गायों के लिए जान लेने से भी नहीं हिचकती है अफ्रीका की मुंदरी जनजाति, AK 47 राइफल से रात दिन करते हैं रक्षा

गायों के लिए जान लेने से भी नहीं हिचकती है अफ्रीका की मुंदरी जनजाति, AK 47 राइफल से रात दिन करते हैं रक्षा
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अफ्रीका में रहने वाली जनजातियों के जीवन में गायों का महत्व बहुत ज्यादा होता है लेकिन सूडान की एक जनजाति ऐसी है जो इनके लिए जान दे भी सकती है और जान ले भी सकती है। पिछले 11 साल से तंजानिया में कार्यरत जियोफिजिसिस्ट रत्नेश पांडे ने नवभारत टाइम्स ऑनलाइन के लिए शताक्षी अस्थाना से बातचीत में बताया है कि दक्षिण सूडान देश में रहने वाली मुंदरी जनजाति के लिए गाय का होना कैसे जीवन के समान है। गाय के बिना उनकी जिंदगी मृतक के समान होती है। मुंदरी जनजाति के लिए गायें कीमती होती हैं। यही नहीं, ये मुंदरी जनजाति के लिए चलते-फिरते दवा और पैसों का भंडार हैं और दोस्त जैसी भी हैं। मुंदरी अपने मवेशियों के साथ ही सोते हैं और बंदूक की नोक पर इनकी रक्षा करते हैं। यहां जानते हैं मुंदरी जनजाति की कहानी…

Mundari Tribe: अफ्रीका के सूडान की मुंदरी जनजाति का जीवन गायों के इर्द-गिर्द ही घूमता है। ये लोग गायों के दूध, गोमूत्र, गोबर हर चीज का इस्तेमाल करते हैं और गायों के लिए किसी की जान ले भी सकते हैं और अपनी जान दे भी सकते हैं।

गायों के लिए जान लेने से भी नहीं हिचकती है अफ्रीका की मुंदरी जनजाति, AK-47 राइफल से रात-दिन करते हैं रक्षा

अफ्रीका में रहने वाली जनजातियों के जीवन में गायों का महत्व बहुत ज्यादा होता है लेकिन सूडान की एक जनजाति ऐसी है जो इनके लिए जान दे भी सकती है और जान ले भी सकती है। पिछले 11 साल से तंजानिया में कार्यरत जियोफिजिसिस्ट रत्नेश पांडे ने

नवभारत टाइम्स ऑनलाइन

के लिए शताक्षी अस्थाना से बातचीत में बताया है कि दक्षिण सूडान देश में रहने वाली मुंदरी जनजाति के लिए गाय का होना कैसे जीवन के समान है। गाय के बिना उनकी जिंदगी मृतक के समान होती है। मुंदरी जनजाति के लिए गायें कीमती होती हैं। यही नहीं, ये मुंदरी जनजाति के लिए चलते-फिरते दवा और पैसों का भंडार हैं और दोस्त जैसी भी हैं। मुंदरी अपने मवेशियों के साथ ही सोते हैं और बंदूक की नोक पर इनकी रक्षा करते हैं। यहां जानते हैं मुंदरी जनजाति की कहानी…

कौन होते हैं मुंदरी?
कौन होते हैं मुंदरी?

मुंदरी दक्षिण सूडान का एक छोटा सा जातीय समूह है। मुंदरी आदिवासी की मुख्य भूमि दक्षिण सूडान की राजधानी जुबा से लगभग 75 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। मुंदरी एक चरवाहे के रूप में अपना जीवन जीते हैं। इनके लिए अपने प्राणों से बढ़कर अपने मवेशियों की देखरेख है। मुंदरी लोग गाय को अंकोले-वातुसी कहते हैं। मुंदरी लोगों की जान गायों में बसती है। मुंदरी लोग गायों को ‘मवेशियों का राजा’ मानते हैं। इनकी गायों की उचाई सात से आठ फुट तक ऊंची होती हैं और इनकी कीमत भारतीय रुपये में करीब चालीस हजार के आसपास होती है। इनकी गायों की कीमत से ही अनुमान लगाया जा सकता है कि आखिर मुंदरी के लिए ये जानवर इतने कीमती क्यों हैं।

गायों के लिए हत्या से भी गुरेज नहीं
गायों के लिए हत्या से भी गुरेज नहीं

मुंदरी जनजाति के लिए उनके जानवर, विषेशकर गाय ही सब कुछ हैं। मुंदरी गायों की हत्या को सबसे बड़ा पाप मानते हैं। इस कारण शायद ही कभी इस समुदाय में गायों की हत्या हुई है। ये जानवर मुंदरी के लिए एक स्टेटस सिंबल हैं। वे दहेज के रूप में भी इनका इस्तेमाल करते हैं। मुंदरी अपने गायों की रक्षा के लिए अपनी जान भी देते हैं और दूसरे की जान ले भी लेते हैं। इस समुदाय में बच्चे और बड़े दोनों गायों की देखभाल करते हैं। इन लोगों के लिए गायें ही सबकुछ है। ये लोग गायों को गर्मी से बचाने के लिए एक विशेष प्रकार की भभूत लगाते हैं, गायों को पानी पिलाने के लिए तरह-तरह के जतन करते हैं, गायों को किसी भी प्रकार की चोट ना पहुंचे इसलिए रात में उनकी चौकीदारी करते हैं ताकि जंगली जानवर उनका शिकार ना कर पाएं। मुंडारी जनजाति गायों के दूध के साथ-साथ उसका मूत्र का भी सेवन करते हैं। उनका यह मानना है कि गौमूत्र उनको गंदगी से दूर रखता है। इस जनजाति का गायों से प्रेम बहुत गहरा है। गायों के लिए ये अपना पूरा जीवन समर्पित करते हैं।

बच्चों से ज्यादा गायों का ध्यान
बच्चों से ज्यादा गायों का ध्यान

मुंदरी जनजाति असल में गौ पूजक जनजाति हैं। ये गायों को माता मानते है और मां की तरह गायों की सेवा भी करते हैं। मुंदरियों का गायों से लगाव का आलम यह है कि ये अपने बच्चों का ध्यान रखें या ना रखे, गायों का ध्यान जरूर रखते हैं। दक्षिण सूडान का यह भाग ज्यादातर सूखे की चपेट में रहता है क्योंकि यहां बारिश बेहद कम होती है और गर्मी बहुत ज्यादा पड़ती है। इस कारण पानी की समस्या बनी रहती है लेकिन फिर भी मुंदरी जाति के लोग गायों को सुखी रखने के लिए तरह-तरह के जतन करते हैं। मुंदरी गायों को गर्मी और धूप से बचाने के लिए उनके शरीर पर एक विशेष प्रकार की भभूत लगाते हैं जिससे वे अपने खुद के शरीर पर भी मलते हैं। गायों से इस जनजाति का प्रेम इतना गहरा है कि जब किसी कारण से किसी गाय की मृत्यु हो जाती है तो मुंदरी लोग फूट-फूटकर रोने लगते हैं और अत्यधिक शोकग्रस्त हो जाते हैं। यहां तक कि कुछ समय के लिए खाने-पीने से मुंह मोड़ लेते हैं। मुंदरी समाज में किसी गाय की मृत्यु मुंदरी लोगों के लिए किसी अपने सगे-संबंधित के मृत्यु के समान होती है।

रातभर करते हैं निगरानी
रातभर करते हैं निगरानी

मुंदरी लोग जंगली हिंसक जानवरों से अपनी गायों को बचाने के लिए रात में जागकर गायों के झुंड के पास पहरा देते हैं और इस तरह से मुंदरी समूह रात में पहरा देने के लिए पारियों का चुनाव करतें है। एक रात एक मुंदरी समूह गायों के लिए पहरा देता है तो दूसरी रात कोई दूसरा समूह गायों की सुरक्षा के लिए पहरा देगा। यहां लोग अपनी कीमती गायों के साथ रात में सोते भी हैं। वे उनसे महज 6-7 फुट की दूरी पर अपनी रात बिताते हैं। मुंदरी लोग अपनी गायों की सुरक्षा के लिए स्वचालित राइफल और दूसरे हथियारों का उपयोग करते हैं। मुंदरी लोग गायों के दूध से लेकर मूत्र भी पीते हैं। उनका मानना है कि इनमें अनेक गुण होते हैं और जो भी इनका सेवन करेगा वह निरोगी होगा। कई बार मुंदरी लोग गायों के थन से सीधे दुग्धपान करते हैं। गायों के साथ इनका अपनत्व इतना गहरा होता है कि गायें कहीं भी हों मुंदरियों की एक आवाज पर अपने सुरक्षित होने का उत्तर देती हैं।

दूध, गोमूत्र या गोबर…हर चीज का इलाज
दूध, गोमूत्र या गोबर...हर चीज का इलाज

मुंदरी लोग गायों के मूत्र से स्नान भी करते हैं और उनका यह मानना होता है कि गोमूत्र उनको गंदगी और बीमारियों से दूर रखता है। मुंदरियों के सारे धार्मिक, सांस्कृतिक, जन्म और विवाह में गायों का महत्वपूर्ण स्थान होता है, इनका कोई भी कार्यक्रम बिना गायों के संपूर्ण नहीं होता। गाय न सिर्फ इनकी आर्थिक धुरी होती हैं बल्कि इनकी सामजिक प्रतिष्ठा की भी परिचयायक होती हैं, जिसके पास जितनी गायें वह उतना ही सम्मानित। दक्षिण सूडान में कड़ी धूप और अन्य कारणों से इन्फेक्शन का खतरा बना रहता है। गर्मी से बचने और मच्छर भगाने के लिए इस जनजाति के लोग गोबर के कंडे की राख को पाउडर की तरह शरीर पर लगाते हैं। मुंदरी पुरुष और औरतें गो-मूत्र से अपने बालों को धोते हैं, गो-मूत्र में पाया जाने वाला अमोनिया इनके बालों को लाल कर देता है और ये लाल बाल इनके समाज में पवित्रता की निशानी होती है जिसके मूल में गो-मूत्र होता है। गाय का दूध, मूत्र और गोबर इस समाज में पवित्र माना जाता है। ये लोग रात को गायों को मिट्टी लगाते हैं। उनका मानना है कि इससे गायों को किसी तरह का इंफेक्‍शन नहीं होता है।

बिना गाय जीवनसाथी भी नहीं..
बिना गाय जीवनसाथी भी नहीं..

इस जनजाति में लोगों के बीच झड़प किसी क्षेत्र, संपत्ति या भूमि जैसे आम संसाधनों को लेकर नहीं होती है बल्कि वे लोग गायों को लेकर लड़ते हैं जो इस जनजाति में इंसानों के प्राणों से भी अधिक कीमती समझी जाती हैं। इस जनजाति में यदि आपसी कलह में किसी की हत्या हो जाती है तो गाय देने पर हत्या की सजा माफ तक हो जाती है। मतलब जिस व्यक्ति के हाथों संघर्ष के दौरान प्रतिद्वंदी की हत्या हो जाती है, वह हत्यारा व्यक्ति प्रतिद्वंदी के परिवार को गाय देकर अपनी सजा को माफ करवा लेता है। इस जनजाति में लड़की वाले अपनी लड़की की शादी उसी लड़के के साथ करते हैं जो उपहार स्वरूप लड़की वालों के परिवार को कम से कम 200 गायें देता है। इस जनजाति में कम से कम 200 मवेशी होने पर ही यह तय किया जाता है कि युवक शादी के योग्य है या नहीं। अगर लड़के के पास गाय नहीं तो उसकी शादी भी नहीं हो पाती है। इस जनजाति में गायों के अत्यधिक महत्व को देखते हुए वे परिवार जिनके पास कम संख्या में गायें होती हैं, वे अपने कुटुंब में गायों की संख्या बढ़ाने के लिए चोरी की भी कोशिश करते हैं। ये लोग रात के अंधेरे में किसी दूसरी जनजाति के गांवों में घुसकर उनकी गायों को चुराने की कोशिश करते हैं जिस दौरान उन लोगों के बीच खूनी संघर्ष होता है जिसमें कई लोगों की जान भी चली जाती है।

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