नेपाली संसद के ऊपरी सदन में विवादित नक्शा पेश

नेपाली संसद के ऊपरी सदन में विवादित नक्शा पेश
Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail

काठमांडू
के ऊपरी सदन में विवादित नक्शे को मंजूरी देने के लिए संविधान संशोधन विधेयक को पेश किया गया है। मंगलवार को इस विधेयक पर वोटिंग होगी। माना जा रहा है कि यहां से भी यह विधेयक बहुमत के साथ पारित हो जाएगा। संसद में विपक्षी नेपाली कांग्रेस और जनता समाजवादी पार्टी- नेपाल ने संविधान की तीसरी अनुसूची में संशोधन से संबंधित सरकार के विधेयक का समर्थन किया है। बता दें कि नेपाल की निचली सदन पहले ही इस विधेयक को बहुमत से पारित कर चुकी है। भारत के साथ सीमा गतिरोध के बीच इस नए नक्शे में लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को नेपाल ने अपने क्षेत्र में दिखाया है।

राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा विधेयक
नेशनल असेंबली से विधेयक के पारित होने के बाद इसे राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा, जिसके बाद इसे संविधान में शामिल किया जाएगा। संसद ने नौ जून को आम सहमति से इस विधेयक के प्रस्ताव पर विचार करने पर सहमति जताई थी जिससे नए नक्शे को मंजूर किये जाने का रास्ता साफ होगा। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद से इस हिमालयन राष्ट्र के मानचित्र में संशोधन की कार्यवाही पूर्ण हो जाएगी।

फर्जी दावे पर सबूत जुटाने के लिए नेपाल ने बनाई कमेटी
सरकार ने बुधवार को विशेषज्ञों की एक नौ सदस्यीय समिति बनाई थी जो इलाके से संबंधित ऐतिहासिक तथ्य और साक्ष्यों को जुटाएगी। कूटनीतिज्ञों और विशेषज्ञों ने सरकार के इस कदम पर सवाल उठाते हुए हालांकि कहा कि नक्शे को जब मंत्रिमंडल ने पहले ही मंजूर कर जारी कर दिया है तो फिर विशेषज्ञों के इस कार्यबल का गठन किस लिये किया गया?

क्या है विवाद?
भारत के लिपुलेख में मानसरोवर लिंक बनाने को लेकर नेपाल ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। उसका दावा है कि लिपुलेख, कालापानी और लिपिंयाधुरा उसके क्षेत्र में आते हैं। नेपाल ने इसके जवाब में अपना नया नक्शा जारी कर दिया जिसमें ये तीनों क्षेत्र उसके अंतर्गत दिखाए गए। इस नक्शे को जब देश की संसद में पारित कराने के लिए संविधान में संशोधन की बात आई तो सभी पार्टियां एक साथ नजर आईं। इस दौरान पीएम केपी शर्मा ओली ने भारत को लेकर सख्त रवैया अपनाए रखा।

नेपाल में सत्‍ता में वामपंथी, चीन से बढ़ाई नजदीकी
नेपाल में इन दिनों राजनीति में वामपंथियों का दबदबा है। वर्तमान प्रधानमंत्री केपी शर्मा भी वामपंथी हैं और नेपाल में संविधान को अपनाए जाने के बाद वर्ष 2015 में पहले प्रधानमंत्री बने थे। उन्‍हें नेपाल के वामपंथी दलों का समर्थन हासिल था। केपी शर्मा अपनी भारत विरोधी भावनाओं के लिए जाने जाते हैं। वर्ष 2015 में भारत के नाकेबंदी के बाद भी उन्‍होंने नेपाली संविधान में बदलाव नहीं किया और भारत के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के लिए केपी शर्मा चीन की गोद में चले गए। नेपाल सरकार चीन के साथ एक डील कर ली। इसके तहत चीन ने अपने पोर्ट को इस्तेमाल करने की इजाज़त नेपाल को दे दी।

नेपाल में बड़े पैमाने पर चीन कर रहा निवेश
दरअसल, नेपाल एक जमीन से घिरा देश है और उसे लगा कि चीन की गोद में जाकर भारत की नाकेबंदी का तोड़ न‍िकाला जा सकता है। चीन ने थिंयान्जिन, शेंज़ेन, लिआनीयुगैंग और श्यांजियांग पोर्ट के इस्तेमाल की अनुमति दी है। आलम यह है कि अब नेपाल चीन के महत्‍वाकांक्षी बीआरआई प्रोग्राम में भी शाम‍िल हो गया। चीन नेपाल तक रेलवे लाइन बिछा रहा है। चीन बड़े पैमाने पर नेपाल में निवेश कर रहा है। ताजा विवाद के पीछे भी चीन पर आरोप लग रहा है। सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने संकेत दिए थे नेपाल के लिपुलेख मिद्दा उठाने के पीछे कोई विदेशी ताकत हो सकती है।

माओवादियों ने भारत का विरोध कर जीता चुनाव
भारतीय अधिकारी ने बताया कि नेपाल की सियासत पर इन दिनों माओवादी दलों का कब्‍जा है। वहां पुरानी पार्टी नेपाली कांग्रेस नेपथ्‍य में चली गई है और वाम दल पहाड़ी लोगों में भारत के खिलाफ दुष्‍प्रचार करने में लगे हुए हैं। पीएम केपी शर्मा ओली ने भी पिछले चुनाव में भारत के खिलाफ जमकर बयानबाजी की थी। उन्‍होंने भारत का डर दिखाकर पहाड़‍ियों और अल्‍पसंख्‍यकों को एकजुट किया और सत्‍ता हास‍िल कर ली। मंगलवार को केपी शर्मा ओली ने संसद में भारतीय सेना प्रमुख पर भी निशाना था। ओली ने कहा कि कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख हमारा है और हम उसे वापस लेकर रहेंगे।

Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail

WatchNews 24x7

Leave a Reply

Your email address will not be published.