पहली बार हुई सदियों से उपेक्षित वर्गों की चिन्ता : केदार कश्यप

पहली बार हुई सदियों से उपेक्षित वर्गों की चिन्ता : केदार कश्यप
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रायपुर:स्कूल शिक्षा और आदिम जाति विकास मंत्री श्री केदार कश्यप ने कहा कि छत्तीसगढ़ में सैकड़ों वर्षों से उपेक्षित वर्गों की चिन्ता पहली बार मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने की है। श्री कश्यप आज दोपहर यहां न्यू सर्किट हाउस में मीडिया प्रतिनिधियों से चर्चा कर रहे थे। उन्होंने राज्य सरकार के 14 वर्ष की विकास यात्रा के अंतर्गत अपने विभागों की योजनाओं और उपलब्धियों का विस्तार से ब्यौरा दिया। उन्होंने बताया कि स्कूल शिक्षा विभाग का बजट वर्ष 2003-04 में सिर्फ 750 करोड़ 47 लाख रूपए था, जो इस वर्ष 2017-18 में 14 गुना बढ़कर 12 हजार करोड़ रूपए तक पहुंच गया है।
उन्होंने कहा – डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में प्रदेश के आदिवासी बहुल, अनुसूचित जाति बहुल और पिछड़े वर्गों की बहुलता वाले इलाकों में इन समुदायों की तरक्की और खुशहाली के लिए पिछले 14 वर्षाें में कई ऐसे कार्य हुए हैं और कई ऐसी योजनाएं शुरू की गई है, जिनके बारे में पहले कभी किसी ने सोचा भी नहीं था। अल्प संख्यक समुदायों के विकास पर भी गंभीरता से ध्यान दिया जा रहा है।

वंचितों को मुख्य धारा से जोड़ने प्राधिकरणों का गठन
श्री कश्यप ने कहा – समाज के उपेक्षित और वंचित वर्गों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए रमन सरकार ने आदिवासी बहुल सरगुजा और बस्तर विकास प्राधिकरणों का गठन किया। उसी तर्ज पर उन्होंने अनुसूचित जाति विकास प्राधिकरण और ग्रामीण एवं अन्य पिछड़ा वर्ग विकास प्राधिकरण की भी स्थापना की। बस्तर और सरगुजा में मेडिकल कॉलेज, सरगुजा में ही सैनिक स्कूल, दंतेवाड़ा में विशाल एजुकेशन सिटी, नक्सल पीड़ित क्षेत्रों के प्रतिभावान बच्चों के लिए मुख्यमंत्री बाल भविष्य सुरक्षा योजना के तहत प्रयास आवासीय विद्यालयों की स्थापना जैसे अनेक ऐतिहासिक कार्य हुए हैं। स्कूल शिक्षा और आदिम जाति विकास मंत्री ने कहा – डॉ. रमन सिंह की सरकार ने दशकों और सदियों से उपेक्षित आदिवासी क्षेत्रों के काया-कल्प का संकल्प लिया है और इन क्षेत्रों की सामाजिक-आर्थिक तस्वीर तेजी से बदल रही है। अल्प संख्यक समुदायों की बेहतरी के लिए भी कई कदम उठाए गए हैं। उन्होंने बताया कि शिक्षा का अधिकार कानून के तहत वर्ष 2009-10 में परीक्षाएं समाप्त कर दी गई थी, लेकिन पढ़ाई का स्तर और उसकी गुणवत्ता बनाए रखने के लिए राज्य सरकार ने वर्ष 2014-15 से पांचवीं और आठवीं के बच्चों के लिए केन्द्रीकृत रूप से बोर्ड पेटर्न पर परीक्षाओं की व्यवस्था की है।

प्राथमिक स्कूलों में दर्ज संख्या बढ़कर 96.33 प्रतिशत और मिडिल स्कूलों में 91.4 प्रतिशत
श्री कश्यप ने बताया – विगत 14 वर्ष में बच्चों की दर्ज संख्या राज्य के प्राथमिक स्कूलों में लगभग 72 प्रतिशत से बढ़कर 96.33 प्रतिशत और मिडिल स्कूलों में 66.45 प्रतिशत से बढ़कर 91.4 प्रतिशत तक पहुंच गई। वर्ष 2003-04 में प्राथमिक शालाओं में 29 बच्चों पर एक शिक्षक कार्यरत थे, जबकि वर्ष 2016-17 की स्थिति में राज्य सरकार के प्रयासों से 22 बच्चों पर एक शिक्षक कार्यरत हैं। यह संख्या राष्ट्रीय औसत से भी बेहतर है। इसी तरह वर्ष 2003-04 में मिडिल स्कूलों (पूर्व माध्यमिक शालाओं में) 48 बच्चों पर एक शिक्षक की व्यवस्था थी, जबकि वर्ष 2016-17 में इन स्कूलों में 22 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक कार्यरत हैं। इससे बच्चों के अध्यापन कार्यों में काफी सुविधा हो रही है। श्री कश्यप ने कहा – वर्ष 2003-04 की स्थिति में प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों में अध्ययनरत 80.31 प्रतिशत बच्चे ही मिडिल स्कूलों में जा पाते थे, जबकि वर्ष 2016-17 में यह संख्या बढ़कर 96.44 प्रतिशत हो गई है।

हाई स्कूलों में बालिकाओं की संख्या 61 से बढ़कर 97 प्रतिशत
श्री कश्यप ने यह भी बताया कि इस अवधि में मिडिल स्कूलों से हाई स्कूल तक पहुंचने वाले बच्चों की संख्या 61 प्रतिशत से बढ़कर 97 प्रतिशत हो गई है। सरस्वती सायकिल योजना की इसमें मुख्य भूमिका है। इसी तरह विगत 14 वर्ष में राज्य के प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों में प्रति एक हजार बालकों पर 930 बालिकाएं थीं, जबकि शासन द्वारा बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए चलाये जा रहे जनजागरण अभियान के फलस्वरूप वर्ष 2016-17 में एक हजार बच्चों पर बालिकाओं की संख्या बढ़कर 960 हो गई। वहीं इस अवधि में मिडिल स्कूलों में एक हजार बच्चों पर बालिकाओं की संख्या 730 से बढ़कर 970 हो गई।

श्री कश्यप ने यह भी बताया कि विगत 14 साल में विभिन्न श्रेणियों 15 हजार 807 नये स्कूल खोले गए। राज्य में वर्ष 2003-04 से 2016-17 के बीच प्राथमिक स्कूलों की संख्या 21 हजार 969 से बढ़कर 30 हजार 704, मिडिल स्कूलों की संख्या 5720 से बढ़कर 13 हजार 241, हाई स्कूलों की संख्या एक हजार 176 से बढ़कर एक हजार 901 और हायर सेकेण्डरी स्कूलों की संख्या एक हजार 386 से बढ़कर दो हजार 511 हो गई। उन्होंने बताया कि आदिवासी क्षेत्रों के बच्चों को शिक्षा की बेहतर सुविधा दिलाने के लिए प्रयास लगातार जारी है। राज्य के लगभग 80 प्रतिशत बच्चे आज भी सरकारी स्कूलों में पढ़ाई कर रहे हैं। प्राइवेट स्कूलों में केवल 20 प्रतिशत बच्चे दर्ज हैैं। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के विशेष प्रयासों से राज्य में इस वर्ष ग्यारह नवोदय विद्यालय और छह केन्द्रीय विद्यालय शुरू किए गए हैं।

दंतेवाड़ा की एजुकेशन सिटी दुनिया की सौ बड़ी संस्थाओं में शामिल
दंतेवाड़ा में स्थापित एजुकेशन सिटी (अटल बिहारी वाजपेयी शिक्षा परिसर) की गिनती अधोसंरचना विकास की दृृष्टि से दुनिया की एक सौ बड़ी संस्थाओं में होने लगी है। इस परिसर में प्राथमिक से लेकर हायर सेकेण्डरी और पॉलीटेक्निक तक पढ़ाई की आवासीय सुविधा है। विशेष आवश्यकता वाले अर्थात् दिव्यांग बच्चों के लिए वहां सक्षम विद्यालय शुरू किया गया है।

प्रयास आवासीय विद्यालयों का शानदार प्रदर्शन
नक्सल हिंसा पीड़ित इलाकों के बच्चों के लिए मुख्यमंत्री बाल भविष्य सुरक्षा योजना के तहत प्रयास आवासीय विद्यालयों की उपलब्धियों का ब्यौरा देते हुए श्री कश्यप ने बताया कि सबसे पहले रायपुर में 300 सीटों के साथ 26 जुलाई 2010 को मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने इसका शुभारंभ किया था, बाद में यहां पर बालिकाओें के लिए भी प्रयास आवासीय विद्यालय शुरू किया गया। आज की स्थिति में प्रदेश के सभी पांच संभागीय मुख्यालयों में छह प्रयास आवासीय विद्यालय चल रहे हैं, जहां 11 और 12वीं के बच्चों को नियमित पढ़ाई के साथ इंजीनियंिरंग और मेडिकल कॉलेजों की प्रवेश परीक्षाओं के लिए निःशुल्क कोचिंग भी दी जा रही है। इन विद्यालयों में 1700 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। राजधानी रायपुर सहित सभी प्रयास आवासीय विद्यालयों में वर्ष 2018-19 से नवमीं और दसवीं के बच्चों के लिए भी फाउंडेशन कक्षाएं शुरू की जाएगी। चालू सत्र 2017-18 से रायपुर के प्रयास बालक विद्यालय में 30 सीटों के साथ कामर्स की कोचिंग भी शुरू की गई है। बिलासपुर के प्रयास विद्यालय में बालिकाओं के लिए 30 सीटर विधि (क्लेट) की कोचिंग शुरू कर दी गई है। उन्होंने बताया कि आवासीय विद्यालयों के बच्चों ने विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में शानदार प्रदर्शन किया है। प्रारंभ से अब तक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई.आई.टी.) में 23, एनआईटी में 117, मेडिकल कॉलेजों में 27 और इंजीनियरिंग कॉलेजों में 528 विद्यार्थियों ने प्रवेश लिया है। श्री कश्यप ने यह भी बताया कि राज्य सरकार ने पहली बार अन्य पिछड़े वर्गोें के विद्यार्थियों के लिए 27 छात्रावासों की स्थापना की है, जिनमें डेढ़ हजार से ज्यादा विद्यार्थियों ने प्रवेश लिया है।

आश्रम-छात्रावासों की संख्या में भी वृद्धि
उन्होंने बताया कि प्रदेश के 28 आदिवासी विकासखंडों में बालक-बालिकाओं के लिए ढाई-ढाई सौ सीटों के छात्रावास भवनों की स्वीकृति दी गई है। विगत 14 साल में प्रदेश में आदिवासी छात्रावासांें और आश्रम शालाओं की संख्या में 77 प्रतिशत और उनमें विद्यार्थियों की संख्या में 173 प्रतिशत की वृद्धि की गई है। इस समय प्रदेश में आदिवासी बच्चों के लिए 2764 छात्रावास और आश्रम विद्यालय चल रहे हैं। इनमें एक लाख 65 हजार विद्यार्थियों के लिए आवास व्यवस्था है। अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों के लिए 482 छात्रावास और आश्रम संचालित हैं। श्री कश्यप के साथ संसदीय सचिव श्री अम्बेश जांगड़े, मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष मिर्जा एजाज बेग, स्कूल शिक्षा विभाग के सचिव श्री विकासशील, आदिम जाति और अनुसूचित जाति विकास विभाग की सचिव श्रीमती रीना कंगाले और अन्य संबंधित वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

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