रूसी लड़ाकू विमान सौदे के बाद निर्माण में फंसी शर्त की पेंच, भारत ने कहा – पहले दो तकनीक
नयी दिल्ली : रूस के साथ पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान सौदे के बाद अब उसके निर्माण में शर्तों की पेंच फंस गया है. इस विमान की खरीद के बाद इसके निर्माण कार्य शुरू होने के पहले ही शर्त रखते हुए रूस से मांग की गयी है कि पहले वह भारत को इस विमान की तकनीक हस्तांतरण पर अपनी सहमति जता दे, उसके बाद इसके निर्माण कार्य को शुरू करे. तकनीक की मांग करते हुए भारत ने कहा है कि रूस इस लड़ाकू विमान के संयुक्त विकास और इसके उत्पादन के काम की शुरुआत तभी करेगा, जब रूस उसे तकनकी पूरी तरह हस्तांतरित करने पर अपनी सहमति जता देगा. भारत का कहना है कि सुखोई विमान की तरह फिर से कोई गलती नहीं करेगा. सुखोई विमान सौदे में रूस के साथ तकनीक पूरी तरह हस्तांतरित नहीं था.
इस मामले में रक्षा मंत्रालय का मानना है कि लड़ाकू विमान की तकनीक हस्तातंरित होने के बाद हमें स्वदेशी विमान तैयार करने में मदद मिलेगी. सूत्रों का कहना है कि यह फैसला शीर्ष स्तर से लिया गया है, ताकि सुखोई-30एमकेआई जेट विमानों के सौदे में हुई गलती को दोहराया न जा सके. करीब 55,717 करोड़ रुपये की सुखोई सौदे में भारत की ओर से सबसे बड़ी चूक यह हुई थी कि वह रूस से पूर्ण तकनीकी हस्तांतरण नहीं कर पाया था. यदि ऐसा होता, तो भारत की घरेलू स्तर पर निर्माण क्षमता में इजाफा होता.
सूत्र ने बताया कि रूस के सहयोग से तैयार हो रहे 272 सुखोई विमानों में से अब तक 240 विमानों का निर्माण हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) कर चुकी है. हालांकि, एचएएल इन विमानों की सिर्फ असेंबलिंग कर रहा है और इसके सभी पार्ट्स रूस से ही आयात किये गये हैं. अब भी एचएएल अपने स्तर पर सुखोई का निर्माण नहीं कर सकती.
पांचवीं पीढ़ी के विमानों को तैयार करने को लेकर भारत ने अपनी दो बड़ी मांगें रखी हैं. भारत ने रूस से कहा है कि इस सौदे में तकनीक के पूर्ण हस्तांतरण पर सहमति होनी चाहिए, ताकि भविष्य में भारत अपने स्तर पर ही इन विमानों की तकनीक को अपग्रेड कर सके. इसके अलावा, रूस से पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों को तैयार करने के स्वदेशी परियोजना में रूस की मदद की भी मांग की गयी है.