भाई-भतीजे के हत्यारे की फांसी की सजा उम्रकैद में बदली, SC बोला- सुधार की गुंजाइश

भाई-भतीजे के हत्यारे की फांसी की सजा उम्रकैद में बदली, SC बोला- सुधार की गुंजाइश
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नई दिल्ली
फांसी की सजा पाए शख्स की सजा को उम्रकैद में तब्दील करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मौजूदा मामले में यह नहीं कहा जा सकता है कि दोषी के सुधार और पुनर्वास की गुंजाइश नहीं है। ऐसे में हत्या के मुजरिम की फांसी की सजा उम्रकैद में तब्दील की जाती है।

यह देखना जरूरी कि क्रिमिनल का दिमाग किस स्थिति में था
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह हमारी ड्यूटी है कि आरोपी के रिफॉर्म (सुधार) और पुनर्वास की संभावनाओं पर विचार किया जाए। न सिर्फ क्राइम बल्कि क्रिमिनल की स्थिति पर विचार करना हमारी ड्यूटी है। यह देखना जरूरी है कि क्रिमिनल का दिमाग किस स्थिति में था और उसका सामाजिक और आर्थिक कंडीशन क्या है। मृतक और आरोपी दोनों गांव की पृष्ठभूमि के थे। दोनों के बीच प्रॉपर्टी का विवाद था। याची ने अपने दो भाई और एक भतीजे की हत्या की थी।

ऐसा नहीं कहा जा सकता कि आरोपी के सुधार की गुंजाइश नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि उसने नृशंस अपराध किया है। लेकिन राज्य सरकार ने यह नहीं बताया कि आरोपी के सुधार की गुंजाइश नहीं है। याची ने अपराध किया है लेकिन वह दुर्दांत अपराधी नहीं है। उसका यह पहला अपराध था। उसकी जेल से आई रिपोर्ट में कहा गया है कि उसका कंडक्ट ठीक है और ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि उसके सुधार और पुनर्वास की गुंजाइश नहीं है। ऐसे में हम वैकल्पिक सजा देते हैं। हम इस मामले में फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील करते हैं। चूंकि आरोपी ने अपने दो भाई और भतीजे की हत्या की है ऐसे में इस मामले में उम्रकैद की सजा 30 साल कैद की होगी।

ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट ने अपराध देखा अपराधी की स्थिति पर विचार नहीं किया
मौजूदा मामला मध्य प्रदेश का है। भागचंद्र ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जबलपुर बेंच के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। ट्रायल कोर्ट ने हत्या मामले में भागचंद्र को फांसी की सजा दी थी और 19 दिसंबर 2017 को हाई कोर्ट ने फांसी की सजा को कंफर्म किया था जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया था। पेश मामले के मुताबिक मृतक देवकी प्रसाद की पत्नी ने बयान दिया कि 11 अक्टूबर 2015 को जब वह शौच से वापस आई तो देखा कि घर में तेज धारदार हथियार से उनके पति के भाई ठाकुर दास की हत्या कर दी गई है। बाद में उसने अपने बेटे अखिलेश का भी शव देखा। अंदेशा होने पर वह खेत की तरफ भागी तो वहां उसने देखा कि आरोपी भागचंद्र ने उसके पति देवकी दास पर गड़ासे से वार किया है और उनकी भी मौत हो गई। इस मामले में देवकी की पत्नी पुलिस की पहली गवाह बनी।

प्रॉपर्टी विवाद के कारण इस हत्याकांड को अंजाम दिया गया था। ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट से फांसी की सजा के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में आया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने जिस दिन दोषी करार दिया उसी दिन उसे फांसी की सजा सुनाई और सजा पर बहस का पर्याप्त मौका नहीं मिला। ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट ने सिर्फ अपराध को देखा लेकिन अपराधी के दिमागी स्थिति और आर्थिक और सामाजिक पहलू पर विचार नहीं किया।

फोटो और समाचार साभार : नवभारत टाइम्स

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