जानें क्या है इंदिरा साहनी केस, आरक्षण पर वो ऐतिहासिक फैसला जिसकी 29 साल बाद फिर समीक्षा करेगा सुप्रीम कोर्ट

जानें क्या है इंदिरा साहनी केस, आरक्षण पर वो ऐतिहासिक फैसला जिसकी 29 साल बाद फिर समीक्षा करेगा सुप्रीम कोर्ट
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नई दिल्ली
मौजूदा वक्त में पूरे देश में आरक्षण की चर्चा खूब हो रही है। देश के कई राज्यों में 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण दिया जा रहा है। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट इसके पीछे राज्य सरकारों का तर्क जानना चाह रहा है कि आखिरकार 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण क्यों दिया जाए। दरअसल, रिजर्वेशन मामले में इंदिरा साहनी जजमेंट यानी मंडल जजमेंट को दोबारा देखने की जरूरत है या नहीं और क्या मंडल जजमेंट को लार्जर बेंच में रेफर करने की जरूरत है या नहीं, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने सुनवाई शुरू कर दी। हम आपको बताते हैं कि आखिरकार क्या था। एक वक्त में इंदिरा साहनी (Indra Sawhney case) मामले की चर्चा हर जुबान पर थी।

सुर्खियों में आरक्षण का मुद्दाभारतीय राजनीति में आरक्षण का मुद्दा समय-समय पर खूब उठता है। इन दिनों मराठा आरक्षण का मुद्दा सुर्खियों में है। मराठा रिजर्वेशन के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि अगर रिजर्वेशन के लिए 50 फीसदी की लिमिट नहीं रही तो फिर समानता के अधिकार का क्या होगा? सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है कि क्या इंदिरा साहनी जजमेंट में दिए फैसले को दोबारा देखने की जरूरत है। इंदिरा साहनी जजमेंट में 50 फीसदी रिजर्वेशन की ऊपरी सीमा तय की गई है। महाराष्ट्र सरकार की दलील है कि इंदिरा साहनी जजमेंट को दोबारा देखने की जरूरत है। आइए बताते हैं कि आखिर क्या है इंदिरा साहनी केस, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तय की थी।

इंदिरा साहनी ने डाली थी याचिकासाल 1991 में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने आर्थिक आधार पर सामान्य श्रेणी के लिए 10 फीसदी आरक्षण देने का आदेश जारी किया था, जिसे इंदिरा साहनी ने कोर्ट में चुनौती दी थी। इंदिरा साहनी केस में नौ जजों की बेंच ने कहा था कि आरक्षित स्थानों की संख्या कुल उपलब्ध स्थानों के 50 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने पास किया था कानूनसुप्रीम कोर्ट के इसी ऐतिहासिक फैसले के बाद से कानून बना था कि 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता। समय-समय में राजस्थान में गुर्जर, हरियाणा में जाट, महाराष्ट्र में मराठा, गुजरात में पटेल जब भी आरक्षण मांगते तो सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आड़े आ जाता है। इसके लिए राज्य सरकारें तमाम उपाय भी निकाल लेती हैं। देश के कई राज्यों में अभी भी 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण दिया जा रहा है।

कौन हैं इंदिरा साहनीइंदिरा साहनी दिल्ली की एक पत्रकार थीं। वीपी सिंह ने मंडल कमीशन की सिफारिश को ज्ञापन के जरिए लागू कर दिया था। इंदिरा साहनी इसके वैध होने को लेकर 1 अक्टूबर, 1990 को सुप्रीम कोर्ट पहुंच गईं थीं अब तक वीपी सिंह सत्ता से जा चुके थे। चंद्रशेखर नए प्रधानमन्त्री बने। उनकी सरकार ज्यादा दिन तक चली नहीं। 1991 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई। प्रधनमंत्री बने पीवी नरसिम्हा राव। मंडल कमीशन ने पिछड़ा वर्ग के लिए 27 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया था।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणीमराठा रिजर्वेशन के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर रिजर्वेशन के लिए 50 फीसदी की लिमिट नहीं रही तो फिर समानता के अधिकार का क्या होगा? सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रही है कि क्या इंदिरा साहनी जजमेंट में दिए फैसले को दोबारा देखने की जरूरत है। इंदिरा साहनी जजमेंट में 50 फीसदी रिजर्वेशन की ऊपरी सीमा तय की गई है। महाराष्ट्र सरकार की दलील है कि इंदिरा साहनी जजमेंट को दोबारा देखने की जरूरत है।

साभार : नवभारत टाइम्स

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