वाराणसी भगदड़ : पुल गिरने की अफवाह ने ले ली 25 की जान

वाराणसी भगदड़ : पुल गिरने की अफवाह ने ले ली 25 की जान
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वाराणसी :वाराणसी में गंगा किनारे जयगुरुदेव के दो दिवसीय सत्संग के पहले दिन शनिवार को शोभायात्रा के दौरान भगदड़ मचने से 25 लोगों की मौत हो गई और करीब 50 घायल हो गए। मरने वालों में 20 महिलाएं शामिल हैं। हादसा राजघाट पुल पर दोपहर करीब 12:50 बजे हुआ।

घायलों को नजदीकी अस्पताल में भर्ती कराया गया और प्रशासन ने राहत कार्य के लिए अपनी कमर कस ली। इधर, विपक्ष ने हादसे के लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया। लेकिन हादसे के पीछे एक और कारण भी सामने आ रहा है। वो है एक छोटी सी अफवाह। जी हां, एक वृद्धा की छोटी सी अफवाह से इतने बड़े हादसे को अंजाम मिला।

शनिवार दोपहर 12.50 बजे थे। जय गुरुदेव के अनुयायियों का रेला शहर की परिक्रमा कर राजघाट पुल के आधे हिस्से तक पहुंच चुका था। इस दौरान मुगलसराय की ओर से कटे सर पहुंचने वाले अनुयायी भी परिक्रमा में शामिल होने के लिए पुल की ओर से लगे। भयानक भीड़ में चलना मुश्किल था। तभी पुल के नीचे से ट्रेन गुजरी।पुल में कंपन हुआ और वृद्धा चिल्ला पड़ी, पुल गिर रहा है। उसका चिल्लाना सबको इतना भारी पड़ गया। लोग बचने के लिए भागने लगें। परिणाम, भगदड़ और 25 लोगों की मौत।

इसके पहले सीओ ट्रैफिक संतोश मिश्रा दो हमराहियों होमगार्ड धर्मेंद्र प्रसाद व अनिल कुमार के साथ भीड़ नियंत्रित कर रहे थे। पुल के दोनों ओर अनुयायियों का रेला था। इसके बावजूद पड़ाव और भदऊं चुंगी की ओर से बाहनों का आवागमन रोका नहीं गया था। लिहाजा जबरदस्त जाम लग गया। बाइक, रिक्शा, ऑटो, मिनी ट्रक, कारें, साइकिल सवार जहां -तहां जाम में फंसे थे। पैदल भी निकल पाना मुश्किल था। ऊपर से चिलचिलाती धूप ने सबको बेहाल कर दिया था।

इसी दौरान राजघाट डॉटपुल (काशी स्टेशन के पास) मौजूद पुलिसकर्मियों ने पड़ाव से भदऊं की ओर से आने वाले अनुयायियों को यह कहकर लौटाना शुरू कर दिया कि आगे रास्ता रोक दिया गया है। लौट जाइए। इसके बाद तो और विकट स्थिति हो गई है। धूप से बेहाल दो लोग गश खाकर गिर पड़े। यह देख पुलिसवाले और शोभायात्रा के साथ चल रहे जय गुरुदेव के अनुयायी घबरा गए।

इतने में पुल के नीचे से ट्रेन गुजरी। ऊपरी हिस्से में कंपन होने लगा। तभी जाम में फंसी एक वृद्धा ने शोर मचा दिया कि पुल गिर रहा है। इसके बाद तो स्थिति ऐसी बिगड़ी जिसका परिणाम 24 की मौत है। अब चालक वाहन मोड़कर भागने की कोशिश करने लगे, जिसे जिधर जगह मिली भागने की कोशिश करने लगा।

राजघाट पुल पर करीब पांच सौ मीटर की दूरी में जहां-तहां बिखरे जूते-चप्पल, झंडे-डंडे, कपड़े हृदय विदारक हादसे की कहानी बयां कर रहे थे। स्टील के डिब्बे, ग्लास और बैग इधर-उधर पड़े थे। घटना के तीन घंटे बाद भी सामान जस का तस बिखरा पड़ा देख जो भी राहगीर गुजरता उसकी आंखे फटी रह जातीं।

पुल से गुजरनेवाला हर व्यक्ति इस दृश्य को देख ठिठक जा रहा था। आसपास खड़े लोगों से पूछता रहा कि क्या हुआ? जितने मुंह उतनी बातें। शाकाहार समागम में दूसरे राज्यों से पहुंचे तमाम भक्त ऐसे थे जो भगदड़ के बाद अपनों को ढूंढते पुल पर पहुंचे। कुछ ऐसे भी थे जो बिखरे सामानों पर पहचान की तलाश यह सोचकर करते रहे कि कहीं उनके अपने तो इस हादसे में शिकार तो नहीं हो गए हैं।

ऑटो रिक्शा पर बैठककर शहर की ओर आ रही महिलाएं मीडिया कर्मियों से पूछती रहीं.. भइया. क्या हो गया।बच्चे भी हादसे के शिकार हो गये हैं क्या? जिसे जितनी जानकारी होती बताता जा रहा था। हर कोई एक ही बात कहता। लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल या बीएचयू जाएं। वहीं पर लोग मिलेंगे। सीतापुर के अनुयायी सुदेश चार बजे बदहवासों की तरह मौके पर पहुंचे। उनकी पत्नी और बेटी गायब थीं। वह रामनगर अस्पताल से होकर आये थे।

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