पाक: इमरान के सामने सेना बनी चुनौती?

पाक: इमरान के सामने सेना बनी चुनौती?
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इस्लामाबाद
पाकिस्तान की सरकार को चलाने में वहां की सेना की कितनी भूमिका रहती है यह बात किसी से छिपी नहीं है। देश के प्रधानमंत्री इमरान खान के लिए अब पाकिस्तानी जनरल परेशानी का सबब बनते दिख रहे हैं। सरकार की अहम गद्दियों पर दर्जनभर से ज्यादा मौजूदा और पूर्व मिलिट्री ऑफिसर बैठे हैं। ये अधिकारी सरकारी एयर-कैरियर, पावर रेग्युलेटर और कोरोना वायरस के सामने फ्रंटलाइन में खड़ा स्वास्थ्य संस्थान चला रहे हैं। ये सभी अपॉइंटमेंट पिछले दो महीने में हुए हैं जबकि इमरान लोकप्रियता में भी पिछड़ते जा रहे हैं और सरकारी नीतियों की असफलता के लिए सवालों के घेरे में भी खड़े हैं।

इमरान ने किया था ‘नए पाकिस्तान’ का वादा
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा चुकी है, महंगाई बढ़ती जा रही है और इमरान खान के नजदीकियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच शुरू हो चुकी है। ऐसे में खान के असर और लोकप्रियता, दोनों को झटका लगा है। जानकारों के मुताबिक खान की पार्टी को सत्ता में बने रहने के लिए छोटी पार्टियों के अलावा सेना के समर्थन की भी जरूरत है। यह कोई हैरान करने की बात नहीं है क्योंकि पाकिस्तान में सेना सबसे ताकतवर है और 70 साल के इतिहास में लंबे समय तक खुद शासन भी कर चुकी है। खान के मामले में यह नया इसलिए है क्योंकि 2018 में जब वह पद पर बैठे थे तो उन्होंने ‘नए पाकिस्तान’ का वादा किया था।

आम लोगों के लिए मौके खत्म कर रही सरकार
अटलांटिक काउंसिल के नॉन-रेजिडेंट सीनियर फेलो उजैर यूनुस ने बताया है, ‘बड़ी संख्या में मौजूदा और रिटायर्ड मिलिट्री अधिकारियों को अहम पदों पर अपॉइंट करने से सरकार आम नागरिकों के लिए देश में नीतियों के विकास और क्रियान्वन के लिए बची जगह को खत्म कर रही है।’ कोरोना वायरस महामारी को लेकर सरकार की ब्रीफिंग के दौरान देखा जा सकता है कि यूनिफॉर्म पहने सेना के अधिकारी सरकार की आपदा प्रतिक्रिया को असिस्ट कर रहे हैं। रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल असीम सलीम बादवा अब खान के कम्यूनिकेशन अडवाइजर हैं और चीन की बेल्ट ऐंड रोड योजना में पाकिस्तान के 60 बिलियन डॉलर के निवेश को लागू किए जाने पर भी नजर रखते हैं।

सेना पूरे कर सकती है काम
कैबिनेट के कम से कम 12 सैन्य अधिकारी परवेर मुशर्रफ प्रशासन में रह चुके हैं। इनमें इजाज शाह (आंतरिक मंत्री), अब्दुल हफीज शेख (खान के वित्तीय सलाहकार) शामिल हैं। इमरान खान की कम कीमत पर घर बनाने की योजना चलाने वाले जैगाम रिजवी का कहना है कि ऐसा माना जाता है कि अगर सैन्य अधिकारियों को नेतृत्व दिया जाए, तो सेना के पास अच्छा सिस्टम होता है जिससे काम पूरा करा सकते हैं।

अर्थव्यवस्था पर मंडरा रहा है बड़ा संकट
दूसरी ओर खान हमेशा सैना से नजदीकी को खारिज करते रहे हैं। उनका कहना है कि 2017 में चुनाव से पहले उठी अफवाह कि वह सेना के मोहरे हैं, एक साजिश है। वहीं, पिछले साल स्थानीय मीडिया से उन्होंने कहा कि सेना उनके साथ खड़ी है। इसके बावजूद कोरोना वायरस के दौरान अर्थव्यवस्था का संकट मुश्किल हालात पैदा कर रहा है। आशंका जताई गई है कि 68 साल में पहली बार अर्थव्यवस्था कम होने वाली है। सेंट्रल बैंक को जून के साथ वित्तीय वर्ष खत्म होने पर इकॉनमी के 1.5% के होने की आशंका है। देश ने इंटरनैशनल मॉनिटरी फंड से अप्रैल में 1.4 बिलियन डॉलर का आपात कर्ज लिया था।

कोरोना की स्थिति को भी संभाल रही है सेना
सेना के नेतृत्व में होने की खबरें तब से आने लगी थीं, जब मार्च में वायरस फैलने लगा था। खान ने लोगों से शांत रहने को कहा जबकि सेना के प्रवक्ता ने अगले दिन लॉकडाउन की घोषणा कर दी। वायरस नर्व सेंटर के ज्यादातर स्टेटमेंट सेना के मीडिया विंग से रिलीज किए जाते हैं। यहां तक कि जब बिना सेना का नाम लिए, इमरान से 24 मार्च को सवाल किया गया कि इन-चार्ज कौन है, तो वह नाराज हो गए। मई में कराची प्लेने क्रैश के बाद उनके एवियेन मंत्री गुलाम सर्वर खान ने कैरियर का बचाव करते हुए कहा, मिलिट्री से जुड़े लोगों को नियुक्त करना अपराध नहीं है।

सेना के अधिकारी ले रहे हैं बड़े फैसले
न्यूयॉर्क की विजियर कन्सल्टिंग के अध्यक्ष आरिफ रफीक का कहना है, ‘जैसे-जैसे सेना के मौजूदा और रिटायर्ड अधिकारी और सेना से समर्थित राजनीतिक लोग ताकतवर पदों पर पहुंचेंगे, इमरान खान की सत्ता से पकड़ कमजोर होती जाएगी।’ आर्थिक संकट गहराने के साथ इमरान के ऊपर दबाव बढ़ता जाएगा। रफीक ने कहा, ‘सेना कोरोना वायरस से निपटने के तरीके पर आपत्ति जता चुकी है। सेना चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर और पंजाब में सरकार चलाने के तरीके से भी नाखुश है।’ चीफ मिलिट्री प्रवक्ता और कड़े लॉकडाउन की मांग कर चुके हैं।

सेना चीफ बाजवा को मिल रही जिम्मेदारी
पिछले साल मिलिट्री ने विदेश और राष्ट्रीय सुरक्षा नीति बनाने में सक्रिय भूमिका निभाना शुरू कर दिया है। सेना चीफ कमर जावेद बाजवा बिजनस लीडर्स से मिलकर अर्थव्यवस्था को बेहतर करने को लेकर बैठक कर चुके हैं। देश की संसद ने जनवरी में नया कानून लाकर बाजवा को तीन साल का विस्तार दिला दिया है और उन्हें सरकार के इकनॉमिक बोर्ड का हिस्सा बना दिया गया है।

(Source: Bloomberg)

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