सदन चर्चा के लिए है, नाचने या कागज फाड़ने के लिए नहीं- विपक्ष पर अनुराग ठाकुर का तंज

सदन चर्चा के लिए है, नाचने या कागज फाड़ने के लिए नहीं- विपक्ष पर अनुराग ठाकुर का तंज
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शिमला
विपक्षी दल के नेताओं पर तंज कसते हुए केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री ने कहा कि सदन चर्चा के लिए होते हैं, कागज फाड़ने या मेज पर चढ़कर हंगामा करने के लिए नहीं। उनके निशाने पर वे सदस्‍य थे जिन्‍होंने किसान बिलों को लेकर पिछले मॉनसून सत्र में राज्यसभा के भीतर कागज फाड़े और मेज पर चढ़कर हंगामा किया था।

ठाकुर का कहना था कि जब आपके पास बोलने के लिए तर्क और तथ्य नहीं रहे तो सदन में कागज फाड़े गए और मेज पर चढ़कर नाचा गया। ठाकुर ने कटाक्ष किया कि कागज तो सड़कों पर भी फाड़े जा सकते हैं, लेकिन सदन तो चर्चा के लिए ही है। उनका इशारा विभिन्न मुद्दों को लेकर सदन को बाधित करने वाले विपक्ष की ओर था।

ठाकुर ने यह बात गुरुवार को शिमला में आयोजित 82वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन के समापन समारोह के मौके पर कही। वहीं उन्होंने सदन में होने वाली चर्चाओं व बहस की गुणवत्ता को सुधारने की बात भी कही।

इस मौके पर उन्होंने आजादी के 75वें साल में देश की संसद व विधानमंडलों में राष्ट्रहित व लोगों से जुड़े 75 महत्वपूर्ण मुद्दों पर क्‍वॉलिटी डिबेट कराने का सुझाव भी दिया। वहीं उन्होंने विधायिका के लिए कुछ अन्य महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए। उन्होंने कनाडा, न्यूजीलैंड व यूके की तर्ज पर अपने यहां भी विधायिका या संसदीय सप्ताह मनाने की बात कही। जहां युवाओं व छात्रों को बुलाकर विधायी परंपरा व लोकतांत्रिक नियमों से परिचित कराया जाए।

इसी मौके पर उन्होंने विधायिका में रिसर्च व इनोवेशन को बढ़ावा देने और देश के युवाओं व यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स को इस काम में लगाने और उन्हें जनप्रतिनिधियों के साथ बतौर इंटर्न काम करने का सुझाव दिया। ठाकुर का कहना था कि इससे हमारी युवा पीढ़ी को लोकतांत्रिक मूल्यों की जानकारी व महत्व का अहसास होगा।

उन्होंने बतौर सांसद संसद के भीतर अपने पहले संबोधन का जिक्र करते हुए कहा कि कैसे तत्कालीन स्पीकर सोमनाथ चटर्जी ने उन्हें खुलकर बोलने का मौका दिया था, जिसने उनका मनोबल बढ़ा। ठाकुर ने वहां मौजूद तमाम पीठासीन अधिकारियों से कहा कि वे भी अपने सदन में पहली बार चुनकर पहुंचे प्रतिनिधियों को पर्याप्त बोलने का मौका दें।

आजादी के अमृत महोत्सव पर उन्होंने देश की विधायिका में हुए ऐतिहासिक फैसलों, नियमों व भाषणों को संजोकर एक किताब या वीडियो के तौर पर मीडिया व सोशल मीडिया पर पेश करने की बात भी कही। उनका कहना था कि इससे नए जनप्रतिधियों के साथ-साथ युवाओं को भी जानकारी व प्रेरणा मिलेगी।

फोटो और समाचार साभार : नवभारत टाइम्स

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