अयोग्य MLA /MP के उसी सदन के लिए उपचुनाव लड़ने पर रोक की मांग, SC ने केन्द्र से मांगा जवाब

अयोग्य MLA /MP के उसी सदन के लिए उपचुनाव लड़ने पर रोक की मांग, SC ने केन्द्र से मांगा जवाब
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नयी दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने दल-बदल कानून के तहत अयोग्य घोषित सांसद/विधायक के उसी सदन , जिसके लिये पहले पांच साल के लिये निर्वाचित हुये थे, के लिये उपचुनाव लड़ने पर प्रतिबंधित करने की याचिका पर बृहस्पतिवार को नोटिस जारी किया। प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने कांग्रेस की नेता जया ठाकुर की याचिका पर केन्द्र और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किये और दोनों से जवाब मांगा। इस याचिका में जया ठाकुर ने कहा है कि राजनीतिक दलों द्वारा दल बदल के कारण अयोग्यता संबंधी संविधान की 10वीं अनुसूची के प्रावधान को निरर्थक बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं।

याचिका में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 191 (1)(ई) और इसकी वजह से 10वीं अनुसूची के तहत अयोग्यता से प्रभावित सांसद या विधायक पर इसके प्रभाव पर अभी तक विचार करने का कोई अवसर नहीं आया था। अधिवक्ता वरिन्दर कुमार शर्मा के माध्यम से दायर इस याचिका में कहा गया है कि सदन का कोई सदस्य जब 10वीं अनुसूची के अंतर्गत अयोग्य हो जाता है तो उसे उसी सदन, जिसके लिये उसके निर्वाचन का कार्यकाल पांच साल था, के लिये सदन के इस कार्यकाल के दौरान दुबारा चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

संविधान में क्या है प्रावधान?
याचिका में कहा गया है कि एक बा 10वीं अनुसूची के तहत कार्रवाई होने और अयोग्यता क वजह से स्थान रिक्त होने के आधार पर संविधान के अनुच्छेद 191 (1)(ई) के तहत वह अयोग्य हो गया ओर उसे उस कार्यकाल के दौरान दुबारा चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। इसके परिणामस्वरूप जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 362(ए) के तहत उसका नामांकन रद्द किया जाना चाहिए। ठाकुर ने याचिका में कहा है कि यह लोकतंत्र में दलों की राजनीति के महत्व से संबंधित है और संविधान के प्रावधानों में प्रदत्त सुशासन के लिये सरकार की स्थिरता के लिये जरूरी है।

याचिका में इन राज्यों की घटनाओं की जिक्र
याचिका के अनुसार, ‘‘हमें यह ध्यान रखना है कि असंतुष्ट और दलबदल के बीच एक स्पष्ट अंतर स्पष्ट करना जरूरी है ताकि दूसरे संवैधानिक पहलुओं के मद्देनजर लोकतांत्रिक मूल्यों में संतुलन बनाये रखा जाये। इस तरह का संतुलन बनाये रखने में अध्यक्ष की भूमिका अहम होती है।’’ याचिका में मणिपुर, कर्नाटक और मप्र की घटनाओं का जिक्र करते हुये कहा गया है कि एक दल के विधायक दूसरे दल की सरकार के गठन में सहयोग के लिये दल बदल करते हैं, इस्तीफा देते हैं या अयोग्य किये जाते हैं।

समझें कर्नाटक का पूरा माजरा
याचिका के अनुसार, ‘‘इन अलोकतांत्रिक तरीको ने हमारे देश के संविधान और लोकतंत्र को तमाशा बना दिया है। इसका नतीजा यह हुआ है कि इस वजह से राज्य की जनता स्थिर सरकार से वंचित होती है और मतदाता समान विचार धारा के आधार पर अपनी पसंद के प्रतिनिधि का चयन करने के अधिकार से वंचित रहते हैं।’’ याचिका में कहा गया है कि 2019 में कर्नाटक में 17 विधायकों केइस्तीफा देने पर अध्यक्ष द्वारा उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण अयोग्य घोषित किया गया तथा इनमें से 11 दुबारा निर्वाचित हुए और इनमें से दस विधायक नयी सरकार में मंत्री बन गये।

आखिरकार याचिका में ऐसा क्या ?
याचिका में दावा किया गया है, ‘‘अध्यक्ष द्वारा तटस्थ रहने के संवैधानिक दायित्व के विपरीत काम करने का चलन बढ़ रहा है। यही नहीं, राजनीतिक दल भी खरीद फरोख्त और भ्रष्ट तरीके अपना रहे हैं, इस वजह से नागरिकों को स्थिर सरकार से वंचित किया जा रहा है। इस तरह के अलोकतांत्रिक तरीकों पर अंकुश लगाने की जरूरत है।’’ याचिका में पिछले साल मध्य प्रदेश मे हुये राजनीतिक संकट का भी जिक्र किया गया है। याचिका में कहा गया है कि किसी सदन का सदस्य, जो स्वेच्छा से अपने राजनीतिक दल की सदस्यता त्यागता है, भी 10वीं अनुसूची के दायरे में आता है और इसलिए वह भी अनुच्छेद 191 (1)(ई) के प्रावधान के तहत अयोग्यता के दायरे में आयेगा। याचिका में राजनीतिक दल बदल को राष्ट्रीय समस्या बताते हुये कहा गया है कि न्याय के हित में शीर्ष अदालत को इस मामले में हस्तक्षेप करके उचित आदेश देना चाहिए।

साभार : नवभारत टाइम्स

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