भारत को विकसित राष्ट्र बनाएं युवा: राष्ट्रपति कोविंद
भोपाल : राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने युवा शक्ति का आव्हान किया है कि विकासशील भारत को विकसित राष्ट्र बनायें। उन्होंने कहा कि आज के युवा जिस मुकाम पर पहुँचे हैं, वहाँ तक उन्हें पहुँचाने में परिवार, समाज और राष्ट्र का योगदान है। इस योगदान का युवाओं पर ऋण है। युवा इस ऋण को नहीं भूलें। ऋण को उतारने के लिये युवा मानवता के हित में कार्य करें और विकसित समाज के निर्माता बनें। उन्होने कहा कि इतिहास के प्रवाह में वही विचारधारा पनपती है जो मानवता के हित में होती है। राष्ट्रपति ने युवाओं से मानवता की विचाराधारा के साथ देश के विकास में सहयोग करने की अपील की है।
राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद आज अमरकंटक स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय में द्वितीय दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे। समारोह में राज्यपाल श्री ओमप्रकाश कोहली, मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान, कुलाधिपति डॉ. एस.एम. झारवाल, कुलपति जनजातीय विश्वविद्यालय श्री टी.वी. कुट्टीमनी, राष्ट्रपति की धर्मपत्नि श्रीमती सविता कोविंद, मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी श्रीमती साधना सिंह चौहान, जिले के प्रभारी मंत्री श्री संजय पाठक और सांसद श्री ज्ञान सिंह उपस्थित थे। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने प्रतीक स्वरूप ग्यारह मेधावी विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक एवं उपाधियाँ प्रदान की। दीक्षांत समारोह में आज 1337 विद्यार्थियों को उपाधियाँ तथा 130 विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक वितरित किये गये।
राष्ट्रपति ने कहा कि किसी भी शिक्षण संस्थान की आधारशिला उसके शिक्षक और छात्र होते हैं। भारत उस महान परंपरा का साक्षी है, जहाँ चाणक्य जैसे शिक्षक ने चंद्रगुप्त जैसे एक शिष्य के माध्यम से भारत के इतिहास का एक महान अध्याय लिखा। आज फिर से हमारी सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक पहचान दिलाने हेतु गुरू और शिष्य के बीच उसी सामंजस्य को आगे बढ़ाना है। राष्ट्रपति ने कहा कि किसी विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह विश्वविद्यालय के उत्तीर्ण छात्रों के सम्मान का कार्यक्रम ही नहीं होता, बल्कि शिक्षित, अनुशासित और संकल्पित युवाओं का समाज और राष्ट्र निर्माण में समर्पित होने का अवसर होता है। दीक्षांत समारोह शिक्षा का समापन नहीं बल्कि एक जिम्मेदारी भरे जीवन का आरंभ है। राष्ट्रपति ने छात्र-छात्राओं से कहा कि अपनी प्रतिभा से सफलता की ऐसी छाप छोड़ें जिससे पूरे राष्ट्र के सामने विश्वविद्यालय एक मिसाल बने। उन्होंने कहा कि कोई भी लक्ष्य अपने-आप में न छोटा होता है न बड़ा, वह केवल एक लक्ष्य होता है, आप जो भी लक्ष्य तय करें उसे पाने के लिये पूरी एकाग्रता के साथ आगे बढ़ें। उन्होने कहा कि किसी भी लक्ष्य को पाने के लिये कितने समर्पण और एकाग्रता की आवश्यकता होती है, महान वैज्ञानिक आईंस्टीन के जीवन से सीखा जा सकता है। राष्ट्रपति ने वैज्ञानिक आईंस्टीन की कार्य के प्रति समर्पण एवं एकाग्रता के संस्मरण भी छात्र-छात्राओं को सुनाये।
राष्ट्रपति ने कहा कि अमरकंटक तीर्थ एवं नर्मदा नदी दोनों की निकटता इस विश्वविद्यालय के सुंदर वातारण को पवित्र बनाते हैं। यहाँ के वातावरण में एक दिव्य अनुभूति है। यहाँ ज्ञान और शांति है। इस क्षेत्र की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं अध्यात्मिकता दोनो का सामंजस्य यहाँ के जनजातीय विकास की कहानी प्रस्तुत करते हैं। उन्होने कहा कि ऐसा माना जाता है कि इस स्थल पर सिखों के प्रथम गुरू श्री गुरूनानक देव एवं संत कबीर के बीच आध्यामिक चर्चा हुई जो बाद में बानी के रूप में गुरूग्रंथ साहिब का हिस्सा भी बनी। ऐसी ज्ञान स्थली पर यह दीक्षांत समारोह एक विशेष महत्व रखता है। यह स्थल सम्पूर्ण मानव जगत के लिये ज्ञान, सच्चाई एवं मानवता का संदेश देता है। राष्ट्रपति ने कहा कि लगभग डेढ़ करोड़ से अधिक जनजातीय जनसंख्या वाले मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय की स्थापना होना निश्चय ही उपयोगी है। इसका उद्देश्य अधिक से अधिक जनजातीय युवाओं को ज्ञान-विज्ञान, टेक्नोलॉजी और कला, साहित्य के माध्यम से शिक्षा जगत में उत्कृष्ट अवसर देकर उन्हें आधुनिक भारत के निर्माण में सहभागी बनाना है।