जजों के बीच काम के बंटवारे की नयी रोस्टर प्रणाली लागू

जजों के बीच काम के बंटवारे की नयी रोस्टर प्रणाली लागू
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने जजों के बीच काम के बंटवारे का नया रोस्टर सिस्टम तय कर दिया है। नयी व्यवस्था पांच फरवरी से लागू होगी। इसमें पीठों के हिसाब से केसों की सुनवाई की श्रेणी तय की गई है। इसके मुताबिक जनहित याचिकाएं मुख्य न्यायाधीश ही सुनेंगे। सुप्रीम कोर्ट मे जजों के बीच काम के बंटवारे का रोस्टर पहली बार सार्वजनिक किया गया है। ये रोस्टर सुप्रीम कोर्ट वेबसाइट पर गुरुवार को डाल दिया गया है।

चार वरिष्ठ जजों का प्रेस कान्फ्रेंस कर जजों को कार्य आवंटन पर सवाल उठाए जाने और मुख्य न्यायाधीश पर महत्वपूर्ण मामले पसंदीदा पीठ को दिये जाने के आरोपों के बीच मुख्य न्यायाधीश द्वारा नया रोस्टर जारी करना और उसे सार्वजनिक करने को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। उम्मीद की जाती है कि इससे जजों के प्रेस कान्फ्रेंस के बाद उठा विवाद निपट जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट वेबसाइट पर डाले गए नये रोस्टर के मुताबिक मुख्य न्यायाधीश के आदेश पर नये केसों की सुनवाई के लिए जजों के बीच कार्य बंटवारे का रोस्टर जारी किया गया है। मुख्य न्यायाधीश की पीठ सहित कुल 12 कोर्टों में पीठ की अध्यक्षता करने वाले न्यायाधीशों के नाम से कार्य का श्रेणीवार बंटवारा किया गया है। कोर्टों का क्रम न्यायाधीशों की वरिष्ठता के हिसाब से तय होता है।

कोर्ट नंबर एक यानी मुख्य न्यायाधीश की पीठ के समक्ष सर्विस मैटर, जनहित याचिकाएं, सामाजिक न्याय, चुनाव संबंधी, मध्यस्थता मामले, बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं, क्रिमनल मैटर, न्यायालय की अवमानना, दीवानी मामले, संवैधानिक पदों पर नियुक्ति, विधायी नियुक्तियां और जांच आयोग के मामले सुने जाएंगे। कोर्ट दो जस्टिस चेलमेश्वर की पीठ लेबर ला, अप्रत्यक्ष कर, भूमि अधिग्रहण आदि मामले सुनेगी।

कई श्रेणियों का आवंटन एक से ज्यादा पीठों के पास रखा गया है। शायद ऐसा काम की अधिकता और केस के निपटारे की सुगमता को देखते हुए किया गया होगा। जस्टिस लोकुर की पीठ अन्य मामलों के अलावा पर्यावरण और सामाजिक न्याय से जुड़े मामले भी सुनेगी। हालांकि जनहित याचिकाएं सिर्फ मुख्य न्यायाधीश की पीठ ही सुनेगी।

वैसे चीफ जस्टिस मास्टर आफ रोस्टर होता है और वही तय करता है कि कौन सा केस किस पीठ के पास सुनवाई के लिए जाएगा। अभी हाल ही में चीफ जस्टिस के इस अधिकार पर पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मुहर लगाई थी। लेकिन विवाद उठने के बाद लगातार रोस्टर व्यवस्था पारदर्शी बनाने की मांग हो रही थी।

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