डॉक्टरों से मारपीट की, तो हो सकती है जेल
रांची: सरकार द्वारा डॉक्टरों को सुरक्षा देने के लिए तैयार कानून (मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट) में उनके साथ मारपीट करने या काम में बाधा पहुंचाने को गैर जमानती करार दिया गया है. कानून में डाॅक्टरों से यह अपेक्षा की गयी है कि वह मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया(एमसीआइ) के दिशा निर्देशों का पालन करेंगे. उन पर एमसीआइ के दिशा निर्देशों को मानने की बाध्यता नहीं है. सरकार इसे विधानसभा से पारित कराने के बाद लागू करेगी.
कानून के प्रारूप में डॉक्टर, नर्स, पारा मेडिकल स्टाफ के साथ साथ नर्सिंग और मेडिकल कॉलेज के छात्र छात्राओं के साथ मारपीट करने या उनके काम मे बाधा पहुंचाने को ‘हिंसक गतिविधि’ के रूप में परिभाषित किया गया है. साथ ही इसे गैर जमानती करार दिया गया है. अर्थात कोई अादमी डॉक्टर, नर्स और पारा मेडिकल स्टाफ के साथ मारपीट लड़ाई झगड़ा या काम में बाधा डालेेगा, तो उसे थाने से जमानत नहीं मिलेगी. उसे जेल जाना होगा. जमानत देने या नहीं देने का मामला अदालत पर निर्भर होगा.
साथ ही उसे तीन साल की सजा होगी और 50 हजार रुपये दंड लगेगा. दूसरी तरफ, अगर कोई डॉक्टर किसी मरीज के परिजनों के साथ मारपीट या लड़ाई झगड़ा करे तो आइपीसी की धारा 323, 324 के आरोप में थाने के ही जमानत मिल जायेगी. सिर्फ इतना ही नहीं अगर मरीज के परिजनों या किसी अन्य द्वारा क्लिनिकल स्टैबलिशमेंट एक्ट के तहत निबंधित चिकित्सा सेवा संस्थान जैसे निजी अस्पताल, नर्सिंग होम आदि की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर उसे इसकी भरपाई करनी होगी. इस मद में नुकसान की दोगुनी रकम की वसूली की जायेगी.
बकाये के नाम पर नहीं रोक सकेंगे लाश : सरकार ने डॉक्टरों और चिकित्सा सेवा से जुड़े लोगों की सुरक्षा के लिए बनाये गये नियम में मरीज और उनके परिजनों के हितों की बात भी की है. इसमें डॉक्टरों व चिकित्सा सेवा संस्थानों पर एमसीआइ के दिशा निर्देशों को मानने की बाध्यता नहीं है. इस मामले में डॉक्टरों व चिकित्सा संंस्थानों से यह उम्मीद की गयी है कि वे एमसीआइ के दिशा निर्देशों का पालन करेंगे. मरीज या मरीज के परिजनों को चिकित्सा से संबंधित लिखित सूचना देन को बाध्यकारी करार दिया गया है. इलाज के दौरान किसी मरीज की मौत होने पर लाश तत्काल उसके परिजनों को सौंप देने का प्रावधान है. बकाये के नाम पर लाश को रोका नहीं जा सकेगा.