मुजफ्फरनगर के पास भयानक हादसे का शिकार हुई उत्‍कल एक्‍सप्रेस

मुजफ्फरनगर के पास भयानक हादसे का शिकार हुई उत्‍कल एक्‍सप्रेस
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खतौली। पटरियों की खुली कपलिंग..किनारे रखीं मशीनें..सुबह से ही खटर-पटर, काम करते कर्मचारी। इस दृश्य को देख आसपास के लोग सुबह से ही सतर्क थे, लेकिन बुलेट ट्रेन दौड़ाने का सपना बुन रहा भारतीय रेल कैजुअल था। पटरियों पर कामकाज के दौरान जिस रफ्तार में उत्कल एक्सप्रेस दौड़ी, उससे यह घटना तो होनी ही थी। अब रेलवे भी मान रहा है कि चूक हो गई है। पटरी पर काम हो रहा था तो ट्रेन को कॉशन यानी सतर्क होने का संदेश दिया जाना चाहिए था।

उत्कल एक्सप्रेस मेरठ से खुली तो लगभग 45 मिनट लेट थी। रेलवे का नियम कहता है कि अगर आगे काम चल रहा है तो मेरठ कैंट स्टेशन से ट्रेन के चालक-गार्ड को कॉशन दिया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इसके चलते चालक रफ्तार से बढ़ता चला गया। शुरू के चार डिब्बे तो निकल गए, लेकिन पीछे के डिब्बे ताश के पत्तों की तरह बिखर गए। सबसे अधिक क्षतिग्रस्त कोच एस-2-3-4, पैंट्री कार, बी-1, ए-1 थे।

 पटरी किनारे पड़ी थी झंडी-मशीन

ट्रैक मरम्मत के समय ट्रेन को आगाह करने के लिए मौके से काफी दूर पहले ही लाल रंग का कपड़ा भी लगाया जाता है। घटनास्थल पर लाल रंग के कपड़े की झंडी और मरम्मत के काम आने वाली मशीन गवाही दे रही है कि काम तो चल रहा था, लेकिन खतरे के निशान लाल झंडे का इस्तेमाल नहीं हुआ। यही आरोप कुछ ही दूर पर काम करने वाले बेलदार अनीस, रिजवान और पास ही रहने वाले तनजीम का भी है। इन्होंने कहा कि सुबह भी काम करने वालों से हादसे की आशंका जताई थी, लेकिन अनसुना कर दिया गया

 पहली बार देखी घर में घुसी ट्रेन

भारतीय रेल के इतिहास में शायद यह पहली घटना है, जिसमें डिरेल होकर ट्रेन के डिब्बे पास के घर और स्कूल में घुस गए। मौके पर पहुंचे आम लोग हों या आला अधिकारी सभी की जुबां पर यही बात थी कि पहली बार देखी है कि पटरी से उतरकर ट्रेन घर में घुसी। जिस घर-स्कूल में डिब्बे घुसे वे दोनों ही सभ्रांत नागरिक जगत ङ्क्षसह के हैं। घटना चूंकि शाम को हुई इसलिए स्कूल खाली था और घर में भी किसी को ज्यादा चोट नहीं आई। घर का मलबा गिरने से बस जगत ङ्क्षसह को पांव में चोट आई है। घर और स्कूल में घुसे इन्हीं दो डिब्बों से देर रात तक शवों को निकालने का सिलसिला जारी रहा। रात 10 बजे तक साइकिल चालक और महिला का शव फंसा रहा।

सबने माना, चल रहा था काम

स्थानीय लोगों का भी कहना है कि जिस पटरी पर हादसा हुआ है, उस पर काम चल रहा था। वहां अब भी उपकरण और झंडे पड़े हुए हैं। वैसे रेलवे सेफ्टी विभाग ही दुर्घटना की सही वजह बता पाएगा –प्रशांत कुमार, एडीजी मेरठ जोन।

पटरी पर काम चल रहा था तो ड्राइवर को कॉशन दिया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं है। यह बड़ी लापरवाही है। दुर्घटना के समय ट्रेन 100 किमी प्रति घंटा की स्पीड से दौड़ रही थी। सामान्य स्थिति में उसे इतनी ही स्पीड में दौड़ना चाहिए, लेकिन मरम्मत आदि के समय स्पीड कम करा दी जाती है। प्रथमदृष्टया तो लापरवाही ही प्रतीत हो रही है, जांच में सारी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी – नीरज गुप्ता, जनसंपर्क अधिकारी उत्तर रेलवे।

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