बहुला चतुर्थी पर इसलिए होती है गाय-बछड़े की पूजा
बिलासपुर। देशभर में 11 अगस्त को बहुला चतुर्थी उत्साह के साथ मनाई जा रही है। इस मौके पर महिलाएं व्रत रखकर गणपति के साथ गाय-बछड़ा व शेर की प्रतिमा बनाकर उनका पूजन करती है। संत जलाराम मंदिर के पुजारी ब्रह्मदत्त मिश्र ने बताया कि भाद्रकृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर मनवांक्षित फल के लिए व्रत धारण कर विशेष पूजा करने का प्रावधान है।
इस व्रत में गाय का दूध, घी व नमक का उपयोग नहीं किया जाता है। मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान शिव ने शेर का रूप धारण कर गौमाता की परीक्षा ली थी। अपने बछड़े को दूध पिलाकर लौटने के वचन को पूरा कर गौमाता परीक्षा में खरी उतरी थीं।
लिहाजा इस दिन दोनों का पूजन होता है। वहीं माताएं संतान की खुशहाली के लिए यह व्रत रखती हैं। उन्होंने बताया कि इस व्रत की उतपत्ति नंद बाबा के गौ शाला में रहने वाली बहुला नामक गाय से मानी गई है।
भगवान श्रीकृष्ण को बहुला गया से विशेष लगाव था। उन्होंने उसकी परीक्षा लेने के लिए सिंह रूप में प्रगट होकर भक्षण करने के लिए झपटे, तब गाय ने अपने बछड़े का दूध पिलाकर आने की विनती की। उसकी बात सुनकर सिंह उसे जाने देता है।
वहीं बहुला गाय अपने बछड़े को दूध पिलाकर सिंह के पास पहुंच जाती है, जिसे देख भगवान प्रसन्ना हो जाते हैं और आशीर्वाद देते हैं कि हर भाद्रकृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणपति के साथ गाय व बछड़े की पूजा करने वालों की सभी मनोकामनाएं पूरी होगी। तभी से इस दिन को बहुला चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है।