पंजाब में जो सामाजिक ताना-बाना बादल साहब और अटल जी ने बनाया, उसे तोड़ने की कोशिश : हरसिमरत कौर

पंजाब में जो सामाजिक ताना-बाना बादल साहब और अटल जी ने बनाया, उसे तोड़ने की कोशिश : हरसिमरत कौर
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जब तीन कृषि कानून संसद से पास किए गए तो उसका सबसे ज्यादा असर पंजाब की राजनीति पर पड़ने की बात कही जा रही थी। यहां तक कि इन्हीं कानूनों की वजह से अकाली दल ने बीजेपी के साथ 25 साल पुराना गठबंधन भी तोड़ लिया। अब, जबकि केंद्र सरकार ने तीनों कानून वापस ले लिए हैं तो एक बार फिर सबकी निगाह पंजाब पर ही है, यह देखने के लिए कि वहां की सियासत किस ओर करवट लेती है। कानून वापसी से बीजेपी को क्या वहां फायदा होगा, क्या अकाली दल और बीजेपी फिर से साथ आ सकते हैं, इन सवालों का जवाब पाने के लिए एनबीटी ने बात की पूर्व केंद्रीय मंत्री और अकाली दल की नेता
से। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश :

पंजाब का क्या चुनावी परिदृश्य आप देख रही हैं?

वहां निर्णायक जनादेश आएगा। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब की कसम खाकर कर्ज माफी और नौकरी देने की बात कही थी, जिस पर लोगों ने विश्वास किया। लेकिन पिछले पांच सालों में कांग्रेस सरकार अपना एक भी वादा पूरा नहीं कर पाई। लोग अब उनसे सवाल कर रहे हैं और उनके पास कोई जवाब नहीं है। किसानों के मुद्दे पर भी वे एक्सपोज हो चुके हैं। अगर बादल साहब सीएम होते तो क्या वह किसानों को ऐसे सड़क पर बैठने देते? वह तो पीएम के घर के सामने ही डेरा डाल देते।

पंजाब में बीजेपी से सबसे ज्यादा नाराजगी किसान कानून को लेकर थी। अब जब तीनों कानून वापस हो गए तो उसके खिलाफ नाराजगी भी खत्म हो गई होगी। आपको क्या लगता है?

बात सिर्फ किसान कानून तक ही सीमित नहीं है। केंद्र की तरफ से हमेशा पंजाब की अनदेखी होती रही है। 80 के दशक में पाकिस्तान ने जब आतंकवाद को बढ़ावा देना शुरू किया तो उसके चलते सबसे ज्यादा आग पंजाब में ही लगी। इससे पहले बंटवारे के दौरान भी सबसे ज्यादा खून-खराबा पंजाब ने ही देखा। यह बहुत जज्बाती और देशभक्त राज्य है। आजादी की लड़ाई में लगभग 80 फीसदी कुर्बानियां पंजाब के लोगों ने ही दीं। लेकिन अफसोस कि कभी उसे उसका वाजिब हक नहीं मिला। पंजाब में हिंदू-सिख के उस सामाजिक ताने-बाने को तोड़ने की कोशिश हुई है जिसे वाजपेयी जी और बादल साहब (प्रकाश सिंह बादल) ने बड़ी मेहनत से तैयार किया था।

वैसे अकाली दल और बीजेपी की जो दोस्ती टूटी, उसका कारण किसान कानून ही थे। अब जब ये कानून वापस हो गए हैं तो क्या फिर से आप दोनों के बीच गठबंधन की कोई गुंजाइश बन सकती है?

पंजाब में बीएसपी से गठबंधन हो चुका है। अब जो भी फैसले लिए जाएंगे, उन पर हमें इकट्ठे मिलकर कॉल लेनी होगी। हमने कभी राजनीतिक जोड़-तोड़ के लिए काम नहीं किया। जब भी कोई फैसला लिया, वह पंजाब और पंजाब की जनता के हितों को ध्यान में रखकर लिया। पंजाब के खिलाफ यह साजिश चल रही है कि कैसे वहां की क्षेत्रीय पार्टी को खत्म किया जाए और दिल्ली से पंजाब पर कब्जा किया जाए। बीजेपी, कांग्रेस और आप- सब इसी कोशिश में लगे हुए हैं। भले ही इन तीनों के बीच मतभेद हों, लेकिन इस मुद्दे पर तीनों एक दिखती हैं।

चन्नी के सीएम बनने के बाद आप लोगों का दलित डेप्युटी सीएम बनाने का वादा क्या अब बेअसर नहीं हो गया है?

कांग्रेस चन्नी को सीएम चेहरे के तौर पर प्रमोट कहां कर रही है? दलित इस चीज को समझ रहे हैं। रही बात चन्नी के सीएम बनने के असर की, तो उसका सबसे बड़ा झटका तो आम आदमी पार्टी को लगा है। आप के लोग पहले ही भाग-भाग कर कांग्रेस में जा चुके हैं।

कांग्रेस से अलग होने के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह की क्या भूमिका आप देख रही हैं?

बीजेपी को पंजाब में सियासी जमीन की तलाश है। वह उन सभी पर दांव लगाएगी, जिन्हें दूसरी पार्टियों में टिकट नहीं मिला होगा। बीजेपी के पास अपने उम्मीदवार तो हैं नहीं, फिर भी उसे उतारने सभी सीटों पर हैं। बीजेपी को संघ समर्थित वोट तो मिलेगा ही, लेकिन वह वहां हिंदू चेहरे के बल पर चुनाव नहीं लड़ सकती। उसे एक सीनियर सिख चेहरे की जरूरत है, जो कैप्टन अमरिंदर पूरा करते हैं।

आज कैप्टन और अकाली दल दोनों ही कांग्रेस के खिलाफ खड़े हैं। क्या यह मुमकिन है कि कैप्टन और अकाली दल के बीच कोई गठबंधन हो जाए?

जहां तक अकाली और कैप्टन का सवाल है तो हमें नहीं लगता कि उसकी जरूरत पड़ेगी, क्योंकि हमें पूरा विश्वास है कि लोगों का आदेश हमें पूर्ण बहुमत के रूप में मिलेगा। ‘आप’ के पास वहां क्रेडिबल लोग ही नहीं हैं और कांग्रेस आपस में ही लड़ रही है जबकि अकाली दल जमीन पर काम कर रहा है।

यूपी का तजुर्बा है कि बीएसपी के साथ किसी भी गठबंधन सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया। चाहे मुलायम सिंह यादव के साथ 93 में बनी सरकार हो या बाद में बीजेपी के साथ तीन बार बनी गठबंधन की सरकार। पंजाब में उनका साथ कितने भरोसे का रहेगा?

पंजाब में बीजेपी और बीएसपी की तुलना में अकाली दल प्रमुख भूमिका में है। बीजेपी को हम 23 सीटें दिया करते थे, आज बीएसपी को 20 सीटें दी हैं। सरकार गिराने की स्थिति में तो कोई नहीं है। हम सबको साथ लेकर चलने में विश्वास करते हैं।

फोटो और समाचार साभार : नवभारत टाइम्स

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