BRI प्रॉजेक्ट, सेना के लिए पैसे नहीं, 'कंगाल' चीन?

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चीन हमेशा दुनिया के दूसरे देशों पर ताकत दिखाने की कोशिश करता है लेकिन उसके सुपरपावर बनने के सपने के आगे पैसे की कमी एक रुकावट बन गई है। वह आर्टिफिशल इंटेलिजेंस, क्वॉन्टम कम्यूटिंग और सेमीकन्डक्टर्स जैसी टेक्नॉलजी में भी अरबों डॉलर इन्वेस्ट करता है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग के एक ट्रिलियन डॉलर के बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के बारे में तो दुनिया को पता ही है। हालांकि, रिपोर्ट्स का कहना है कि कोरोना वायरस की महामारी के पहले ही चीन की आर्थिक वृद्धि 2019 में बेहद कम होकर 6.1 पर आ गई थी जो 2000 के दशक में डबल डिजिट में हुआ करती थी।

अमेरिका के समाजशास्त्री और यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी में प्रफेसर सैलवटोर बबोनस ने एक रिपोर्ट में बताया है कि चीन ने BRI में भी निवेश 2017 के बाद से कम करना शुरू कर दिया था। चीन के बैंकों ने BRI को फाइनैंस करना एक तरह से बंद कर दिया है और सरकार खुद इसका बोझ उठाने को मजबूर है। एशिया में कई जगह प्रॉजेक्ट्स को रोका जा चुका है या बंद तक कर दिया गया है। BRI के पश्चिमी आलोचकों की नजर इस बात पर रहती है कि जिन देशों में ये प्रॉजेक्ट थे, वह कर्जदार होते जा रहे हैं लेकिन खुद चीन की आर्थिक हालत पर इसका क्या असर पड़ रहा है, यह छिपा ही रहता है।

चीन पाकिस्तान से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का काम शुरू करने के लिए इसलिए कह रहा था क्योंकि वह खुद निर्माण के लिए फाइनैंस नहीं कर सकता था। इसी तरह चीन म्यांमार में नया पोर्ट बनाना चाहता लेकिन उसका पेमेंट नहीं करना चाहता। नेपाल के साथ उसने 2015 में ट्रांजिट ऐंड ट्रांसपोर्ट अग्रीमेंट किया लेकिन अभी तक वहां कोई निर्माण नहीं हुआ है। इसी तरह अफ्रीका और ईस्टर्न यूरोप में चीन प्रॉजेक्ट्स का ऐलान कर रहा है लेकिन उन्हें शुरू करने भर का पैसा नहीं दे रहा।

चीन वित्तीय संकट से जूझ रहा है यह उसके सैन्य बजट में देखने को मिलता है। ऐसे संकेत मिलते हैं कि चीन ने अपने हथियार बनाने के प्रोग्राम को धीमा कर दिया है। J-20 स्टेल्थ फाइटर प्रोग्राम के विकसित होने में रुकावटे हैं जिससे उत्पादन भी आने वाले समय के लिए सीमित हो गया है। चीन 2035 तक 6 अमेरिका-स्टाइल एयरक्राफ्ट कैरियर स्ट्राइक ग्रुप्स तैनात करना चाहता था। चीन के पास एक स्की-जंप कैरियर है, दूसरा निर्माणाधीन है और एक सोवियत का ट्रेनिंग कैरियक Liaoning भी है। 4 परमाणु क्षमता वाले कैरियर्स का प्लान फिलहाल तकनीती चुनौतियों और ज्यादा कीमत की वजह से टाल दिया गया है।

भारत के साथ लद्दाख की गलवान घाटी में कांटेदार डंडों और पत्थरों से लड़ने वाले चीन के लिए पश्चिमी प्रशांत में अमेरिका का सामना करना बेहद मुश्किल है। माना जा रहा है कि कोरोना वायरस की वजह से पड़ी मार की वजह से चीन ऐसा करने की हालत में शायद ही रह जाए। अभी महामारी को दोष देकर अपने इस संकट पर पर्दा डाला जा सकता है लेकिन इसके बाद अमेरिका ग्लोबल पावर बना रहेगा और चीन को अपने लक्ष्य नए सिरे से निर्धारित करने पड़ सकते हैं।

(Source: Foreignpolicy.com)

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