दिल्ली से 4 गुना और न्यूयॉर्क से 7 गुना बड़ा हिमशैल अंटार्कटिका से टूटा

दिल्ली से 4 गुना और न्यूयॉर्क से 7 गुना बड़ा हिमशैल अंटार्कटिका से टूटा
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लंदन : वैज्ञानिकों ने आज कहा कि करीब एक खरब टन का हिमशैल (अब तक के दर्ज आंकड़ों में सबसे बड़ा) कई महीनों के पूर्वानुमान के बाद अंटार्कटिका से टूटकर अलग हो गया है और अब दक्षिणी ध्रुव के आसपास जहाजों के लिये गंभीर खतरा बन सकता है। इसके टूटने से अंटार्कटिक प्रायद्वीप का परिदृश्य हमेशा के लिये बदल गया है।

दिल्ली के आकार से 4 गुना बड़ा
लार्सन सी बर्फ की चट्टान से टूटकर अलग हुए हिमखंड का आकार 5 हजार 800 वर्ग किलोमीटर है, जो भारत की राजधानी दिल्ली के आकार से 4 गुना बड़ा है। गोवा के आकार से डेढ़ गुना बड़ा और अमेरिका के न्यू यॉर्क शहर से 7 गुना बड़ा है।

क्या होगा असर
अंटार्कटिका से हमेशा हिमशैल अलग होते रहते हैं लेकिन यह क्योंकि खास तौर पर बड़ा है ऐसे में महासागर में जाने के इसके रास्ते पर निगरानी की जरूरत है क्योंकि यह नौवहन यातायात के लिये मुश्किलें पैदा कर सकता है। वैज्ञानिकों की मानें तो इस हिमखंड के अलग हो जाने से वैश्विक समुद्री स्तर में 10 सेंटीमीटर की वृद्धि हो जाएगी।

सालों से पश्चिमी अंटार्कटिक हिम चट्टान में बढ़ती दरार को देख रहे शोधकतार्ओं ने कहा कि यह घटना 10 जुलाई से लेकर आज के बीच किसी समय हुई है। इस हिमशैल को ए68 नाम दिये जाने की संभावना है और यह एक खरब टन से ज्यादा वजनी है। इसका विस्तार सबसे बड़ी लहरों में से एक लेक इरी के विस्तार से दो गुना है।

लार्सेन ए और बी पहले ही ढह चुके हैं
वैज्ञानिकों के मुताबिक समुद्र स्तर पर इस हिमखंड के अलग होने से तत्काल असर नहीं आएगा लेकिन यह लार्सेन सी हिमचट्टान के फैलाव को 12 प्रतिशत तक कम कर देगा। लार्सेन ए और लार्सेन बी हिमचट्टान साल 1995 और 2002 में ही ढहकर खत्म हो चुके हैं।

टूटने की क्या है वजह?
वैज्ञानिकों ने इस हिमखंड के अलग होने के पीछे कार्बन उत्सर्जन को सबसे बड़ी वजह बताया है। उनके मुताबिक कार्बन उत्सर्जन से वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी हो रही है जिससे ग्लेशियर जल्दी पिघलते जा रहे हैं।

भारत पर क्या होगा असर?
समुद्री स्तर में बढ़ोतरी होने से अंडमान और निकोबार के कई टापू और बंगाल की खाड़ी में सुंदरबन के हिस्से डूब सकते हैं। हालांकि, अरब सागर की तरफ इसका असर कम होगा लेकिन यह लंबे समय में दिखेगा। भारत की 7 हजार 500 किलोमीट लंबी तटीय रेखा को इससे खतरा है।

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