खुद मास्क पहनते थे लेकिन कैदियों को उसे सांस के साथ खींचना पड़ता था। इसके अलावा हैलोवीन (Halloween) की सजावट में लगने वाला सामान भी यहां बनाया जात था जिसे बाद में ली ने न्यूयॉर्क में इस्तेमाल होता था देखा।
ऐसे सुनाया दुनिया को दर्द
कहा जाता है कि किसी से अपना दर्द नहीं कह पा रहे कैदियों ने सामान में ही चिट्ठियां छिपानी शुरू कर दीं जो पश्चिमी देशों के ग्राहकों को मिलीं। तब चीन में हो रहे अत्याचार के बारे में दुनिया को पता चला। साल 2019 में चीन की सुपरमार्केट कंपनी टेस्को ने चीन के एक सप्लायर से काम वापस ले लिया। इस केस में कैदियों ने कंपनी के लिए बनाए क्रिसमस कार्ड के अंदर यह बताया था कि उनके ऊपर कैसी ज्यादती हो रही है।
‘वैश्विक आर्थिक ताकत ऐसे बन रहा चीन’
अमेरिका के वर्ल्ड ऑर्गनाइजेशन टू इन्वेस्टिगेट द परसिक्यूशन ऑफ फालुन गॉन्ग के डायरेक्टर वॉन्ग झियुआन ने बताया कि चीन में कैदियों से मजदूरी का काम देश की न्यायपालिका की जानकारी में हो रहा है और आर्थिक रूप से फैलता जा रहा है। पेइचिंग के वैश्विक आर्थिक लक्ष्य को पाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। इस संगठन की रिपोर्ट में 2019 में 681 ऐसी कंपनियों का खुलासा किया गया जो 30 प्रांतों और क्षेत्रों में कैदियों से मजदूरी कराती थीं। इनमें से कई सरकारी और कई सेना के अंतर्गत आती थीं। 2013 में औपचारिक रूप से लेबर कैंप को खत्म कर दिया गया लेकिन काम वहां आज भी जारी है। उन्हें अब जेल सिस्टम नाम दे दिया गया है।