असंतुष्टों को खामोश करने के लिए नहीं लगा सकते राजद्रोह कानून, कोर्ट की बड़ी टिप्पणी

असंतुष्टों को खामोश करने के लिए नहीं लगा सकते राजद्रोह कानून, कोर्ट की बड़ी टिप्पणी
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नई दिल्ली
दिल्ली की एक अदालत ने राजद्रोह कानून को लेकर बड़ी टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि उपद्रवियों पर लगाम लगाने के नाम पर असंतुष्टों को चुप करने के लिए राजद्रोह के कानून का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। के दौरान सोशल मीडिया पर फेक वीडियो पोस्ट कर अफवाह फैलाने और राजद्रोह करने के 2 आरोपियों को जमानत देते हुए अडिशनल सेशंस जज धर्मेंद्र राना ने यह टिप्पणी की।

कोर्ट ने देवी लाल बुड़दाक और स्वरूप राम को जमानत दे दी। दोनों को इसी महीने दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था। कोर्ट ने कहा कि समाज में शांति और लॉ ऐंड ऑर्डर को बरकरार रखने के उद्देश्य से राजद्रोह का कानून सरकार के हाथ में एक ताकतवर औजार है लेकिन इसका इस्तेमाल असंतुष्टों को चुप करने के लिए नहीं किया जा सकता।

न्यायाधीश ने 15 फरवरी को दिये गए अपने आदेश में कहा, ‘हालांकि, उपद्रवियों का मुंह बंद करने के बहाने असंतुष्टों को खामोश करने के लिए इसे लागू नहीं किया जा सकता। जाहिर तौर पर, कानून ऐसे किसी भी कृत्य का निषेध करता है जिसमें हिंसा के जरिए सार्वजनिक शांति को बिगाड़ने या गड़बड़ी फैलाने की प्रवृत्ति हो।’

आदेश में कहा गया कि हिंसा या किसी तरह के भ्रम या तिरस्कारपूर्ण टिप्पणी या उकसावे के जरिए आरोपियों की तरफ से सार्वजनिक शांति में किसी तरह की गड़बड़ी या अव्यवस्था फैलाने के अभाव में मुझे संदेह है कि आरोपी पर धारा 124 (ए) के तहत कार्रवाई की जा सकती है।

क्या है आईपीसी की धारा 124-A में
इंडियन पेनल कोड के सेक्शन 124-A के मुताबिक अगर कोई शख्स बोलकर, लिखकर या किसी दूसरे तरीके से सरकार के खिलाफ नफरत, शत्रुता या अवमानना पैदा करेगा तो उसका कृत्य राजद्रोह की श्रेणी में आएगा।

साभार : नवभारत टाइम्स

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