सजा खत्म करने की नई अर्जी से किसी को नहीं रोका जा सकता, सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

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नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी भी व्यक्ति को एक विशेष अवधि के लिए सजा पर रोक लगाने की उसकी अर्जी को फिर शुरू करने से नहीं रोका जा सकता है, क्योंकि इस तरह के समय-विशेष पर प्रतिबंध की परिकल्पना कानून द्वारा नहीं की गई है। शीर्ष अदालत ने कहा कि सजा के निष्पादन को निलंबित करने की राहत मांगना और जमानत पर रिहा होना एक व्यक्ति का वैधानिक अधिकार है।

न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विक्रमनाथ की पीठ ने यह टिप्पणी पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के एक आदेश में की गई टिप्पणियों को निरस्त करते हुए की, जिसमें उसने (उच्च न्यायालय ने) कहा था कि याचिकाकर्ता दोषसिद्धि की तारीख से कम से कम तीन साल की अवधि के भीतर अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाएगा।

उच्च न्यायालय ने हत्या के एक मामले में दी गयी सजा को निलंबित करने की मांग संबंधित अर्जी पर दिसम्बर 2020 में यह आदेश सुनाया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह उच्च न्यायालय के आदेश के मूल हिस्से में हस्तक्षेप करने के पक्ष में नहीं है, जिसमें संबंधित चरण में सजा निष्पादन के निलंबन का आग्रह ठुकरा दिया गया था।

पीठ ने इस सप्ताह के प्रारम्भ में दिये गये आदेश में कहा, ‘हालांकि हमने (उच्च न्यायालय के) संबंधित आदेश के अंतिम पैरा में की गयी टिप्पणियों का संज्ञान लिया है, जिसमें उच्च न्यायालय ने कहा है कि याचिकाकर्ता दोष सिद्धि की तारीख से न्यूनतम तीन साल की अवधि से पहले अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाएगा।’

न्यायालय ने कहा कि इस तरह की टिप्पणियां मंजूर नहीं की जा सकती, क्योंकि सजा के निष्पादन के निलंबन की राहत मांगना और जमानत पर रिहा होना एक व्यक्ति का वैधानिक अधिकार है। शीर्ष अदालत ने कहा, ‘इस तरह की अर्जी मंजूर की जाए या नहीं, यह पूरी तरह भिन्न मामला है, लेकिन इस प्रकार एक समय अवधि के लिए प्रतिबंधित किया जाना कानून में समाहित नहीं है। इसलिए हम संबंधित आदेश का उपरोक्त पैरा निरस्त करते हैं।’

फोटो और समाचार साभार : नवभारत टाइम्स

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