अफ्रीका में सबसे लंबे सूडान के डिंका, ऐसी जनजाति जिसमें बेटियां होती हैं अमीरी का पैमाना

अफ्रीका में सबसे लंबे सूडान के डिंका, ऐसी जनजाति जिसमें बेटियां होती हैं अमीरी का पैमाना
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खार्तूम
अफ्रीका के कई देशों में रहने वाली आदिवासी प्रजातियां पुरातन काल से चले आ रहे रिवाजों का आज भी पालन करती हैं। इनकी कई परंपराएं बाकी दुनिया से बिल्कुल अलग होती हैं। इनमें से एक है दक्षिण सूडान में नील नदी के पूर्वी और पश्चिमी तट पर निवास करने वाली सबसे बड़ी जनजाति-डिंका। पेशे से जियोफिजिसिस्ट रत्नेश पांडे ने सूडान में मिले अनुभवों को नवभारत टाइम्स ऑनलाइन के साथ साझा किया है। यहां जानें इस खास जनजाति की कहानी-

कौन होते हैं डिंका?
सैकड़ों वर्षों पहले, डिंका लोग खुद को मोईनजंग कहते थे जिसका मतलब होता है ‘लोगों के लोग’। अफ्रीका में डिंका सबसे लंबे कद की जनजाति है। यह नील नदी के बेहरूनगजल के क्षेत्र में रहती है। पशुपालन और खेती इनका मुख्य कार्य है। डिंका समूह मुख्य रूप से ज्वार, बाजरा, मूंगफली, सेम, मक्का (मक्का) और अन्य फसलें उगाते है। डिंका महिलाएं ज्यादातर कृषि करती हैं, लेकिन डिंका पुरुष बागवानी स्थलों के लिए जंगल साफ करते हैं। डिंका आमतौर पर प्रति वर्ष दो बार फसल उगाते है हैं। डिंका जनजाति में लगभग 14 उप-समुदाय होते हैं। यह दक्षिण सूडान में सबसे बड़ी जनजाति है। डिंका लोग मिलनसार होते है, सामाजिक होते है और उन्हें एक दूसरे से अपना सुख दुःख साझा करना बहुत पसंद होता है।

मौसम के साथ बदलती जीवनशैली
सूडान के डिंका आदिवासियों की जीवन शैली पर समय का कोई असर नहीं पड़ा है। ये अब भी अपनी परंपरा और संस्कृति की डोर में बंधे हैं। मौसम के लिहाज से बस इनकी जीवनशैली बदलती रहती हैं। बारिश के मौसम में ये स्थायी सवाना की बस्तियों में रहते हैं और बाजरा, मूंगफली, सेम, मक्का जैसे अनाजों की खेती करते हैं, जबकि गर्मियों में ये नदी के किनारे के इलाकों में मवेशियों के झुंड के साथ नजर आते हैं।

सबसे ऊंचे अफ्रीकाई
डिंका आदिवासियों परंपरा के अनुसार लड़कों के युवा होने पर उन्हें एक बैल तोहफे में दी जाती है, जिसका नाम युवक के नाम पर ही रखा जाता है। जैसे-जैसे बैल की सींगे बढ़ती हैं, युवक उन्हें अलग आकार देकर सजाता है। ज्यादातर डिंका कपड़ों की जगह जानवरों की खालों का इस्तेमाल करते हैं और शरीर की सजावट राख से करते हैं। राख के इस्तेमाल के पीछे एक वजह मच्छरों से बचाव भी है। डिंका जनजाति रवांडा के तुत्सी जनजाति के जैसे ही अफ्रीका के सबसे ऊंचे और लंबे लोग माने जाते है। डिंका जनजाति के पुरुषों की औसत ऊंचाई 182.6 सेमी (5 फीट 11.9 इंच) के आस-पास तक की होती है और महिलाओं की औसत ऊंचाई 176.4 सेमी (5 फ़ीट 9.4 इंच) तक की होती है।

संस्कृति का गौरव- मवेशी
डिंका समुदाय मुख्य रूप से पारंपरिक कृषि और पशुधन पर निर्भर करते हैं, मवेशी पालन डिंका समुदाय के लिए सांस्कृतिक गौरव का सबब होता है। डिंका लोग मवेशी पालन व्यावसायिक लाभ या मांस के लिए नहीं, बल्कि सांस्कृतिक प्रदर्शन, अनुष्ठान, दूध, भोजन विवाह और ‘दहेज’ के लिए करते हैं। अपवाद स्वरूप कभी-कभी कुछ विशेष परिस्थितियों में जैसे- विवाह के समय भोजन के लिए गायों का वध करते हैं।

सिर्फ एक वक्त खाना
सूखे मौसम के दौरान डिंका समुदाय अपने मवेशियों को नदियों, घास के इलाकों तक सीमित रखते हैं, लेकिन बरसात के मौसम में बाढ़ और पानी से बचने के लिए उन्हें उचाई वाले आधार पर ले जाते हैं। डिंका समुदाय गर्म जलवायु में जीवित रहने के लिए सर्वश्रेष्ठ विकसित हुए हैं। डिंका समुदाय दिन के समय नहीं खाते है। डिंका लोग शाम के समय अग्नि के चारों ओर बैठकर भोजन करते है। डिंका समुदाय के भोजन में ज्यादातर दूध, सब्जियां, मछली शामिल होती हैं।

कम सामान लेकर चलते हैं
डिंका समुदाय में गायों की बलि नहीं दी जाती, कभी-कभी अपवाद को छोड़कर। डिंका समुदाय का नेतृत्व समाज के एक प्रमुख द्वारा किया जाता है जो चराई स्थानों का चयन करता है। प्रत्येक डिंका परिवार बड़ी संख्या में मवेशियों और कुछ बकरियों का पालन करता है। डिंका समुदाय एक स्थान से दूसरे स्थान तक अपने मवेशियों के साथ घूमता रहता है इस कारण डिंका लोग अपने साथ बहुत अधिक सामान नहीं रखते हैं, बस कुछ मिट्टी के बर्तन, मटके, हाथ ढकने के लिए महिलाओं द्वारा बनाये गये रूमाल और शिकार के काम के लिए भाले।

गायों से ऐसे निकलता है दूध
डिंका समुदाय अपनी उन गायों से भी दूध लेना संभव करते है जो दूध देना बंद कर चुकी होती है और इसके लिए ये लोग एक विशेष तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। इसके अंतर्गत डिंका समुदाय का 9 या 10 साल का बच्चा उस गाय के मूत्र मार्ग मे अपने मुंह से हवा भरता है और गाय के मूत्र मार्ग को अपने दोनों हाथो से मसाज करता है। इस क्रिया को लगभग चार से पांच मिनट तक करता रहता है और इसके बाद आश्चर्यजनक रूप से गाय दूध देना शुरु कर देती है। डिंका समुदाय का प्यार उनके पशुधन के लिए स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

लड़कियां होती हैं अमीरी का पैमाना
खेती और पशुपालन डिंका जनजाति का प्राथमिक व्यवसाय है जबकि डिंका महिलाएं कई अनाज और सब्जियों जैसे, कद्दू, बाजरा, कसावा, मक्का और तिल का प्रबंधन करती हैं, वहीं डिंका पुरुष पशु शिविरों का प्रबंधन करते हैं। डिंका समुदाय मे किसी परिवार मे लड़की का होना लड़की के परिवार के लिए खुशहाली और धनी होने का पैमाना माना जाता है क्योंकि जिस परिवार मे जितनी ज्यादा लड़किया होंगी वह परिवार उतना ही धनी और खुशहाल होता चला जाएगा। दरअसल, जब भी कोई लड़का, किसी लड़की से शादी करेगा तो वह दहेज के रूप में लड़की के परिवार को बहुत सारा भुगतान करता है।

डिंका समुदाय मे जब दो लोग एक ही लड़की से शादी के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हों तो इस प्रतिस्पर्धा मे जो भी प्रतिस्पर्धी व्यक्ति अधिक से अधिक गायों और पैसों का भुगतान लड़की के परिवार को करता है वह व्यक्ति महिला को पाने का अधिकारी हो जाता है। प्रतिस्पर्धा के दौरान गायों की मात्रा 200 के आस पास तक पहुंच जाती है जिसे उस प्रतिस्पर्धी व्यक्ति को महिला के परिवार को देना पड़ता है।

ऐसे तय होती है शादी
डिंका समाज मे जानवरों मे गाय का और इंसानों में औरतों और लड़कियों का स्थान सर्वाधिक श्रेष्ठ माना जाता है और जिनके पास ये दोनों होते हैं वह अपने-आप को संसार का सबसे भाग्यशाली इंसान मानता है। डिंका जनजाति मे जब शादी करने की बात आती है, तो एक डिंका पुरुष को लड़की के परिवार को कम से कम 80 गायों और पैसों का भुगतान करना होता है। शादी करने के इच्छुक व्यक्ति सर्वप्रथम लड़की के परिवार के पुरुष सदस्यों के पास जाकर उनसे लड़की का हाथ मांगता है और उन्हे दहेज के तौर पर गाय भेंट करने का आश्वासन देता है।

इसके बाद लड़की के परिवार के पुरुष सदस्य शादी के इच्छुक व्यक्ति के आर्थिक हैसियत के बारे मे पूछताछ करते हैं। एक बार जब लड़की के परिवार के पुरुष सदस्य शादी के इच्छुक व्यक्ति के आर्थिक हैसियत से संतुष्ट हो जाते है, तब लड़के को लड़की के मां और परिवार की महिला सदस्यों के पास उनकी इजाजत लेने के लिए भेज देते हैं। सब तय होने के बाद शादी के लिए लड़का गायों और पैसों का भुगतान करता है। यही नहीं, लड़की के पूरे परिवार को भोज देता है और उसके बाद लड़की को लेकर अपने घर पर चला जाता है।

3000 ईसा पूर्व में आए थे
दक्षिण सूडान मे ज्यादातर ईसाई हैं लेकिन उनके अलावा बड़ी संख्या में पारंपरिक अफ्रीकी आदिम जनजाति भी रहती है जो प्रकृति की पूजा करती है। नास्तिक और मुसलमान भी यहां पर निवास करते हैं। ऐतिहासिक रूप से 3000 ईसा पूर्व डिंका जनजाति शिकारी कबीले के रूप मे सूडान के दक्षिण हिस्से में बस गए थे और 1500 ईस्वीं की शुरुआत से ये पूरे सूडान क्षेत्र में फैलते चले गए।

कई सदियों तक ऑटोमन राज
डिंकालैंड पर तुर्की के ऑटोमन साम्राज्य का अधिकार कई शताब्दियों तक रहा जिसका अंत ब्रिटिश साम्राज्य ने 1880 में किया। उसके बाद तब से लेकर 1956 तक यह ब्रिटिश साम्राज्य का उपनिवेश रहा। ब्रिटिश उपनिवेश से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद खार्तूम सरकार के संपूर्ण जनजातीय समूह के इस्लामीकरण करने की कोशिश के फलस्वरूप भयंकर गृह युद्ध के बाद दक्षिण सूडान को 9 जुलाई 2011 को जनमत-संग्रह के बाद आजादी मिली।

इस जनमत-संग्रह में भारी संख्या (कुल मत का 98.83%) में देश की जनता ने सूडान से अलग एक नए राष्ट्र के निर्माण के लिए मत डाला। यह विश्व का 196वां स्वतंत्र देश, संयुक्त राष्ट्र का 193वां सदस्य और अफ्रीका का 55वां देश है। इस प्रकार 9 जुलाई 2011 को विश्व के मानचित्र पर यूनाइटेड सूडान के स्थान पर दो नए देश ग्लोब पर अंकित हुए जिनमें से एक इस्लामिक बहुल उत्तरी सूडान और दूसरा जनजातीय और क्रिस्चियन बहुल दक्षिण सूडान बना।

जुलाई 2012 में देश ने जिनेवा सम्मेलन पर हस्ताक्षर किए। दक्षिण सूडान दस राज्यों (उत्तरी बहर अल गजल, पश्चिमी बहर अल गजल, लेक्स, वर्राप, पश्चिमी इक्वेटोरिया, मध्य इक्वेटोरिया, पूर्वी इक्वेटोरिया, जोंगलेई, यूनिटी और उपरी नील) में विभाजित है।

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