EXPLAINER: सोशल मीडिया पर क्‍यों ट्रेंड हुआ ठाकुर ? क्या है 'गुरुदेव' रवींद्रनाथ का सही नाम

EXPLAINER: सोशल मीडिया पर क्‍यों ट्रेंड हुआ ठाकुर ? क्या है 'गुरुदेव' रवींद्रनाथ का सही नाम
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कोलकाता
भारत का राष्ट्रगान लिखने वाले बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले काफी चर्चा में हैं। साहित्य के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार जीतने वाले इकलौते भारतीय रवींद्रनाथ टैगोर के सही नाम को लेकर इन दिनों बहस छिड़ी हुई है। मामला दरअसल, एक टीवी चैनल के डिबेट से शुरू हुआ है। चैनल पर एक बंगाली पैनलिस्ट के रवींद्रनाथ को ‘ठाकुर’ कहने पर एंकर ने उन्हें टोक दिया और कहा कि सही नाम रवींद्रनाथ टैगोर है, ठाकुर नहीं। इसके बाद सोशल मीडिया पर ‘टैगोर’ और ‘ठाकुर’ को लेकर लोगों के बीच इतनी बहस हुई कि ट्विटर पर ‘ठाकुर’ ट्रेंड करने लगा।

क्या है मामला?
मामला यह है कि एक टीवी चैनल पर बंगाली पैनलिस्ट ने नाम लिया, जिसके बाद एंकर ने उन्हें ‘करेक्ट’ करते हुए कहा कि वह पहले रवींद्रनाथ ठाकुर का नाम सही से लें। यह रवींद्रनाथ टैगोर है, रवींद्रनाथ ठाकुर नहीं। इस पर पैनलिस्ट ने भी एंकर जवाब देते हुए कहा कि ‘नहीं, उनका नाम रवींद्रनाथ ठाकुर है।’ 15 सेकंड का यह वीडियो क्लिप इसके बाद सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। अब हर कोई इस पर अपनी जानकारी के हिसाब से कमेंट कर रहा है। कई लोगों को कहना है कि राष्ट्रगान लिखने वाले गुरुदेव का सही नाम रवींद्रनाथ ठाकुर ही है लेकिन अंग्रेजों ने उच्चारण की समस्या के चलते उन्हें टैगोर बुलाना शुरू कर दिया, जिसके बाद से उनका यही नाम ज्यादा प्रचलित हो गया।

टैगोर या ठाकुर? क्या है सही
ट्विटर पर इन बहसों के बीच यह सवाल तो उठने ही लगा है कि आखिर गुरुदेव के नाम में इस्तेमाल किया जाने वाले उनका सही सरनेम क्या है? ज्यादातर जगहों पर गुरुदेव का नाम रवींद्रनाथ टैगोर लिखा ही मिलता है। नोबल पुरस्कार समिति की आधिकारिक वेबसाइट पर गुरुदेव के बारे में दर्ज दस्तावेज में भी उनका नाम टैगोर ही लिखा है। इसके अलावा गुरुदेव ने महात्मा गांधी तथा अन्य नेताओं को जो पत्र लिखे हैं, उनमें उन्होंने अपना परिचय रवींद्रनाथ टैगोर के रूप में ही दिया है।

इन सबके बावजूद अनेक स्थानों पर गुरुदेव का नाम रवींद्रनाथ ठाकुर भी देखने को मिलता है। बताया जाता है कि गुरुदेव के नाम में लिखा ठाकुर ही उनका सही नाम है। इस संबंध में कई लेख भी सामने आए हैं, जिनमें ठाकुर के पक्ष में दलीलें दी गई हैं। कहा जाता है कि रवींद्रनाथ के पूर्वज कोलकाता के पास गोविंदपुर नाम के मल्लाहों के एक गांव में जाकर बस गए थे। गांव के लोग ब्राह्मण होने के नाते उन्हें ‘ठाकुर’ बुलाने लगे। ठाकुर का मतलब ‘भगवान’ या ‘स्वामी’ होता है, जो अक्सर ब्राह्मणों के संबोधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है।

यहीं से गुरुदेव के पूर्वजों के नाम के साथ ‘ठाकुर’ सरनेम जुड़ गया। रवींद्रनाथ के पूर्वज ऐसे कारोबार से संबंधित थे, जहां उनका अक्सर अंग्रेज अधिकारियों से संपर्क होता था। अंग्रेज ‘ठाकुर’ का सही से उच्चारण नहीं कर पाते थे, इसलिए वे उन्हें ‘टागौर’ (Tagour) या ‘टैगोर’ (Tagore) पुकारने लगे। इसके बाद से ही ठाकुर परिवार के नाम के साथ टैगोर शब्द जुड़ गया।

पहले भी हो चुका है नाम पर विवाद
इससे पहले भी रवींद्रनाथ टैगोर के नाम को लेकर राजनीतिक विवाद हो चुका है। साल 2019 में गुजरात विधानसभा में विपक्ष के नेता परेश धनानी ने राज्य बोर्ड की कक्षा 6 की पाठ्य पुस्तक में टैगोर की बजाय ‘ठाकुर’ लिखने पर आपत्ति जताई थी। धनानी ने कहा था कि यह छद्म राष्ट्रवादी सरकार का असली चेहरा है। सरकार बताए कि भारत के राष्ट्रगान के लेखक का सही नाम क्या है? रवींद्रनाथ ?

इस पर जवाब देते हुए गुजरात सरकार के मंत्री नितिन पटेल ने बताया था कि दुनिया जानती है कि रवींद्रनाथ जी का परिवार अपने नाम के साथ ‘ठाकुर’ लिखता था। बाद में उन्हें ‘टैगोर’ बुलाया जाने लगा। इस बात की पुष्टि के लिए पर्याप्त संदर्भ उपलब्ध हैं।

साभार : नवभारत टाइम्स

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