स्पेस में पहली बार 'दिखी' मैटर की पांचवीं अवस्था
वैज्ञानिकों ने आखिरकार मैटर की पांचवीं स्टेट (पदार्थों की अवस्था या States of Matter) को पहली बार स्पेस में देखा है। इसके साथ ही क्वांटम यूनिवर्स की सबसे कठिन पहेलियों को सुलझाने की उम्मीद जाग गई है। Bose-Einstein condensates (BECs) के मौजूद होने की बात ऐल्बर्ट आंस्टाइन और भारतीय गणितज्ञ सत्येंद्रनाथ बोस ने दशकों पहले कही थी लेकिन BECs बेहद नाजुक होते हैं और बाहरी दुनिया के असर से तुरंत पिघल जाते हैं, इसलिए वैज्ञानिकों के लिए धरती पर उन्हें स्टडी करना आसान नहीं रहा। हालांकि, अब इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन (ISS) ने यह काम कर दिखाया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि BECs में डार्क एनर्जी- जो यूनिवर्स के विस्तार का कारण मानी जाती है- उसके राज खोल सकेंगे।
इन पार्टिकल्स की खोज का श्रेय बोस और आंइस्टाइन को जाता है। 1924 में ढाका यूनिवर्सिटी में फिजिक्स डिपार्टमेंट में रीडर के तौर पर सत्येंद्रनाथ ने एक पेपर लिखा और आइंस्टाइन के पास भेजा। आइंस्टाइन इससे बहुत प्रभावित हुए और इसका जर्मन में अनुवाद करके उसे एक जर्मन साइंस जर्नल में छपने भेजा। ये पार्टिकल तब बनते हैं जब खास एलिमेंट्स के ऐटम (अणु) 0 Kelvin तापमान (-273.15 सेल्सियस) पर पहुंचते हैं। यहां ऐटम क्वांटम प्रॉपर्टी के साथ एक इकाई में बदल जाते हैं और हर ऐटम मैटर की वेव (wave of matter) की तरह फंक्शन करता है। BECs मैक्रोस्कोपिक दुनिया में ग्रैविटी और माइक्रोस्कोपिक दुनिया में क्वांटम फिजिक्स के बीच में रहते हैं।
धरती की ग्रैविटी BECs की स्टडी के लिए जरूरी मैग्नेटिक फील्ड्स में रुकावट डालती है। NASA के वैज्ञानिकों ने गुरुवार को ISS में इन्हें स्टडी किया जहां धरती की रुकावटें नहीं होतीं। इस रिसर्च में धरती पर पाए जाने वाले और ISS ले जाए गए BECs में अंतर देखा गया। धरती के BECs कुछ मिलिसेकंड में ही गायब हो जाते हैं जबकि ISS में यह एक सेकंड से ज्यादा रुक सके। इससे टीम को इन्हें स्टडी करने का मौका मिला। (फोटो: Nature)
स्पेस में इन्हें बनाना भी आसान काम नहीं था। सबसे पहले Bosons (वे ऐटम जिनमें प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन की संख्या समान हो) को 0 Kelvin पर लेजर की मदद से एख जगह पर रखकर ठंडा किया गया। जैसे-जैसे उनकी हीट खत्म होने लगी, मैग्नेटिक फील्ड की मदद से उन्हें हिलने से रोका गया और हर पार्टिकल की वेव बढ़ने लगी। इन सारे पार्टिकल्स को बेहद छोटे ‘ट्रैप’ में रखा गया जहां इन सबकी वेव एक-दूसरे में मिल गई और ये एक वेव मैटर की तरह फंक्शन करने लगे। इसे क्वांटम डीजनरेसी (Quantum degenracy) कहते हैं। धरती पर इन्हें स्टडी करने के लिए इस ट्रैप को खोलने पर ग्रैविटी की वजह से दिक्कत आती है, जो स्पेस में नहीं होता।
वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि BECs को स्टडी करने से यूनिवर्स की कई गुत्थियां सुलझाई जा सकेंगी। इसके विस्तार के पीछे डार्क एनर्जी का क्या रोल है, इसे समझा जा सकेगा। रिसर्च टीम के लीडर डेविड ऐवलाइन ने बताया, ‘BECs की स्टडी से कई मौके खुलते हैं। जनरल रिलेटिविटी के टेस्ट्स से लेकर डार्क एनर्जी और ग्रैविटेशनल वेव तक, स्पेसक्राफ्ट नैविगेनशन से लेकर चांद पर मिनरल की खोज तक, ये कई काम आ सकते हैं।