सीवर टैंक की हाथ से सफाई करते 5 साल में गई 389 लोगों की जान, 66 हजार लोग कर रहे यह काम

सीवर टैंक की हाथ से सफाई करते 5 साल में गई 389 लोगों की जान, 66 हजार लोग कर रहे यह काम
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नई दिल्ली
केंद्र सरकार ने बुधवार को बताया कि 2015 से 2019 के बीच देश में सीवर टैंक की हाथ से सफाई करने के दौरान 389 लोगों की मौत हो गई। सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में राज्यसभा को यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सीवर और सैप्टिक टैंक की खतरनाक ढंग से सफाई करने के कारण हुई इन मौतों को लेकर 266 लोगों के विरूद्ध प्राथमिकी दर्ज कराई गई है।

उन्होंने कहा कि 2015 से 2019 के दौरान सीवरों की हाथ से सफाई करने के दौरान 389 लोगों की जान गई। एक अन्य प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया कि पिछले तीन साल में सीवर और सैप्टिक टैंक साफ करते हुए 210 लोगों की जान गई। राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने 165 मामलों में मृतकों के निकट परिजनों को मुआवजा दिया। उन्होंने बताया कि देश के 17 राज्यों में हाथ से मैला ढोने वाले 66,692 लोगों की पहचान की गई है। पिछले साल फरवरी में यह आंकड़ा 63,246 था।

2010-20 के बीच 631 की मौत
पिछले साल सितंबर में सामने आई एक रिपोर्ट में बताया गया था कि देश में 2010-2020 के बीच सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान 631 लोगों की जान गई है। राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (एनसीएसके) ने सीवर और सेप्टिक टैकों की सफाई के दौरान 2010 से मार्च 2020 के बीच हुई मौतों के संबंध में सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना के जवाब में यह जानकारी दी थी।

आंकड़ों के अनुसार इस अवधि में 631 लोगों की मौत हुई। इनमें से सबसे ज्यादा 115 लोगों की मौत 2019 में हुई। सबसे ज्यादा 122 लोगों की मौत तमिलनाडु में हुईं। इसके बाद उत्तर प्रदेश में 85, दिल्ली और कर्नाटक में 63-63 तथा गुजरात में 61 लोगों की मौत हुई। हरियाणा में 50 लोगों की मौत हुई। पिछले साल 31 मार्च तक सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान दो लोगों की मौत हुई।

2018 में इस वजह से 73 तो 2017 में 93 लोगों की मौत हुई। आंकड़ों के अनुसार 2016 में 55 लोगों की मौत हुई जबकि 2015 में 62 और 2014 में 52 लोगों की मौत हुई। इसके अलावा 2013 में 68 तथा 2012 में 47 और 2011 में 37 लोगों की मौत हुई। 2010 में 27 लोगों की मौत हुई थी।

अलग हो सकती है वास्तविकता
एनसीएसके ने बताया कि आंकड़े विभिन्न स्रोतों से मिली जानकारी के आधार पर है और वास्तविक आंकड़े अलग हो सकते हैं। आरटीआई आवेदन के तहत दी गई जानकारी में कहा गया कि अद्यतन होने पर ये आंकड़े बदलते रहते हैं। इस संबंध में एक अधिकारी ने बताया था कि सफाई राज्यों का विषय है और एनसीएसके के पास राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से मिला आंकड़ा होता है।

सही से लागू नहीं कानून
हालांकि, सफाईकर्मियों के अधिकारों के लिए काम करनेवाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि मैला ढोना रोजगार निषेध और पुनर्वास अधिनियम को सही से लागू नहीं करने की वजह से इससे जुड़ी मौतें हो रही हैं। मैला ढोने की प्रथा को खत्म करने की दिशा में काम करनेवाले संगठन ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन ने कहा था कि कानून सही तरीके से लागू नहीं होने से सफाई कर्मी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं।

मैगसायसाय पुरस्कार से सम्मानित कार्यकर्ता ने कहा था, ‘मैला ढोना रोजगार निषेध व पुनर्वास अधिनियम के तहत किसी एक भी व्यक्ति को अब तक सजा नहीं मिली है। अधिनियम चुनावी घोषणा पत्र के वादों की तरह झूठे वादे नहीं होने चाहिए।’

पिछले साल पहचाने गए थे 63,246 लोग
वहीं, पिछले साल सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण मंत्रालय के फरवरी में संसद में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार देश में 17 राज्यों में मैला ढोनेवाले 63,246 लोगों की पहचान की गई थी जिनमें से 35,308 उत्तर प्रदेश में थे। छह दिसंबर, 2013 को रोजगार के रूप में मैला ढोने पर रोक और पुनर्वास अधिनियम, 2013 प्रभाव में आया था। यह अधिनियम स्पष्ट रूप से कहता है कि बिना रक्षात्मक उपकरणों के सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई खतरनाक सफाई की श्रेणी में है और इसमें दंडात्मक कार्रवाई हो सकती है।

साभार : नवभारत टाइम्स

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