जाने क्या है भद्र-योग और राज योग

जाने क्या है भद्र-योग और राज योग
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रायपुर ,मनुष्य जीवन पूरी तरह ग्रहो के प्रभाव पर टिका है, कुंडली में जिस तरह के ग्रह योग निर्मित होते है उसी तरह का जीवन प्राप्त होता है , हर कोई जीवन को सफल और बेहतर बनाने के लिए अपनी तरफ से हरसंभव प्रयास करता है परन्तु जिस स्तर के ग्रह योग कुंडली में निर्मित होते है उस स्तर तक की ही सफलता जीवन में मिलती है । हर किसी की आकांक्षा अच्छे रहन सहन के साथ साथ समाज में मान-सम्मान और उच्च पद एवं प्रतिष्ठा की होती है परन्तु उनके लिए कुंडली में ग्रह योग उपस्थित होना आवश्यक है, ज्योतिष के मूलं ग्रंथों में कुछ महत्वपूर्ण ग्रह योग बताये गए है ,उनमे से ये कुछ प्रमुख ग्रह योग है जो उच्च दर्जे की सफलता अर्थात मजबूत आर्थिक स्थिति, सुख सुविधाएं, उच्च पद और सम्मान में विशेष प्रतिष्ठा दिलाते है।
जानिए क्या है ये ग्रह योग और साथ ही ये भी जानिए की किन परिस्थितियों में ये फल प्रदान नहीं करते :-

गज केसरी योग

गुरु और चन्द्रमा अगर एक दूसरे के साथ या एक दूसरे से केंद्र स्थान अर्थात 1, 4, 7 और 10 वें स्थान में हो तो गजकेशरी योग निर्मित होता है। ये योग समाज में एक विशेष प्रतिष्ठा प्रदान करता है, इस योग के साथ जन्मे व्यक्ति की ज्ञान अर्जन और अध्ययन की तरफ विशेष रूचि होती है , धार्मिक प्रवृत्ति वाले ये व्यक्ति समाज एवं धर्म के उत्थान की दिशा में वो विशेष कार्य करते है। शहर /समाज या ग्राम के प्रबुद्ध व्यक्तियों में गिने जाने ये लोग आजीविका के रूप में किसी बड़े संस्थान के मुखिया होते है।
इस योग का फल गुरु और चन्द्र की मजबूती और कुंडली में स्थित प्रमुख ग्रह जैसे लग्न और नवम भाव के स्वामी की मजबूती पर निर्भर करती है।

महाराज योग

आज की परिभाषा में सुख सुविधाओं और सामाजिक प्रतिष्ठा से पूर्ण जीवन को कुंडली में स्थित राज योग का फल कहा जा सकता है, परन्तु उच्च दर्जे का पद, अति विशेष प्रतिष्ठा और सामाजिक व्यवस्था चलाने हेतु शक्तिया अधीन हो तो वो महाराज योग कहलाता है।

जन्म कुंडली में लग्न और पंचम भाव मजबूत स्थिति में हो और भावो के अलावा इन किसी अन्य दुर्भाव के स्वामी ना हो और एक साथ किसी केंद्र या त्रिकोण स्थान में हो ये महाराज योग निर्मित होता है , यही परिस्थिति तब भी निर्मित होती है जब आत्मकारक ग्रह (कुंडली में सर्वाधिक अंशों वाला ग्रह) और पुत्रकारक ग्रह (कुंडली में पांचवा सर्वाधिक अंशों वाला ग्रह) मजबूत स्थिति में केंद्र या त्रिकोण स्थिति में हो।
इन ग्रहो का नवमांश में नीच की स्थिति में होने पर या छठे , आठवें या बारहवे के स्वामी होने की स्थिति में ये योग कमजोर होता है।

धर्मकर्माधिपति योग

धर्मकर्माधिपति योग को ज्योतिषीय ग्रंथो में अत्यन्त महत्वपूर्ण योग कहा गया है , इस योग के साथ जन्मा व्यक्ति धर्म और समाजसेवा के क्षेत्र में कोई बड़ा और महत्वपूर्ण कार्य करते हुए किसी सामाजिक संस्था का मुखिया या किसी महत्वपूर्ण पद को प्राप्त करने के साथ विशेष ख्याति अर्जित करता है।

नवम भाव जन्म कुंडली का धर्म का भाव होता है और दशम भाव कर्म स्थान कहलाता है जब इन दोनों भावो के स्वामी ग्रह एक दूसरे के स्थान परिवर्तन कर रहे हो , या किसी केंद्र और त्रिकोण स्थान में हो या मजबूत स्थिति में एक दूसरे पर दृष्टि डाल रहे हो तब उस परिस्थिति में धर्मकर्माधिपति योग निर्मित होता है।

श्रीनाथ योग

श्रीनाथ योग के साथ जन्मे लोगो पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है, इन ये लोग बहुत ही सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत करते है, संतान सुख प्राप्त होता है और सभी मित्रो और सम्बन्धियों के चहेते होते है। इस योग के फलस्वरूप वे बहुत अच्छे वक्ता होते है और लक्ष्मी की भी उनपर विशेष कृपा होती है। सुखी और समृद्ध जीवन के लिए ये योग एक महत्वपूर्ण राजयोग है।
अगर सप्तम भाव का स्वामी दशम भाव में उच्च की स्थिति में नवम भाव के स्वामी के साथ हो तब श्रीनाथ योग निर्मित होता है। योग में सम्मिलित ग्रहों के नवमांश में नीच के होने और किसी अन्य दूषित ग्रह की दृष्टि से ये योग कमजोर होता है।

कलानिधि योग

इस योग के साथ जन्मे लोग उत्साह से भरपूर ऊर्जावान , बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व और स्वभाव के , शासन द्वारा सम्मानित, समृद्ध , बहुत से वाहनों के स्वामी और सभी प्रकार की बीमारियों से दूर एक स्वस्थ शरीर के स्वामी होते है।
जन्म कुंडली में गुरु द्वितीय या पंचम स्थान में शुक्र या बुध से दृष्ट होतो कलानिधि योग निर्मित होता है। एक अन्य परिस्थिति में अगर गुरु दो या पांचवे घर में शुक्र या बुध की राशि में स्थित हो तो तब भी इस योग के फल प्राप्त होते है।
इस योग के सही फल के लिए आवश्यक है की बुध और शुक्र भी किसी भी प्रकार के दोष से रहित हो।

मल्लिका योग

जैसा की मल्लिका योग के नाम से स्पष्ट होता है 7 ग्रहों का एक माल के रूप में एक साथ 7 विभिन्न भावो में स्थित होने को मल्लिका योग नाम दिया गया है , महत्वपूर्ण ये है की शास्त्रों में बारह तरह के मल्लिका योग का वर्णन किया गया है कुंडली के किस भाव से शुरू हो कर किस भाव तक ये योग निर्मित हो रहा है , वो विभिन्न प्रकार के मल्लिका योग होते है , उस सभी विभिन्न प्रकार के फल प्राप्त होते है , जैसे लग्न मल्लिका – उच्च पद और प्रतिष्ठा , धन मल्लिका– धनी और बड़े व्यवसाय का मालिक , विक्रम मल्लिका– हिम्मत वाला, साहसी और सेना या पुलिस का बड़ा अधिकारी , सुख मल्लिका – बहुत से वाहन और भवन का स्वामी और विभिन्न प्रकार के सुख भोगने वाला , पुत्र मल्लिका –अत्यन्त धार्मिक और प्रसिद्ध , शत्रु मल्लिका -कमजोर , गरीब और दुखी, कालत्र मल्लिका – सुखी वैवाहिक जीवन वाला और प्रसिद्ध , रनधर मल्लिका – गरीब और बेसहारा , भाग्य मल्लिका – धनि , प्रसिद्ध और दानी , कर्म मल्लिका – प्रसिद्ध, कर्मवीर और समाजसेवी , लाभ मल्लिका -बड़े मित्र वर्ग वाला और किसी कला का महारथी , व्यय मल्लिका -सम्माननीय , प्रतिष्ठित और दानी।

इंद्र योग

ये एक बहुत ही सुन्दर और महत्वपूर्ण योग है इस योग में जन्म लेनेे वाले बहुत साहसी , अति प्रसिद्ध और उच्च पद को प्राप्त करने वाले होते है , ये जीवन में सभी प्रकार का सुखो का भोग करते है।
इस योग फल के लिए आवश्यक है की लग्न भाव का स्वामी और नवम भाव का स्वामी मजबूत स्थिति में हो साथ ही 5 वे घर और 11वे घर के स्वामी ग्रह एक दूसरे के साथ राशि परिवर्तन कर रहे हो और चन्द्रमा भी 5 वे घर में हो।

राज योग

राजयोग किसी योग को नहीं कहा जा सकता , कुंडली में कई परिस्थितियों में राज योग निर्मित हो सकते है , इन योग के साथ जन्म लेने वाला व्यक्ति सुख सुविधाओं के साथ उच्च कोटि का जीवन व्यतीत करता है और समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। कुछ सुन्दर और महत्वपूर्ण राज योग :-

चन्द्र – मंगल महालक्ष्मी राज योग :- इस योग में जन्मे लोग दबंग किस्म के और बात चीत में स्पष्ट होते है। ये एक सुन्दर धन योग भी है।

विष्णु – लक्ष्मी योग: – केंद्र (1,4, 7, 10) और त्रिकोण स्थान (1 ,5 ,9) के स्वामी ग्रहों का साथ किसी शुभ स्थान में एकत्रित होना इस योग को निर्मित करता है ये योग सुखी -प्रतिष्ठित पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन और प्रचुर मात्र में धन उपलभ्ध करता है।

सिंहासन योग :- नवम या दशम भाव के स्वामी का द्वितीय या लग्न भाव में स्थित होना एक महत्वपूर्ण योग है और देश विदेश की यात्रा करने के साथ उच्च पद की प्राप्ति कराता है।

धन योग : – 11वे घर का दूसरे घर के साथ ग्रह सम्बन्ध प्रबल धन योग होता है , ऐसे लोग अत्यन्त धनि होते है।

वाहन योग : – शुक्र और चन्द्र का एक साथ चतुर्थ भाव में होना या चतुर्थ भाव पर या उसके स्वामी ग्रह पर दृष्टि देना प्रबल वाहन योग निर्मित करता है , ऐसे लोगो में वाहनो के प्रति विशेष आकर्षण रहता है और वे उनका उपभोग भी करते है।

पंच महापुरुष योग

ज्योतिषीय ग्रंथों में वैसे तो ग्रहों से बनने वाले अनेको योगो का वर्णन मिलता है पर उन में से कुछ योग अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है, ये योग एक सुन्दर और सफल व्यक्तित्व का निर्माण करते है जो समाज के कल्याण में भी अपनी भूमिका निभाता है , चूँकि ये पांच अलग अलग ग्रहों की केंद्र में होने से बनने वाले पांच योग हैं अतः पँच महापुरुष योग कहा जाता है।
पँच महापुरुष योग में – रूचक, भद्र, हंस, मालव्य और शश योग आते हैं मंगल से “रूचक” योग बनता है, बुध से “भद्र” , बृहस्पति से “हंस “, शुक्र से “मालव्य ” और शनि से “शश” योग बनता है इन पांच योगो का किसी कुंडली में एक साथ बनना तो दुर्लभ है परन्तु यदि पँच महापुरुष योग में से कोई एक या एक से अधिक भी कुंडली में बने तो एक खूबसूरत ऊर्जावान व्यक्तित्व का निर्माण करता है , हलाकि पौराणिक ज्योतिषीय ग्रंथो में इन्हे महापुरुष योग कहा गया है परन्तु अगर ये किसी स्त्री जातक की कुंडली में भी है तो उन्हें भी इसका पूर्ण फल प्राप्त होता है और वे अपनी ऊर्जा और प्रतिभा से समाज के उत्थान के लिए कोई विशेष कार्य करती है।

रूचक-योग – कुंडली में मंगल यदि स्वयं के स्वामित्व की राशि मेष , वृश्चिक या उच्च राशि मकर में होकर केंद्र (1 , 4 , 7 , 10 ) भाव में बैठा हो तो इसे रूचक महापुरुष योग कहते हैं। यदि कुंडली में रूचक योग बना हो तो ऐसा व्यक्ति हिम्मतवाला , शक्तिशाली , पराक्रमी, निडर व्यक्ति और अत्यधिक ऊर्जावान होता है , जो अपनी ऊर्जा को सकारात्मक कार्य में लगाता है । प्रतिस्पर्द्धा और साहसी कार्यों में हमेशा आगे रहता है ऐसे साथ ही शत्रु भय से मुक्त रहता है ।

रूचक योग वालो दृढ़ निश्चयिता रहता है और जो जिस बात को ठान ले उसे अवश्य पूरा करते है। इस योग के बनने पर व्यक्ति स्वास्थ्य उत्तम रहता है और प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है , अधिक आयु में भी तरुण अवस्था का प्रतीत होती है। रूचक योग वाला व्यक्ति कर्मप्रधान और मेहनती होता है।

भद्र-योग –

यदि बुद्धिमत्ता का ग्रह बुध स्वयं की या उच्च राशि और कन्या में होकर केंद्र (1 ,4 ,7,10 ) भाव में बैठा हो तो इसे भद्र महापुरुष योग कहते हैं। जब कुंडली में ये योग निर्मित होता हो तो ऐसा व्यक्ति बहुत बुद्धिमान, तर्कशील, दूरद्रष्टा और भाषण कला में निपुण होता है, बुद्धिमत्ता से सम्बंधित सभी कार्यो में इनकी दक्षता रहती है जैसे वाकपटुता , लेखन ,तुरंत निर्णय लेना , हास्य विनोद करना या किसी भी प्रकार की रचनात्मकता। भद्र योग वाला व्यक्ति बहुत व्यवहार कुशल होता है और किसी को भी अपनी तरफ आकर्षित करने में माहिर होते है।
आज के समय में ऐसे लोग बड़े मित्र वर्ग वाले और सबसे सतत संपर्क में रहने वाले होते है, इन्हे आधुनिक दूर संचार के संसाधनों का बहुत शौक होता है।

हंस-योग –

जब बृहस्पति स्वयं की राशि या उच्च राशि धनु , मीन, कर्क में होकर केंद्र (1 ,4 ,7 ,10 ) भाव में बैठा हो तो इसे हंस महापुरुष योग कहते है, इस योग के लोगो पर ईश्वर की विशेष कृपा होती है , ये लोग विवेकशील , सामाजिक प्रतिष्ठा वाले , ज्ञानार्जन के लोलुप और सूझ-बूझ से युक्त होते है, ऐसे लोगो को समाज में विशेष मान सम्मान प्राप्त होता है। इनका स्वभाव बड़ा संयमित और परिपक्व होता है, ऐसे व्यक्ति समस्याओं का समाधान बड़ी सरलता से ढूंढ लेते हैं और इनमे प्रबंधन अर्थात मैनेजमेंट की बहुत अच्छी कला छिपी होती है और ऐसे व्यक्ति बहुत अच्छे टीचर के गुण भी रखते हैं और अपने ज्ञान से बहुत नाम कमाते है।

मालव्य-योग–

जब शुक्र स्व या उच्च राशि वृषभ , तुला , मीन में होकर केंद्र (1, 4, 7 , 10 ) भाव में बैठा हो तो इसे मालव्य महापुरुष योग कहते हैं यदि कुंडली में ये योग हो तो ऐसे व्यक्ति को लक्ष्मी की विशेष कृपा से धन ,संपत्ति , ऐश्वर्य और वैभव की प्राप्ति होती है भौतिक सुख- सुविधाएँ प्राप्त होती हैं, ये सम्पत्तिवान और विशेष वाहनों का उपभोग करने वाले होते है , प्रायः इनका वैवाहिक जीवन सुखद होता है और स्त्री पक्ष से विशेष सहायता प्राप्त होती है । ऐसा व्यक्ति बहुत महत्वकांक्षी होता है और हमेशा बड़ी योजनाओं के बारे में ही सोचता है। मालव्य योग वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व बहुत आकर्षक होता है, ऐसे व्यक्ति में बहुत से कलात्मक गुण होते हैं और रचनात्मक चीजों में उसकी बहुत रुचि होती है। मालव्य योग वाले व्यक्ति को अच्छा संपत्ति और वाहन सुख प्राप्त होता है।

शश-योग –

जब शनि स्व या उच्च राशि मकर , कुम्भ, तुला में होकर केंद्र (1,4,7,10) भाव में हो तो इसे शश योग कहते हैं। यदि कुंडली में शश योग बना हो ऐसा व्यक्ति ऊँचे पदों पर कार्यरत होता है यह योग आजीविका की दृष्टि से बहुत शुभ होता है ऐसा व्यक्ति अपने कार्य क्षेत्र में बहुत उन्नति करता है, ये लोग बहुत गहरी सोच रखने वाले होते है , ऐसे व्यक्ति को आम जनता के बीच जबरदस्त प्रसिद्धि मिलती है और जीवन में सभी सुखो को प्राप्त करता है, शनि के शुभ प्रभाव से सभी प्रकार की दुःख , तकलीफों और रुकावटों का नाश होता है , शश योग वाला व्यक्ति अनुशासन प्रिय होता है और अपने कर्तव्यों का पूरी तरह निर्वाह करता है।

विशेष :-पंच महापुरुष योग वहां अधिक शक्तिशाली होता है जहां इन योग पर पाप ग्रह का प्रभाव नहीं होता है। अगर इन योग में राहू केतु आदि ग्रह हो या इस योग का निर्माण करने वाला ग्रह नवमांश में नीच की स्थिति में हो तो योग का शुभ प्रभाव समाप्त हो जाता है। अगर केंद्र में एक से अधिक शुभ पंच महापुरुष योग बनते हैं तो विशिष्ट राजयोग का निर्माण हो जाता है।
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भविष्यवक्ता
(पं.) डॉ. विश्वरँजन मिश्र, रायपुर
एम.ए.(ज्योतिष), बी.एड., पी.एच.डी.

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