चित्रगुप्त पूजा आज , केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद होंगे शामिल
पटना । कलम के धनी मंगलवार को एक बार फिर अपने इष्ट को याद करेंगे और इस बहाने उन महापुरुषों को भी नमन किया जाएगा जिन्होंने कलम के बलबूते अपनी पहचान बनाई और राज्य, देश और विश्व को नई राह दिखाई।
चित्रगुप्त पूजा में शामिल होने के लिए केंद्रीय कानून एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद सोमवार रात पटना पहुंचे। वे मंगलवार को कायस्थ समाज की ओर से राजधानी में विभिन्न स्थानों पर आयोजित चित्रगुप्त पूजा समारोह में भाग लेंगे। वे सुबह 11 बजे अनिसाबाद स्थित चित्रगुप्त समाज के पूजा कार्यक्रम में शिरकत करेंगे। इसके बाद चित्रगुप्त महापरिवार, बुद्धिजीवी कॉलोनी में आयोजित पूजा में शामिल होंगे।
इस दिन को खास बनाने के लिए अकेले पटना में तकरीबन चालीस स्थानों पर चित्रगुप्त भगवान की प्रतिमा स्थापित की जा रही है। जहां आयोजित समारोह में कायस्थ परिवारों के साथ ही विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता और बुद्धिजीवी शिरकत करेंगे।
पूजा पर रंगारंग कार्यक्रम भी
समारोह को आकर्षक बनाने के लिए कई स्थानों पर रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जा रहा है। इन कार्यक्रमों में देश दुनिया के नामी कलाकारों के बजाय वैसे कलाकारों को तवज्जो दी जा रही है जो कायस्थ परिवार के सदस्य हैं। चाहे वे विद्यार्थी हों, नौकरी पेशा हों या रोजगार करते हो।
होगी राजनीतिक चर्चा भी
पूजा पाठ और इष्ट की आराधना को जुटे कायस्थ परिवार विभिन्न स्थानों पर आयोजित कार्यक्रमों में राजनीतिक चर्चा से भी परहेेज नहीं करेंगे। इस दौरान यह भी देखा जाएगा कि कायस्थों की बिहार या देश की राजनीति में कितनी हिस्सेदारी है। कौन दल कायस्थों के करीब है और कौन उसे पास आने से रोक रहा है या फिर उसकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पर प्रहार कर रहा है।
चित्रगुप्त हैं कायस्थों के आदि देव
भगवान चित्रगुप्त को कायस्थों का आदि देव माना जाता है। चित्रगुप्त वे देव हैं जिन्हें ब्रह्मा ने पाप-पुण्य की गणना का काम सौंपा था। ब्रह्मा की काया से उत्पन्न होने की वजह से इन्हें कायस्थ भी कहा जाता है। मान्यता है कि उत्पन्न होने के बाद चित्रगुप्त ने ब्रह्मा से पूछा मेरा काम क्या होगा।
इस पर ब्रह्मा ने कहा कि मनुष्य के पाप और पुण्य का लेखाजोखा रखना तुम्हारा काम होगा। कार्तिक मास की शुक्ल द्वितीया को आदिदेव चित्रगुप्त की पूजा होती है। मान्यता यह भी है कि भीष्म पितामह ने भगवान चित्रगुप्त की पूजा करके ही उनसे इच्छा मृत्यु का वर प्राप्त किया था।