2 मई को विजय जुलूस नहीं निकाल पाएंगे प्रत्याशी या पार्टियां, निर्वाचन आयोग ने लगाई रोक

2 मई को विजय जुलूस नहीं निकाल पाएंगे प्रत्याशी या पार्टियां, निर्वाचन आयोग ने लगाई रोक
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नई दिल्ली
कोविड के कारण पूरा देश त्राहिमाम कर रहा है। ऐसे में कोई ढोल-नगाड़े बजाकर खुशी का इजहार करे तो यकीनन करोड़ों लोगों का दर्द बढ़ जाएगा। चुनाव आयोग ने भी इसे समझकर पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए 2 जनवरी को आने वाले परिणाम को लेकर आदेश जारी किया है। आयोग ने कहा है कि चुनावों में जीत दर्ज करने वाली पार्टियां या नेता विजय जुलूस नहीं निकालेंगे। हालांकि, आयोग के इस कदम पर कहा जा रहा है कि उसे चुनाव ही नहीं करवाना चाहिए था।

आयोग का आदेश- नहीं होगा कोई आयोजन
बहरहाल, निर्वाचन आयोग ने जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए हैं, वहां पर मतगणना के दौरान या उसके बाद में सभी विजय जुलूसों पर प्रतिबंध लगा दिया है। सूत्रों ने एक आदेश के हवाले से कहा कि कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने से रोकने के लिए यह फैसला लिया गया है। असम, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल और पुडुचेरी में दो मई को मतगणना होगी। चुनाव आयोग के सूत्रों ने बताया कि इस संबंध में एक विस्तृत आदेश जारी किया जा रहा है।

मद्रास हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग पर की थी कड़ी आलोचना
हालांकि, चुनाव आयोग के इस फैसले का एक ओर स्वागत किया जा रहा है तो दूसरी ओर उसकी इस बात पर आलोचना हो रही है कि गंभीर संकट में भी वोटिंग की प्रक्रिया नहीं रोकी गई। मद्रास हाई कोर्ट ने तो निर्वाचन आयोग की बहुत तीखी आलोचना की और यहां तक कहा कि आयोग देश में कोविड-19 की दूसरी लहर के लिए जिम्मेदार है। अदालत ने अपनी कड़ी टिप्पणी में कहा कि निर्वाचन आयोग के अधिकारियों के खिलाफ हत्या के आरोपों में भी मामला दर्ज किया जा सकता है। इसने कहा कि निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों को रैलियां और सभाएं करने की अनुमति देकर महामारी को फैलने का मौका दिया।

आयोग ने यह कहकर किया अपना बचाव
कोर्ट से लताड़ लगने के बाद निवर्वाचन आयोग के सूत्रों ने कहा कि पहले बिहार में और फिर चार राज्यों एवं एक केंद्रशासित प्रदेश में चुनाव के दौरान कोविड-19 से बचाव सुनिश्चित करने के लिए सावधानीपूर्वक कदम उठाए। सूत्रों ने कहा कि कोविड-19 से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन कानून का क्रियान्वयन सुनिश्चित करना राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की जिम्मेदारी है, लेकिन आयोग ने संक्रमण से लोगों को बचाने के मकसद से पश्चिम बंगाल में प्रचार मुहिम पर प्रतिबंध लगाने के लिए अपने संवैधानिक अधिकारों को लागू किया।

एक अधिकारी ने कहा कि नवंबर 2020 में सफलतापूर्वक बिहार विधानसभा चुनाव कराने के लिए आयोग की क्षमता की व्यापक प्रशंसा हुई थी। इस चुनाव में 7 करोड़ मतदाताओं ने 1.06 लाख मतदान केंद्रों पर मतदान किया था। उन्होंने कहा कि फरवरी 2021 में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की घोषणा की गई। उन्होंने कहा, “उस समय महामारी अपने न्यूनतम स्तर पर थी। देश में फरवरी में प्रतिदिन करीब 11,000 नए मामले सामने आ रहे थे और जनवरी-फरवरी में सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में उपचाराधीन मामलों में गिरावट आ रही थी। टीकाकरण चालू हो गया था और आर्थिक सुधार के संकेत मिलने लगे थे।”

सूत्रों ने कहा कि कोविड-19 संबंधी हालात में सुधार, समग्र पुनरुद्धार के संकेत और दूसरी लहर की आशंका की कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होने के बावजूद आयोग ने सावधानी से कदम उठाने का फैसला किया, सभी एहतियातन कदम उठाए और उन सभी राज्यों में कोविड-19 संबंधी प्रोटोकॉल का पालन किया गया, जहां चुनाव होने थे। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु, असम, केरल और पुडुचेरी में कोविड-19 के मामलों में अप्रत्याशित बढ़ोतरी से पहले छह अप्रैल को चुनाव समाप्त हो गए थे।

चुनावी रैलियों में भीड़ से आमजन में गुस्सा
ध्यान रहे कि प. बंगाल में आठ चरणों में मतदान का ऐलान किया गया और अब तक सातवें चरण की वोटिंग हो चुकी है। हालांकि, चौथे चरण के मतदान के बाद से ही वोटिंग रोकने की मांग शुरू हो गई थी। सत्ताधारी दल तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने पहले भी इतनी लंबी मतदान प्रक्रिया पर सवाल उठाया था और जब कोविड का प्रकोप बढ़ा तो वह अपनी मांग जोर-शोर से रखने लगी। पार्टी ने छठे, सातवें और आठवें चरण के मतदान को एक साथ कराने की मांग भी की, लेकिन आयोग इसके लिए राजी नहीं हुआ। इधर, आम जनता में भी इस बात पर नाराजगी देखी जा रही है कि आखिर जब देश में हर दिन 2 हजार से ज्यादा जानें जा रही हैं और 3 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो रहे हैं तो चुनाव को क्यों नहीं टाला जा सकता है। लोग चुनावी रैलियों में जुट रही भीड़ पर तंज भी कस रहे थे तो गुस्से का इजहार भी किया जा रहा था।

साभार : नवभारत टाइम्स

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