बेटे की शादी छोड़ मुगल सेना को किया ढेर… बलिदान दिवस पर पढ़ें शिवाजी के 'शेर' तान्हाजी की वीरगाथा

बेटे की शादी छोड़ मुगल सेना को किया ढेर… बलिदान दिवस पर पढ़ें शिवाजी के 'शेर' तान्हाजी की वीरगाथा
Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail

मराठाओं का गौरवशाली इतिहास एक से एक लड़ाकों और स्वाभिमानी योद्धाओं से भरा पड़ा है। इन सबमें वीर के सेनापति () का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। साल 1670 में सिंहगढ़ की लड़ाई (Battle of Sinhagad) में उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई थी। पिछले साल सिंहगढ़ की लड़ाई पर बनी फिल्म ‘तान्हाजी’ में अजय देवगन ने तान्हाजी मालुसरे का ही किरदार निभाया था। 4 फरवरी को इस वीर योद्धा की पुण्यतिथि है।

वैसे तो भारत के इतिहास में कई बड़ी लड़ाइयां लड़ी गईं, मगर सिंहगढ़ की लड़ाई का किस्सा अपने आप में अनूठा है। तान्हाजी शासक के दोस्त थे। 1670 में सिंहगढ़ की लड़ाई में उन्होंने मुगल सेनापति उदयभान राठौर के खिलाफ अपनी आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ी और मराठाओं के लिए इज्जत का सवाल बनी इस लड़ाई में अपनी जान देकर जीत हासिल की।

क्यों लड़ी गई सिंहगढ़ की लड़ाई?
मराठा शासक छत्रपति शिवाजी की बढ़ती हुई ताकत से परेशान मुगल बादशाह औरंगजेब ने दक्षिण में अपने सूबेदार को मराठाओं पर आक्रमण का आदेश दिया। शिवाजी के पास उस वक्त तक बड़ी संख्या में किले थे, लेकिन धीरे-धीरे मुगलों ने करीब 23 किले अपने अधीन कर लिए। साल 1665 में पुरंदर की संधि में शिवाजी को कोंढाणा का किला भी देना पड़ा। इस संधि के बाद शिवाजी औरंगजेब से मिलने आगरा गए तो वहां धोखे से उन्हें बंदी बना लिया गया। शिवाजी किसी तरह कैद से निकलकर महाराष्ट्र पहुंचे और उन्होंने इस संधि को अस्वीकार कर दिया। इसके बाद मुगलों के कब्जे में गए मराठा किलों को फतह करने का सिलसिला शुरू हुआ। कोंढाणा का किला इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि कहा जाता था कि ये किला जिस किसी के पास भी होगा उसका ‘पूना’ पर अधिकार होगा।

कोंढाणा पर कब्जे के लिए शिवाजी ने अपने दोस्त तान्हाजी को चुना
कोंढाणा पर दोबारा कब्जे के लिए शिवाजी ने अपने दोस्त और सेनापति तान्हाजी मालुसरे को कमान सौंपी। तान्हाजी अपने भाई सूर्या जी को साथ लेकर करीब 300 सैनिकों की टुकड़ी के साथ किले को फतह करने चल दिए। किले की दीवार इतनी सीधी थी कि उसपर आसानी से चढ़ना संभव नहीं था। इसके अलावा किले की रक्षा के लिए किले में करीब 5000 सैनिकों वाली मुगल सेना तैनात की गई थी।

अंतिम सांस लेने से पहले लिख दी थी जीत की पटकथा
किले पर चढ़ाई के बाद बाद तान्हाजी और उदयभान में सीधी लड़ाई हुई जिसमें तान्हाजी वीरगति को प्राप्त हुए। हालांकि अंतिम सांस लेने से पहले तान्हाजी ने मराठाओं की जीत की पटकथा लिख दी थी और अंत में मराठाओं की ही जीत हुई।

शिवाजी ने कोंढाणा का नाम बदलकर सिंहगढ़ कर दिया
शिवाजी अपने सेनापति और उससे कहीं ज्यादा एक दोस्त को खोने से काफी परेशान हुए। तान्हाजी के निधन की खबर सुनकर शिवाजी ने सिर्फ इतना कहा- गढ़ आला पण सिंह गेला यानी ‘गढ़ (किला) तो हाथ में आया, मगर मेरा सिंह (तान्हाजी) चला गया। उन्होंने तानाजी के सम्मान में कोंढाणा किले का नाम बदलकर सिंहगढ़ कर दिया। शिवाजी तान्हाजी को ‘सिंह’ कहा करते थे।

बेटे की शादी छोड़कर कोंढाणा फतेह करने निकल पड़े
कहा जाता है कि जब शिवाजी की ओर से इस किले को फतेह करने का आदेश मिला तब तान्हाजी अपने बेटे की शादी में व्यस्त थे। शिवाजी को जब ये बात पता चली तो उन्होंने तान्हाजी की जगह किसी और को कोंढाणा फतेह करने के लिए भेजने का सोचा। हालांकि कोंढाणा पर आक्रमण का आदेश पाते ही तान्हाजी ने कहा कि अब पहले किला लेंगे तब शादी की बात होगी। तान्हाजी के न रहने पर शिवाजी ने तान्हाजी के बेटे की शादी धूमधाम से कराई और एक पिता के सारे फर्ज निभाए।

साभार : नवभारत टाइम्स

Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail

WatchNews 24x7

Leave a Reply

Your email address will not be published.