Farmers Protest: घंटों तक चली बातचीत मगर नहीं निकला कोई हल, पढ़िए किसने क्या कहा ?

Farmers Protest: घंटों तक चली बातचीत मगर नहीं निकला कोई हल, पढ़िए किसने क्या कहा ?
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नयी दिल्ली
किसान संपूर्ण लीड बैठक कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े किसान, सातवें दौर की वार्ता में भी नहीं निकला समाधान नयी दिल्ली, चार जनवरी (भाषा) सरकार और किसान संगठनों के बीच तीन नए कृषि कानूनों को लेकर पिछले एक महीने से ज्यादा समय से जारी गतिरोध को समाप्त करने के लिए सोमवार को हुई सातवें दौर की वार्ता भी बेनतीजा रही। किसान संगठनों के प्रतिनिधि इन कानूनों को पूरी तरह निरस्त करने की अपनी मांग पर अड़े रहे जबकि सरकार कानूनों की ‘‘खामियों’’ वाले बिन्दुओं या उनके अन्य विकल्पों पर चर्चा करना चाह रही थी।

8 जनवरी को फिर होगी बातचीतवार्ता के पहले सत्र में एक घंटे चर्चा हुई और लगभग दो घंटे के ‘‘लंच ब्रेक’’ के बाद हुई दूसरे दौर की वार्ता में सिर्फ 30 मिनट की चर्चा के बाद भी जब कोई बात नहीं बन सकी, तो दोनों पक्षों ने आठ जनवरी को फिर से बातचीत करने का फैसला किया। बैठक के बाद पत्रकारों को संबोधित करते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने उम्मीद जताई कि अगली बैठक में सकारात्मक वार्ता होगी और समाधान निकलेगा लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘समाधान पर पहुंचने के लिए दोनों पक्षों की ओर से प्रयास किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘ताली दोनों हाथों से बजती हैं’’। तोमर ने कहा कि किसान संगठनों के कानून निरस्त करने की मांग पर ‘‘अड़े’’ रहने के कारण कोई रास्ता नहीं निकल पाया जबकि सरकार तीनों कानूनों पर बिंदुवार चर्चा चाहती थी ।

MSP पर कानून बनाने की मांगउन्होंने कहा, ‘आज की बैठक में कोई निर्णय नहीं हो पाया। सरकार और किसान संगठनों के बीच आठ जून को फिर से वार्ता होगी।’’ तोमर, रेलवे, वाणिज्य और खाद्य मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य राज्य मंत्री एवं पंजाब से सांसद सोम प्रकाश ने विज्ञान भवन में 40 किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत की। हालांकि किसान संगठनों ने आरोप लगाया कि मामले के समाधान में सरकार के ‘‘अहंकार की समस्या’’ आड़े आ रही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि वे तीनों कानूनों को निरस्त करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी रूप देने की अपनी मांग से पीछे नहीं हटेंगे। बहरहाल, वार्ता के दौरान दोनों पक्षों ने करीब एक घंटे की बातचीत के बाद लम्बा भोजनावकाश लिया ।

फोटों नहीं लेने और अलग भोजनकिसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने ‘लंगर’ से आया भोजन किया। हालांकि 30 दिसंबर की तरह आज केंद्रीय नेता लंगर में शामिल नहीं हुए और भोजनावकाश के दौरान अलग से चर्चा करते रहे जो करीब दो घंटे तक चली। यूनियन नेताओं ने कहा कि इस बार उन्होंने अलग भोजन करने का निर्णय लिया, क्योंकि पिछली बार मंत्रियों के साथ कुछ किसानों की सामने आई तस्वीरों से गलत धारणा उत्पन्न हुई थी। राष्ट्रीय किसान महासभा के अभिमन्यु कोहार ने कहा कि इसी वजह से हमने किसानों से मंत्रियों के साथ नहीं जाने और फोटो नहीं लेने व अलग भोजन करने को कहा था। हालांकि साथ ही उन्होंने कहा कि हमे मंत्रियों के साथ भोजन करने पर कोई आपत्ति नहीं है। उन्होंने कहा कि गुरुजी के लंगर में भोजन लेने से हम किसी को नहीं रोक सकते।

आगे की बनाएंगे रणनीतिगौरतलब है कि ये कानून सितंबर 2020 में लागू हुए और सरकार ने इन्हें महत्वपूर्ण कृषि सुधार के रूप में पेश किया और किसानों की आमदनी बढ़ाने वाला बताया। किसान संगठन इन कानूनों को वापस लेने पर जोर देते रहे ताकि नये कानून के बारे में उन आशंकाओं को दूर किया जा सके कि इससे एमएसपी और मंडी प्रणाली कमजोर होगी और वे (किसान) बड़े कारपोरेट घरानों की दया पर होंगे । किसान संगठनों के नेताओं ने कहा कि मंत्रियों ने उनसे कहा कि वे आपस में विचार विमर्श करने के बाद किसान संघों के पास आयेंगे । किसान नेता आगे के कदम के बारे में चर्चा के लिये मंगलवार को अपनी बैठक करेंगे। बैठक के दौरान दोनों पक्षों के बीच अनाज खरीद से जुड़ी न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्रणाली को कानूनी गारंटी देने की किसानों की महत्वपूर्ण मांग के बारे में चर्चा नहीं हुई ।

पिछले एक महीने से चल रहा अनशनपंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हजारों की संख्या में किसान कृषि संबंधी तीन कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर पिछले एक महीने से अधिक समय से दिल्ली की सीमा पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं महिला किसान अधिकार मंच की प्रतिनिधि कविता कुरूंगटी ने कहा, ‘सरकार को किसानों की ओर से स्पष्ट संदेश दिया गया कि वे कानूनों को निरस्त करने के अलावा किसी और बात पर सहमत नहीं है। अगली बैठक में कानूनों को निरस्त करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के मुद्दे पर वार्ता जारी रहेगी।’ भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) के नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि तीनों कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने के अलावा किसानों को कुछ भी मंजूर नहीं। उन्होंने कहा, ‘हम केवल एमएसपी मुद्दे और कानूनों को निरस्त किए जाने पर ही चर्चा करेंगे, मुद्दे को सुलझाने की राह में सरकार का अहंकार आड़े आ रहा है।’ भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) के अध्यक्ष जोगिन्दर सिंह उगराहां ने कहा कि किसान नेताओं ने सरकार को साफ कहा कि तीनों कानूनों को निरस्त किया जाए लेकिन मंत्री कानूनों पर बिन्दुवार चर्चा चाहते थे और उनका कहना था कि कानून निरस्त नहीं होंगे।

किसान संगठनों को नहीं है भरोसाराष्ट्रीय किसान महासभा के अभिमन्यु कोहार ने कहा, ‘सरकार कानूनों को रद्द करने के मुद्दे को सिर्फ घूमा रही है। बाद में उनकी ओर से कहा गया कि कानूनों पर बिन्दुवार चर्चा की जाए। एक बार तो कृषि मंत्री ने यह भी कहा कि सरकार कानूनों को रद्द करने को लेकर मानसिक रूप से तैयार नहीं है।’ दूसरी तरफ तोमर ने कहा, ‘हम चाहते थे कि तीनों कानूनों के जिन-जिन बिन्दुओं पर किसानों को आपत्ति हो उन पर हम विचार करें…सरकार खुले मन से उनसे चर्चा को तैयार है।’ बाद में जारी एक सरकार बयान में कहा गया कि दोनों तरफ से कदम आगे बढ़ाने की जरूरत है और सरकार सभी ‘‘सकारात्मक विकल्पों’’ को ध्यान में रखते हुए विचार करने के लिए तैयार है। यह पूछे जाने पर कि किसान संगठनों को सरकार पर भरोसा नहीं है, तोमर ने कहा कि सरकार और किसान संगठनों की रजामंदी के कारण ही आठ जनवरी की बैठक तय हुई है और इससे जाहिर है कि किसानों को सरकार पर भरोसा है। उन्होंने कहा, ‘सरकार किसानों के प्रति संवेदनशील है। कुल मिलाकर किसानों की मान्यता यह है कि सरकार इसका रास्ता ढूंढे और हमें आंदोलन समाप्त करने का अवसर दे।’

आठवें दौर की होगी बातचीतसातवें दौर की बैठक के बाद भी समाधान ना निकल पाने संबंधी एक सवाल के जवाब में कृषि मंत्री ने कहा कि समस्या के कानूनी पहलुओं के साथ देश का भी ध्यान रखना होता है। उन्होंने कहा, ‘‘देश में करोड़ों किसान हैं। उनकी अपनी-अपनी भावनाएं हैं। सरकार देशभर के किसानों के प्रति प्रतिबद्ध है। सरकार सारे देश को ध्यान में रखकर निर्णय करेगी।’’ एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है जल्दी समाधान होगा। रास्ता निकालने के लिए ताली दोनों हाथों से बजती है।’’ यह पूछे जाने पर कि क्या सुप्रीम कोर्ट के सुझाव के अनुरूप कमेटी गठित किया जाना संभव है तोमर ने कहा कि अदालत के मामले पर टिप्पणी करना सही नहीं है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के आसपास प्रदर्शन स्थल पर भारी बारिश और जलजमाव एवं जबर्दस्त ठंड के बावजूद किसान डटे हुए हैं ।

पहले दी गई श्रद्धाजंलि एक सरकारी बयान में कहा गया मौजूदा प्रदर्शन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों को श्रद्धांजलि देने के साथ इस बैठक की शुरुआत हुई। इससे पहले, सरकार और किसान संगठनों के बीच छठे दौर की वार्ता 30 दिसंबर को हुई थी। उस दौरान पराली जलाने को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने और बिजली पर रियायत जारी रखने की दो मांगों पर सहमति बनी थी। कई विपक्षी दलों और विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने भी किसानों का समर्थन किया है, वहीं कुछ किसान संगठनों ने पिछले कुछ हफ्तों में कृषि मंत्री से मुलाकात कर तीनों कानूनों को अपना समर्थन दिया।

साभार : नवभारत टाइम्स

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