भारतीय सेना से बचने के लिए आतंकी संगठनों को कम्युनिस्ट नामों का इस्तेमाल करने की हिदायत, ISI का नया षड्यंत्र

भारतीय सेना से बचने के लिए आतंकी संगठनों को कम्युनिस्ट नामों का इस्तेमाल करने की हिदायत, ISI का नया षड्यंत्र
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नई दिल्ली: भारतीय सुरक्षा बलों की पहचान से बचने के लिए पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) ने जम्मू-कश्मीर में सक्रिय आतंकी संगठनों को निर्देश दिया है कि वे अपने संगठनों का नाम कम्युनिस्ट विचारधारा से मेल खाता हुआ रखें। सूत्रों ने बताया कि आईएसआई ने जम्मू-कश्मीर में सक्रिय आतंकी संगठनों को निर्देश दिया है कि वे अपने संगठन का नाम द रेसिस्टेंस फ्रंट या ऐसा ही कुछ नाम रखें।

सूत्रों ने यह भी कहा कि आईएसआई ने विशेष रूप से इन आतंकवादियों को कैडरों के बीच खुद को कम्युनिस्ट संगठन के रूप में प्रचारित करने के लिए कहा है। सूत्रों ने आगे कहा कि आईएसआई चिंतित है कि जम्मू-कश्मीर में किसी भी आतंकी घटना के बाद, भारत हमेशा पाकिस्तान को पर्याप्त सबूतों के साथ जिम्मेदार ठहराता है, जो घटनाओं के पीछे उसके स्पष्ट हाथ का संकेत देता है। नतीजतन, अब चीन को छोड़कर अधिकांश देशों का मानना है कि पाकिस्तान अपनी धरती से आतंकवाद का समर्थन करता रहा है।

धार्मिक नारों का उपयोग ना करने की दी गई हिदायत
आईएसआई ने आतंकवादियों को सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ के दौरान कोई धार्मिक नारे नहीं लगाने का भी निर्देश दिया है, जो पाकिस्तान की संलिप्तता पर भी उंगली उठाता है। सूत्रों ने कहा, कश्मीर में सक्रिय आतंकवादी संगठनों के नाम जिहाद से जुड़े हैं या उनके नाम स्पष्ट करते हैं कि वे इस्लामी आतंकवादी हैं। अब वे यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट या पीपुल्स एंटी-फासिस्ट फ्रंट या इसी तरह के नामों का उपयोग कर रहे हैं, जो अति-वामपंथी समूहों द्वारा उपयोग किया जाता है, जो देश के कानून का विरोध करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इन अतिवादी समूहों को कम्युनिस्ट या वामपंथी नामों के साथ नए सोशल मीडिया अकाउंट खोलने और पहचान से बचने के लिए धार्मिक नारों का उपयोग करने से बचने के लिए कहा गया है।

नई रणनीति से दोहरे फायदे की फिराक में पाकिस्तान
जम्मू-कश्मीर में तैनात सुरक्षा अधिकारियों ने कहा कि इस नई रणनीति के साथ, पाकिस्तान एक पत्थर से दो पक्षियों को मारना चाहता है, यानी वह एक तीर से दो निशाने साधना चाहता है। इसमें पहली बात यह है कि अब वह अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस और कई अन्य देशों को आश्वस्त करेगा कि वह जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार नहीं है। दूसरी बात यह है कि वह ऐसे आरोपों और विवाद से इसलिए भी बचना चाहता है, क्योंकि इंटरनेशनल वॉचडॉग फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की ब्लैक लिस्ट से बचे रहना चाहता है।

इस तरह की धारणाओं और पर्याप्त तथ्यों ने कई बार स्थापित किया है कि पाकिस्तान आतंकवाद का पोषण और समर्थन करता रहा है और इसीलिए वह जून 2018 से एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में बना हुआ है और उस पर ग्रे लिस्ट से बाहर निकलने की चुनौती तो है ही, साथ ही उसके सामने ब्लैक लिस्ट में शामिल होने का डर भी मंडराता रहता है। इस साल 22 फरवरी को पेरिस में पाकिस्तान को एफएटीएफ की ब्लैक लिस्ट में रखा जा सकता है।

एफएटीएफ की पूर्ण और कार्यकारी समूह की बैठकों से पहले, विशेषज्ञों को लगता है कि पाकिस्तान का नाम अपने आतंकी कृत्यों का खत्म या कम करने को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाने के कारण वैश्विक आतंकवाद-रोधी वित्तपोषण और धन-शोधन-रोधी निगरानी संगठन की काली सूची में डाल दिया जाएगा।

फोटो और समाचार साभार : नवभारत टाइम्स

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