स्थिर लग्न मे दीपावली पूजन करना लाभकारी होगा
दीपावली की रात्रि को महाकाल रात्रि भी कहा जाता है, इस दिन प्रकाश का प्रमुख कारक सूर्य अपनी नीच राशि मे दूसरे प्रकाश के कारक चंद्र को अस्त करता है ,इस दिन अमावस्या रहती है, चन्द्रमा ग्रहण के प्रमुख कारक ग्रह राहु के नक्षत्र “स्वाती “मे रहता है. इस तरह पूर्णतः घने अंधकार के प्रभाव मे दीपावली का त्योहार मनाया जाता है, एक तरह से इस पर्व से अँधेरे का विशेष सम्बन्ध दृष्टिगोचर होता है, वैसे भी माया को अँधेरा ही माना गया है, धन लक्ष्मी का निवास भी अँधेरे मे होता है, धन को भी अँधेरे मे छुपाकर रखा जाता है, धन को कोई खुले मे नही रखता उसे छुपाकर रखा जाता है.
इस तरह धन और अँधेरे का गहरा सम्बन्ध होता है, दीपावली सृष्टि का अँधेरा होता है इसलिये इस समय लक्ष्मी आने का प्रबल योग बन जाता है ,तांत्रिक कर्मों के लिये यह रात्रि अत्यंत शुभ होती है.चूँकि लक्ष्मी को चंचल माना गया है इसलिये उसे स्थिर रखने के लिये स्थिर लग्न मे लक्ष्मी पूजन अति शुभ माना गया है.वैसे तो स्थिर लग्न चार है, वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुम्भ, परंतु दीपावली की रात्रि मे हमे दो लग्न ही मिलते है, पहला वृषभ तथा दूसरा सिंह लग्न.इसलिए इन दो लग्नौ मे ही पूजन को स्थिर लक्ष्मी के लिये शुभ माना जाता है. आमजन वृषभ लग्न मे ही पूजा कर पाते है क्योंकि ये लग्न रात्रि मे जल्दी आ जाता है, सिंह लग्न मध्य रात्रि मे आता है ,यदि इस समय स्वाति नक्षत्र भी हो तो इस समय विधि विधान से की गई लक्ष्मी पूजन शुभ परिणाम देती है.