भैरव अष्टमी विशेष
कहते है की अक्षर ब्रम्हा है. हर अक्षर अपनी परिभाषा खुद कहता है भगवान भैरव भक्तों के सभी प्रकार के भय का नाश करते है ,भैरव शब्द भय और रव से मिलकर बना है भय अर्थात डर तथा रव यानी दूर करना,जो मन से किसी भी प्रकार के भय को दूर करे वह भैरव है,11नवंबर शनिवार को भैरव अष्टमी पर्व है,कई जगह यह पर्व 10नवेंबर को भी मनाया जा रहा है यह दिन भगवान भैरव और उनके सभी रूपों के समर्पित होता है, भगवान भैरव को भगवान शिव का ही एक रूप माना जाता है,इनकी पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्व माना जाता है, भगवान भैरव को कई रूपों में पूजा जाता है. भगवान भैरव के मुख्य 8 रूप माने जाते हैं. उन रूपों की पूजा करने से भगवान अपने सभी भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें अलग-अलग फल प्रदान करते हैं.
*भगवान भैरव के 8 रूप तथा उनके विषय मॆ जानकारी*
*कपाल भैरव*
*इस रूप में भगवान का शरीर चमकीला है, उनकी सवारी हाथी है . कपाल भैरव एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे में तलवार तीसरे में शस्त्र और चौथे में पात्र पकड़े हैं. भैरव के इन रुप की पूजा अर्चना करने से कानूनी कारवाइयां बंद हो जाती है . अटके हुए कार्य पूरे होते हैं,व्यर्थ के कोर्ट कचहरी अस्पताल के चक्करों से छुटकारा मिलता है.
*क्रोध भैरव*
*क्रोध भैरव गहरे नीले रंग के शरीर वाले हैं और उनकी तीन आंखें हैं . भगवान के इस रुप का वाहन गरुण हैं और ये दक्षिण-पश्चिम दिशा के स्वामी माने जाते ह . क्रोध भैरव की पूजा-अर्चना करने से सभी परेशानियों और बुरे वक्त से लड़ने की क्षमता बढ़ती है,शनि,मंगल, राहु,केतु जैसे क्रूर ग्रहों के दुष्प्रभाव शांत होते है.
*असितांग भैरव*
*असितांग भैरव ने गले में सफेद कपालों की माला पहन रखी है और हाथ में भी एक कपाल धारण किए हैं . तीन आंखों वाले असितांग भैरव की सवारी हंस है, भगवान भैरव के इस रुप की पूजा-अर्चना करने से मनुष्य में कलात्मक क्षमताएं बढ़ती है.
*चंद भैरव*
*इस रुप में भगवान की तीन आंखें हैं और सवारी मोर है,चंद भैरव एक हाथ में तलवार और दूसरे में पात्र, तीसरे में तीर और चौथे हाथ में धनुष लिए हुए है. चंद भैरव की पूजा करने से शत्रुओं पर विजय मिलता हैं और हर बुरी परिस्थिति से लड़ने की क्षमता आती है,रोग बीमारी दूर होती है.
*रुरू भैरव*
*रुरु भैरव हाथ में कपाल, कुल्हाडी, और तलवार पकड़े हुए है .यह भगवान का नग्न रुप है और उनकी सवारी बैल है.गुरु भैरव के शरीर पर सांप लिपटा हुआ है.रुरु भैरव की पूजा करने से अच्छी विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है,प्रतियोगी परीक्षा मॆ सफलता प्राप्त करने के लिये इनकी पूजा करनी चाहिये.
*संहार भैरव*
*संहार भैरव नग्न रुप में है, और उनके सिर पर कपाल स्थापित है,इनकी तीन आंखें हैं और वाहन कुत्ता है . संहार भैरव की आठ भुजाएं हैं और शरीर पर सांप लिपटा हुआ है .इसकी पूजा करने से मनुष्य के सभी पाप खत्म हो जाते है .
*उन्मत भैरव*
*उन्मत भैरव शांत स्वभाव का प्रतीक है . इनकी पूजा-अर्चना करने से मनुष्य की सारी नकारात्मकता और बुराइयां खत्म हो जाती है . भैरव के इस रुप का स्वरूप भी शांत और सुखद है . उन्मत भैरव के शरीर का रंग हल्का पीला हैं और उनका वाहन घोड़ा हैं.
*भीषण भैरव*
*भीषण भैरव की पूजा-अर्चना करने से बुरी आत्माओं और भूतों से छुटकारा मिलता है . भीषण भैरव अपने एक हाथ में कमल, दूसरे में त्रिशूल, तीसरे हाथ में तलवार और चौथे में एक पात्र पकड़े हुए है .भीषण भैरव का वाहन शेर है,जिनके यहां किसी बुरी शक्ति या जादू टोने का प्रभाव है उन्हे कालभैरव के इस स्वरूप की पूजा करनी चाहिये.
*धर्म ग्रंथों के अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव अष्टमी का पर्व मनाया जाता है. मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने कालभैरव का अवतार लिया था. इसलिए इस पर्व को कालभैरव जयंती को रूप में मनाया जाता है.
*भगवान भैरव और तंत्र शास्त्र*- भगवान कालभैरव को तंत्र का देवता माना गया है. तंत्र शास्त्र के अनुसार,किसी भी सिद्धि के लिए भैरव की पूजा अनिवार्य है. इनकी कृपा के बिना तंत्र साधना अधूरी रहती है. इनके 52 रूप माने जाते हैं. इनकी कृपा प्राप्त करके भक्त निर्भय और सभी कष्टों से मुक्त हो जाते हैं. कालभैरव जयंती पर कुछ आसान उपाय कर आप भगवान कालभैरव को प्रसन्न करें.
* कालभैरव अष्टमी को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद कुश (एक प्रकार की घास) के आसन पर बैठ जाएं. सामने भगवान कालभैरव की तस्वीर स्थापित करें व पंचोपचार से विधिवत पूजा करें. इसके बाद रूद्राक्ष की माला से नीचे लिखे मंत्र की कम से कम पांच माला जाप करें तथा भैरव महाराज से सुख-संपत्ति के लिए प्रार्थना करें.
*मंत्र- ‘ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:’
* कालभैरव अष्टमी पर किसी ऐसे भैरव मंदिर में जाएं, जहां कम ही लोग जाते हों. वहां जाकर सिंदूर व तेल से भैरव प्रतिमा को चोला चढ़ाएं. इसके बाद नारियल, पुए, जलेबी आदि का भोग लगाएं. मन लगाकर पूजा करें. बाद में जलेबी आदि का प्रसाद बांट दें. याद रखिए अपूज्य भैरव की पूजा से भैरवनाथ विशेष प्रसन्न होते हैं.
* कालभैरव अष्टमी को भगवान कालभैरव की विधि-विधान से पूजा करें और नीचे लिखे किसी भी एक मंत्र का जाप करें. कम से कम 11 माला जाप अवश्य करें.*
ॐ कालभैरवाय नम:.
ॐ भयहरणं च भैरव:.
ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं.
– ॐ भ्रां कालभैरवाय फट्*
*कालभैरव अष्टमी की सुबह भगवान कालभैरव की उपासना करें और शाम के समय सरसों के तेल का दीपक लगाकर समस्याओं से मुक्ति के लिए प्रार्थना करें.
*कालभैरव अष्टमी पर 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से ॐ नम: शिवाय लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं. साथ ही, एकमुखी रुद्राक्ष भी अर्पण करें. इससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं.
*कालभैरव अष्टमी को एक रोटी लें. इस रोटी पर अपनी तर्जनी और मध्यमा अंगुली से तेल में डुबोकर लाइन खींचें. यह रोटी किसी भी दो रंग वाले कुत्ते को खाने को दीजिए. इस क्रम को जारी रखें, लेकिन सिर्फ हफ्ते के तीन दिन (रविवार, बुधवार व गुरुवार). यही तीन दिन भैरवनाथ के माने गए हैं.
*अगर आप कर्ज से परेशान हैं तो कालभैरव अष्टमी की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद भगवान शिव की पूजा करें. उन्हें बिल्व पत्र अर्पित करें. भगवान शिव के सामने आसन लगाकर रुद्राक्ष की माला लेकर इस मंत्र का जाप करें.
मंत्र- ॐ ऋणमुक्तेश्वराय नम:*
* कालभैरव अष्टमी के एक दिन पहले उड़द की दाल के पकौड़े सरसों के तेल में बनाएं और रात भर उन्हें ढंककर रखें. सुबह जल्दी उठकर सुबह 6 से 7 बजे के बीच बिना किसी से कुछ बोलें घर से निकलें और कुत्तों को खिला दें.*
*सवा किलो जलेबी भगवान भैरवनाथ को चढ़ाएं और बाद में गरीबों को प्रसाद के रूप में बांट दें. पांच नींबू भैरवजी को चढ़ाएं. किसी कोढ़ी, भिखारी को काला कंबल दान करें.
*कालभैरव अष्टमी पर सरसो के तेल में पापड़, पकौड़े, पुए जैसे पकवान तलें और गरीब बस्ती में जाकर बांट दें. घर के पास स्थित किसी भैरव मंदिर में गुलाब, चंदन और गुगल की खुशबूदार 33 अगरबत्ती जलाएं.
* सवा सौ ग्राम काले तिल, सवा सौ ग्राम काले उड़द, सवा 11 रुपए, सवा मीटर काले कपड़े में पोटली बनाकर भैरवनाथ के मंदिर में कालभैरव अष्टमी पर चढ़ाएं.*
* कालभैरव अष्टमी की सुबह स्नान आदि करने के बाद भगवान कालभैरव के मंदिर जाएं और इमरती का भोग लगाएं. बाद में यह इमरती दान कर दें. ऐसा करने से भगवान कालभैरव प्रसन्न होते हैं.*
*कालभैरव अष्टमी को समीप स्थित किसी शिव मंदिर में जाएं और भगवान शिव का जल से अभिषेक करें और उन्हें काले तिल अर्पण करें. इसके बाद मंदिर में कुछ देर बैठकर मन ही मन में ॐ नम: शिवाय मंत्र का जप करें.
(साभार : पल पल इंडिया )