1 लाख रुपये का नोट जारी करने की तैयारी में यह देश, ऐसे तीन नोटों से मिलेगा 1 किलो चावल

1 लाख रुपये का नोट जारी करने की तैयारी में यह देश, ऐसे तीन नोटों से मिलेगा 1 किलो चावल
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काराकस
कभी तेल के बूते अगाध संपन्नता देखने वाले दक्षिण अमेरिकी देश में अब लोगों के भूखों मरने की नौबत आ गई है। इस देश की आर्थिक हालात दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है। यहां महंगाई का आलम यह है कि लोग बैग और बोरों में भरकर नोट लेकर जाते हैं और हाथ में टंगी पालीथीन में घर के लिए सामान खरीदकर लाते हैं। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, नोट के इतने बड़े अवमूल्यन के कारण यह देश अब बड़े मूल्य वाले नोटों को छापने की योजना बना रहा है।

छापने जा रहा वेनेजुएला
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि वेनेजुएला की सरकार अब 1 लाख बोलिवर (वहां का रुपया) का नोट छापने जा रही है। इसके लिए इटली की एक फर्म से 71 टन सिक्योरिटी पेपर का आयात किया गया है। इस फर्म का स्वामित्व इटली की कंपनी बैन कैपिटल के पास है, जो दुनिया के कई देशों को सिक्योरिटी पेपर का निर्यात करती है। कस्टम की रिपोर्ट में सिक्योरिटी पेपर को मंगाए जाने की बात का खुलासा हुआ है।

1 लाख के नोट में आएगा आधा किलो चावल
वेनेजुएला में अगर 1 लाख बोलिवर के नोट छापे जाते हैं तो यह सबसे बड़े मूल्यवर्ग का नोट बन जाएगा। हालांकि इसकी कीमत तब भी 0.23 यूएस डॉलर ही होगी। इतने रुपये में यहां केवल दो किलो आलू या आधा किलो चावल ही खरीद पाएंगे। वहां की सरकार लोगों को सहूलियत देने के लिए बड़े मूल्यवर्ग के नोटों को छापने की योजना बना रही है। जिससे आम लोग बड़ी संख्या में नकदी को लेकर जाने से बचेंगे।

लगातार सातवें साल मंदी की चपेट में अर्थव्यवस्था
कोरोना वायरस लॉकडाउन और तेल से मिलने वाले पैसों के खत्म होने से वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था लगातार सातवें वर्ष मंदी में है। आशंका जताई जा रही है कि इस साल के अंत तक इस देश की अर्थव्यवस्था 20 फीसदी सिकुड़ जाएगी। भ्रष्टाचार के कारण इस देश की अर्थव्यवस्था और बदतर होती जा रही है। इस समय वेनेजुएला में भ्रष्टाचार इतना अधिक है कि आपको पैदल चलने के लिए रिश्वत भी देनी पड़ सकती है।

लगातार कमजोर हो रही है वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था
वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था की हालत अब यह हो गई है कि देश को सोना बेचकर सामान खरीदना पड़ रहा है। वेनेजुएला में लाखों लोग भूखे पेट सोते हैं। क्योंकि उनके पास खाने के लिए भोजन नहीं है। एक रिपोर्ट के अनुसार, वेनेजुएला में लगभग 700,000 लोग ऐसे हैं जिनके पास दो वक्त का खाना खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। यूनाइटेड नेशन फूड प्रोग्राम एजेंसी ने फरवरी में कहा था कि वेनेजुएला के हर तीन में से एक नागरिक के पास खाने के लिए भोजन नहीं है। वर्तमान समय में कोरोना के कारण हालात और ज्यादा खराब हो गए हैं।

देश छोड़ रहे वेनेजुएला के लोग
रिपोर्ट के अनुसार, 2013 के बाद लगभग 30 लाख लोग अपने देश को छोड़कर पड़ोसी देश ब्राजील, कंबोडिया, इक्वाडोर और पेरू में शरण लिए हुए हैं। हालात यहां तक खराब हैं कि इन देशों ने वेनेजुएला की सीमा पर अपनी फौज को तैनात किया हुआ है। वर्तमान समय में यह दुनिया के किसी देश में हुआ सबसे बड़ा विस्थापन है।

वेनेजुएला का असली राष्ट्रपति कौन? दुनिया को नहीं पता
आज की तारीख में यह साफ नहीं है कि वेनेजुएला का राष्ट्रपति कौन है। 2019 की शुरुआत में यहां राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आए थे, जिसमें पहले से सत्ताधारी चुनाव जीत गए, लेकिन उन पर वोटों में गड़बड़ी करने का आरोप लगा। चुनाव में मादुरो के सामने खुआन गोइदो थे, जो इसी महीने संसद में विपक्ष के नेता बने हैं। इससे पहले तक उन्हें वर्ल्ड पॉलिटिक्स में कोई नहीं जानता था, लेकिन आज वह खुद को राष्ट्रपति बता रहे हैं। चुनावी नतीजों के बाद मादुरो ने कुर्सी छोड़ने से इनकार कर दिया, वहीं गोइदो का कहना है कि उनके पास अगला चुनाव न होने तक अंतरिम राष्ट्रपति बनने का संवैधानिक अधिकार है।

वेनेजुएला की ऐसी हालत हुई क्यों है
वेनेजुएला एक समय लैटिन अमेरिका का सबसे अमीर देश था। वजह, इसके पास सऊदी अरब से भी ज़्यादा तेल है। सोने और हीरे की खदानें भी हैं, लेकिन अर्थव्यवस्था पूरी तरह तेल पर टिकी है। सरकार की 95% इनकम तेल से ही होती रही। 1998 में राष्ट्रपति बने ह्यूगो शावेज ने लंबे समय तक कुर्सी पर बने रहने के लिए देश के सिस्टम में तमाम बदलाव किए। सरकारी और राजनीतिक बदलावों के अलावा शावेज ने उद्योगों का सरकारीकरण किया, प्राइवेट सेक्टर के खिलाफ हल्ला बोल दिया, जहां भी पैसा कम पड़ा तो खूब कर्ज लिया और धीरे-धीरे देश कर्ज में डूबता चला गया। तेल कंपनियों से पैसा लेकर ज़रूरतमंद तबके पर खुलकर खर्च करने से शावेज मसीहा तो बन गए, लेकिन वेनेजुएला की इकॉनमी में दीमक लग गया।

ऐसे बिगड़े हालात
2013 में शावेज ने मादुरो को अपना उत्तराधिकारी चुना, जिन्हें विरासत में भारी-भरकम कर्ज मिला। पॉलिटिक्स तो चरमरा ही रही थी, साथ में तेल की कीमतें भी गिर रही थीं। तेल सस्ता होने पर इनकम घटी और गरीबी बढ़ी, तो मादुरो ने करंसी की कीमत गिरा दी। इस कदम से भला तो कुछ नहीं हुआ, लेकिन महंगाई ज़रूर बढ़ने लगी। जनता की जेब तो पहले से हल्की हो रही थी, अब उसके पेट पर भी लात पड़ने लगी। यहां से देश का आर्थिक और राजनीतिक बंटाधार होने लगा।

वेनेजुएला की बड़ी दिक्कतें
करंसी की कीमत घटना, बिजली कटौती और मूलभूत ज़रूरतों वाली चीज़ें महंगी होना। वेनेजुएला में हाइड्रो-पावर का बहुत यूज़ होता है। 2015 में पड़े सूखे की वजह से यहां बिजली का उत्पादन गिर गया। बिजली का संकट इतना बढ़ गया था कि अप्रैल 2016 में सरकार ने फैसला लिया कि अब से सरकारी दफ्तर सिर्फ सोमवार और मंगलवार को चलेंगे। नैशनल असेंबली के आंकड़े बताते हैं कि बीते एक साल में मुद्रा-स्फीति (इन्फ्लेशन) दर 13,00,000% हो गई है।

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