सेना के स्वभाव में इंसानियत, शराफत: आर्मी चीफ
जनरल रावत ने कहा, ‘भारतीय सशस्त्र बल बेहद अनुशासित हैं और वे मानवाधिकार कानूनों और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का अत्यधिक सम्मान करते हैं। भारतीय सशस्त्र बल न केवल अपने लोगों के मानवाधिकारों का संरक्षण सुनिश्चित करते हैं, बल्कि दुश्मनों के मानवाधिकारों की भी रक्षा करते हैं और युद्ध बंदियों के साथ भी जिनेवा संधि के अनुसार व्यवहार करते हैं।’
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एक दिन पहले सेना प्रमुख ने संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन का नेतृत्व करने वालों की सार्वजनिक तौर पर आलोचना की थी और कहा था कि नेतृत्व करना लोगों को आगजनी और हिंसा के लिए उकसाना नहीं होता है। उनके इस बयान की काफी आलोचना हुई। एनएचआरसी के कार्यक्रम में रावत ने कहा कि सशस्त्र बलों के स्वभाव में ‘इंसानियत’ और ‘शराफत’ है और कहा कि वे ‘पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष’ हैं।
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आर्मी चीफ ने कहा, ‘चुनौती युद्ध नीति में बदलाव होना और तकनीक का आविष्कार होना है।’ उन्होंने कहा, ‘आतंकवाद निरोधक और उग्रवाद निरोधक अभियानों में लोगों का दिल जीतने होगा।’ जनरल रावत ने कहा कि सेना मुख्यालय ने 1993 में ‘मानवाधिकार प्रकोष्ठ’ बनाए थे जिसे अब निदेशालय स्तर तक उन्नयन किया जा रहा है जिसके प्रमुख अतिरिक्त महानिदेशक होंगे।
सेना प्रमुख ने कहा कि सशस्त्र बलों के खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघन की शिकायतों का समाधान करने के लिए इसमें पुलिसकर्मी भी होंगे और वे संबंधित जांच में सहयोग करेंगे। रावत ने कहा कि अक्टूबर में सैन्य पुलिस बल में महिला कर्मियों की भर्ती करने की नई पहल शुरू की गई। सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (AFSPA) का जिक्र करते हुए सेना प्रमुख ने कहा कि यह कानून ‘सेना को वहीं ताकत देता है जो पुलिस और सीआरपीएफ’ को तलाशी और जांच अभियानों में मिलता है। एनएचआरसी के सदस्य जस्टिस पी. सी. पंत ने मानवाधिकारों की रक्षा करने वाले विभिन्न कानूनों के बारे में विस्तार से जानकारी दी।