'इंडिया फर्स्ट' नीति पर कायम, चीन के साथ हंबनटोटा पोर्ट डील थी गलती: श्रीलंका

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कोलंबो
बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के नाम पर चीन दक्षिण एशियाई देशों को कर्ज देकर उन्हें अपने जाल में फंसा रहा है और अपनी सैन्य ताकत को मजबूत बनाता जा रहा है। यह बात धीरे-धीरे दुनिया को समझ में आने लगी है। शायद यही वजह है कि श्रीलंका के विदेश सचिव जयनाथ कोलंबगे ने माना है कि चीन को हंबनटोटा का बंदरगाह 99 साल की लीज पर देना एक गलती थी। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि श्रीलंका ‘इंडिया फर्स्ट’ नीति से पीछे नहीं हटेगा।

‘भारत के लिए खतरा नहीं बन सकते’
एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में जयनाथ ने कहा कि श्रीलंका अपनी विदेश नीति को तटस्थ रखना चाहता है लेकिन अपनी ‘इंडिया फर्स्ट’ पॉलिसी को छोड़ने वाला नहीं है। उन्होंने रणनीतिक और सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को लेकर यह बात कही है। उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रपति गोटबया राजपक्षे ने कहा है कि रणनीतिक सुरक्षा के मामले में हम इंडिया फर्स्ट की पॉलिसी अपनाएंगे। हम भारत के लिए सुरक्षा का खतरा नहीं हो सकते और हमको होना भी नहीं है। हमें भारत से फायदा लेना है।’

‘भारत के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होंगे’
जयनाथ ने आगे कहा कि राष्ट्रपति ने साफ कहा है कि जहां तक सुरक्षा की बात है, आप हमारी पहली प्राथमिकता हैं लेकिन हमें आर्थिक संपन्नता के लिए दूसरों के साथ डील करना है।’ उन्होंने यह भी कहा है कि तटस्थ विदेश नीति अपनाने के साथ ही श्रीलंका भारत के रणनीतिक हितों की रक्षा करेगा। उन्होंने कहा कि श्रीलंका यह स्वीकार नहीं कर सकता, उसे स्वीकार नहीं करना चाहिए और वह स्वीकार नहीं करेगा कि उसका इस्तेमाल किसी अन्य देश-विशेष तौर पर भारत के खिलाफ कुछ करने के लिए किया जाए।

‘चीन को पोर्ट देना गलती थी’
विदेश सचिव ने चीन को 99 साल की लीज पर देना एक गलती बताया। उन्होंने कहा कि श्रीलंका ने हबंनटोटा की पेशकश पहले भारत को की थी। उन्होंने कहा, ‘भारत ने जिस भी कारण से उसे नहीं लिया और तब वह एक चीनी कंपनी को गया।’ कोलंबेज ने कहा, ‘अब हमने हंबनटोटा बंदरगाह की 85 प्रतिशत हिस्सेदारी चाइना मर्चेंट होल्डिंग कंपनी को दे दी है। वह व्यावसायिक गतिविधियों तक सीमित होना चाहिए। यह सैन्य उद्देश्यों के लिए बिल्कुल भी नहीं है।’

कर्ज नहीं चुका पाया था लंका
दरअसल, चीन की इंडो पैसिफिक एक्सपेंशन और बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में चीन ने श्रीलंका को भी शामिल किया है। श्रीलंका ने चीन का कर्ज न चुका पाने के कारण हंबनटोटा बंदरगाह चीन की मर्चेंट पोर्ट होल्डिंग्स लिमिटेड कंपनी को 1.12 अरब डॉलर में साल 2017 में 99 साल के लिए लीज पर दे दिया था। हालांकि अब श्रीलंका इस पोर्ट को वापस चाहता है।

चीनी नेवल बेस बनने का शक
महिंदा राजपक्षे के कार्यकाल में श्रीलंका और चीन के बीच नजदीकियां खूब बढ़ी। श्रीलंका ने विकास के नाम पर चीन से खूब कर्ज लिया। लेकिन, जब उसे चुकाने की बारी आई तो श्रीलंका के पास कुछ भी नहीं बचा। जिसके बाद हंबनटोटा पोर्ट और 15,000 एकड़ जगह एक इंडस्ट्रियल जोन के लिए चीन को सौंपना पड़ा। अब आशंका जताई जा रही है कि हिंद महासागर में अपनी गतिविधियों को जारी रखने के लिए चीन इसे बतौर नेवल बेस भी प्रयोग कर सकता है।

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