चिकित्सक ने बनाया बायोमेडिकल तरल अपशिष्ट के शोधन के लिए किफायती छोटा ईटीपी

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भोपाल, 19 अक्टूबर (भाषा) मध्य प्रदेश के एक सरकारी डॉक्टर ने अस्पतालों एवं क्लीनिकों से निकलने वाले बायोमेडिकल तरल अपशिष्ट के शोधन के लिए किफायती, छोटा एवं उन्नत किस्म का आधुनिक प्रवाह शोधन संयंत्र (ईटीपी) बनाया है। दावा किया जा रहा है कि यह ईटीपी क्लीनिकों एवं 50 बिस्तर वाले अस्पतालों के बायोमेडिकल तरल अपशिष्ट के शोधन के लिए वरदान साबित हो सकता है। छोटा होने के कारण इसे कहीं पर भी लगाया जा सकता है और इसकी लागत तथा इसके रखरखाव का खर्च बहुत कम है। यह ईटीपी इस साल 23 सितंबर को ‘नेशनल हेल्थ इनोवेशन कमेटी’ द्वारा चुना गया और इसके निर्माता डॉक्टर ने इसके पेटेंट के लिए आवेदन किया है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, मध्य प्रदेश के संयुक्त संचालक डॉ. पंकज शुक्ला ने शनिवार को ‘भाषा’ को बताया, ‘‘भोपाल के मिसरोद स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में पदस्थ सरकारी चिकित्सक डॉ. योगेश सिंह कौरव ने अपने दो सहयोगियों के साथ मिलकर एक छोटा ईटीपी बनाया है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह ईटीपी क्लीनिकों एवं 50 बिस्तर वाले अस्पतालों से निकलने वाले बायोमेडिकल तरल अपशिष्ट के शोधन के लिए पर्याप्त है। इसकी लागत मात्र 50,000 रूपये है, जबकि बड़े ईटीपी करीब 50-50 लाख रूपये तक के आते हैं।’’ मध्यप्रदेश स्वास्थ्य विभाग में गुणवत्ता के साथ-साथ नवाचार देखने वाले शुक्ला ने बताया कि अस्पतालों एवं क्लीनिकों में खून, थूक, पेशाब एवं दवाइयों के बायोमेडिकल तरल अपशिष्ट में बैक्टीरिया होते हैं। बिना शोधन किये इस बायोमेडिकल तरल अपशिष्ट को नालियों में डालना न केवल स्वास्थ्य के लिए बल्कि पर्यावरण के लिए भी नुकसानदायक होता है। इसलिए यह आधुनिक ईटीपी वरदान साबित हो सकता है। उन्होंने कहा कि डॉ. कौरव ने करीब दो साल पहले यह ईटीपी बनाना शुरू किया था। डॉ कौरव ने बताया, ‘‘पिछले साल तैयार इस उन्नत ईटीपी की, भोपाल के सरकारी हमीदिया अस्पताल सहित कई स्थानों पर गुणवत्ता परखी गई। फिर, इस ईटीपी के मॉडल को हमने नेशनल हेल्थ इनोवेशन (नवाचार) पोर्टल पर अपलोड किया और नवाचार कार्यक्रम के तहत मैंने दिल्ली में इसकी प्रस्तुति दी। वहां इसकी सराहना हुई।’’ संयुक्त संचालक डॉ. पंकज शुक्ला ने बताया कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल सहित कई अन्य लैबों में इस ईटीपी में शोधित बायोमेडिकल तरल अपशिष्ट के पानी के नमूने की जांच की गई और सभी ने नमूने को बैक्टीरिया रहित पाया। उन्होंने कहा कि अस्पतालों से निकलने वाले बायोमेडिकल तरल अपशिष्ट के दुष्परिणामों को देखते हुए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सभी अस्पतालों तथा क्लीनिकों में आधुनिक ईटीपी लगाना अनिवार्य किया है। डॉ शुक्ला ने बताया कि आम तौर पर ईटीपी महंगे होते हैं और इनका आकार भी बड़ा होता है, इसलिए इन्हें हर जगह लगाना संभव नहीं होता है। यही कारण है कि मध्य प्रदेश में अब तक केवल चार-पांच बड़े सरकारी अस्पतालों में ही अब तक ईटीपी लगाए गए हैं।

Source: Madhyapradesh

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