सेंट्रल विस्टा: असहमति जताने वाले जज ने कहा- जनभागीदारी महज औपचारिकता नहीं

सेंट्रल विस्टा: असहमति जताने वाले जज ने कहा- जनभागीदारी महज औपचारिकता नहीं
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नई दिल्ली
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने मंगलवार को कहा कि परियोजना मामले में उनकी असहमति वाले निर्णय में सार्वजनिक भागीदारी महज खानापूर्ति या औपचारिकता नहीं हो, जिसमें उन्होंने विरासत संरक्षण समिति (एचसीसी) से पूर्व अनुमति लिए जाने में विफल रहने जैसे विषयों का जिक्र है।

न्यायमूर्ति खन्ना ने यह भी कहा कि भूखंड संख्या के साथ मौजूदा और प्रस्तावित भूमि उपयोग का अधिकार देने वाले एक राजपत्र (गजट) अधिसूचना को वेबसाइट पर डाल देना पर्याप्त अनुपालन नहीं था। उल्लेखनीय है कि न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने 2:1 से अपने फैसले में कहा कि इस परियोजना के अंतर्गत नयी संसद भवन के निर्माण के लिये पर्यावरण मंजूरी और भूमि के उपयोग में परिवर्तन संबंधी अधिसूचना वैध हैं।

हालांकि, न्यायमूर्ति खन्ना ने नोटिस आमंत्रित करने वाली निविदा, कंसल्टेंसी प्रदान करने और शहरी कला आयोग के आदेश के पहलुओं पर न्यायमूर्ति खानविलकर और न्यायमूर्ति दिनेश महेश्वरी के बहुमत वाले फैसले से सहमति जताई। सेंट्रल विस्टा परियोजना के मामले में अपनी असहमति व्यक्त करते हुए न्यायमूर्ति खन्ना ने अलग से 179 पन्नों का निर्णय लिखा। उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली के लुटियन क्षेत्र में राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक तीन किमी के दायरे में केन्द्र की महत्वाकांक्षी ‘सेन्ट्रल विस्टा’ परियोजना को मंगलवार को हरी झंडी दे दी।

शीर्ष न्यायालय ने इस परियोजना के लिये पर्यावरण मंजूरी तथा दूसरी आवश्यक अनुमति देने में किसी प्रकार की खामी नहीं पाई। न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि केंद्र सरकार संशोधित भूमि उपयोग बदलावों को अधिसूचित नहीं कर सकी थी तथा उसने प्रक्रिया का अनुपालन किये बगैर और विरासत संरक्षण समिति से मंजूरी लिये बगैर ये बदलाव अधिसूचित किये। साथ ही, स्थानीय निकाय, दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) को इस समिति से संपर्क करना चाहिए था और उसके स्पष्टीकरण/ पुष्टि के बाद तथा उसकी सलाह पर आगे बढ़ना चाहिए था।

उन्होंने कहा कि सार्वजनिक भागीदारी महज खानापूर्ति या औपचारिकता नहीं हो तथा इसे अवश्य ही न्यूनतम तथा मूलभूत जरूरतों का अनुपालन करना चाहिए ताकि यह सार्थक और रचनात्मक हो सके। उन्होंने यह भी कहा, ‘पर्यावरण आकलन समिति एक ऐसी संस्था है जिसे सामूहिक रूप से सोच विचार करना था। अवश्य ही सोच-विचार किये जाने की बात उस वक्त झलकनी चाहिए थी जब निष्कर्षों को उचित ठहराने वाले कारण दर्ज किये गये। महज विरोधात्मक रुख को नये स्वरूप में पेश कर देना भर ही पर्याप्त नहीं है।’

न्यायमूर्ति खन्ना ने सेंट्रल विस्टा के छह भूखंडों के संबंध में 28 मार्च 2020 की तारीख से जारी भूमि उपयोग में संशोधन/ बदलाव की अंतिम अधिसूचना भी रद्द कर दी और केंद्र सरकार को वेबसाइट पर ड्राइिंग लेआऊट योजना, विवरणात्मक ज्ञापन आदि के साथ सात दिनों की अवधि में उपलब्ध कराने का भी निर्देश दिया। उन्होंने यह भी निर्देश दिया कि संबद्ध प्राधिकरण की वेबसाइट पर सार्वजनिक विज्ञापन जारी किया जाए और केंद्र सरकार सात दिनों के अंदर प्रिंट मीडिया में उपयुक्त रूप से इसे प्रकाशित करे।

शीर्ष न्यायालय ने कहा कि वह , ‘नीतिगत मामलों के अमल पर पूरी तरह से रोक नहीं लगा सकता और अदालतों से शासन करने का आह्वान नहीं किया जा सकता।’ केन्द्र ने सितंबर, 2019 में इस परियोजना की घोषणा की थी। इस परियोजना के अंतर्गत एक नये त्रिभुजाकार संसद भवन का निर्माण किया जाना है। इसमें 900 से 1200 सांसदों के बैठने की व्यवस्था होगी। इसके निर्माण का लक्ष्य अगस्त 2022 तक का रखा गया है, जब देश स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मनाएगा। इस परियोजना के तहत साझा केन्द्रीय सचिवालय 2024 तक बनने का अनुमान है।

साभार : नवभारत टाइम्स

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