… तो कोरोना ले डूबेगा राष्ट्रपति ट्रंप की कुर्सी!

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वॉशिंगटन
पूरी दुनिया इस वक्त जिस कोरोना वायरस से जूझ रही है, उसका सबसे बड़ा शिकार अमेरिका बना है। सबसे ज्यादा केस और मौतें भी झेलीं और वायरस को फैलने से रोकने के लिए इकॉनमी को बंद करना पड़ा जिससे देश में बेरोजगारी बुरी तरह बढ़ गई। इसी बीच मिनेसोटा में अश्वेत अमेरिकन की पुलिस हिरासत में मौत के बाद रंगभेद के खिलाफ हजारों की तादाद में लोग सड़कों पर विरोध करने उतर आए। जाहिर है कि इस सबका असर ट्रंप की छवि पर पड़ा और राष्ट्रपति चुनाव से पहले ताजा पोल इसी ओर इशारा भी कर रहे हैं। पोल के मुताबिक 10 में से 8 अमेरिकी नागरिकों को लगता है देश गलत दिशा में आगे जा रहा है और कंट्रोल से बाहर जा रहा है।

कंट्रोल से बाहर जा रहा अमेरिका
जब राष्ट्रपति चुनावों में 5 से भी कम महीने बाकी रह गए हैं, पिछले कई पोल्स में ट्रंप डेमोक्रैट उम्मीदवार जो बाइडेन से पीछे नजर आने लगे हैं। उनके पूर्व डिफेंस सेक्रटरी और ट्रंप के पूर्व चीफ ऑफ स्टाफ ने आरोप लगा दिया कि राष्ट्रपति संविधान का उल्लंघन कर रहे हैं और अमेरिका को बांट रहे हैं। वहीं, वॉल स्ट्रीट जर्नल/ NBC न्यूज पोल के सर्वे में पता चला कि अमेरिका के 80% लोगों का मानना है कि देश कंट्रोल से बाहर जा रहा है।

इकॉनमी बचा सकती है ट्रंप की कुर्सी
रिपब्लिकन नेता दबे-छिपे अंदाज में यह मानते हैं कि हालात गंभीर हैं लेकिन उनका मानना है कि अगर देश की अर्थव्यवस्था डिप्रेशन जैसे बेरोजगारी संकट से उबर लेती है तो इससे ट्रंप के पास यह साबित करने का मौका होगा कि देश सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भले ही समाज में अशांति हो और हेल्थ क्राइसिस फैला हो, ट्रंप के चुनाव के लिए सबसे बड़ी चुनौती अमेरिका की इकॉनमी है। इसलिए भले ही देश में बेरोजगारों की संख्या महामारी के पहले के आंकड़े को न छू सके, ट्रंप को लोगों को यह विश्वास दिलाना होगा कि देश सही दिशा में आगे बढ़ रहा है।

रंगभेद का सहारा लेकर बढ़ाईं दूरियां?
ट्रंप के सामने सिर्फ अर्थव्यवस्था की चुनौती नहीं है। पिछले दिनों George Floyd की मौत के बाद ट्रंप ने दुख जताया लेकिन कई बार आक्रामक बयान दिए जिससे लोगों में संदेश गया कि वह अश्वेत समुदाय पर पुलिस की बर्बरता के बारे में गंभीर नहीं हैं। उन्होंने कई बार प्रदर्शनकारियों के लूट मचाने, हिंसा करने को लेकर ट्वीट किया। प्रदर्शनकारियों की बातों को समझने की जगह उन्होंने ‘ठग’ बता दिया।

ट्रंप रंगभेद के सहारे तनाव बढ़ाने से पीछे नहीं हट रहे हैं जिसे उनकी राजनीति का खास तरीका माना जाता है। बराक ओबामा से उनका बर्थ सर्टिफिकेट मांगने के बाद से ही यह राष्ट्रीय स्तर पर सबके सामने था। माना जाता है कि 2016 में यह चल भी गया लेकिन क्या यह दोबारा चल सकेगा, इसे लेकर संशय बरकरार है। विरोध प्रदर्शनों के शुरू होने से पहले पोल्स में देखा जा रहा था कि बाइडेन ट्रंप के श्वेत-वोटबैंक में सेंध लगा रहे थे। अब इस बात पर नजरें हैं कि क्या ट्रंप की बांटने की रणनीति श्वेत लोगों में समर्थन हासिल कर सकेगी? खासकर पढ़े-लिखे श्वेतों में जो ट्रंप की पार्टी के खिलाफ हो चुके हैं।

बाइडेन को मिलेगा अपनी पार्टी का सहारा?
बाइडेन इस हफ्ते हाउसिंग, एजुकेशन और पैसे की उपलब्धता को लेकर अपना इकनॉमिक प्लान रिलीज कर सकते हैं। अगर बाइडेन ट्रंप को हराने में कामयाब रहते हैं, तो राजनीतिक दुनिया को उनकी योजनाओं के बारे में जानने की उत्सुकता रहेगी। दिलचस्प बात यह है कि प्रोग्रेसिव तबका बाइडेन के समर्थन में तब खड़ा हुआ जब बर्नी सैंडर्स और एलिजाबेथ वॉरन डेमोक्रैटिक प्राइमरी के चुनाव में हार गए। ट्रंप के खिलाफ डमोक्रैट्स एकजुट हो सकते हैं लेकिन यह देखना होगा कि क्या बाइडेन की मॉडरेट सोच के खिलाफ रहा पार्टी का तबका भी उनके खेमे में आ सकेगा या नहीं।

कोरोना के निशाने पर दोनों नेता, कैसे लड़ेंगे चुनाव
बाइडेन पिछले हफ्ते में करीब 4 बार पब्लिक में गए जबकि ट्रंप कई बार जा चुके हैं। यहां तक कि एक इवेंट चुनावी प्रचार जैसा ही लगने लगा था। इस हफ्ते में ट्रंप अपना पहला फंडरेजर भी आयोजित करने वाले हैं। बाइडेन ज्यादातर अपने स्टूडियो के जरिए ही संपर्क करते हैं लेकिन वह कुछ रिस्क लेकर ट्रैवल करने को तैयार हैं। वह Floyd के परिवार से मिलने भी जा सकते हैं। कोरोना वायरस का खतरा अभी टला नहीं है और 70 की उम्र पार कर चुके दोनों उम्मीदवार वायरस के निशाने पर हैं।

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