कार्डिनल व बिशपों ने सीएनटी और एसपीटी एक्ट को लेकर की गवर्नर से मुलाकात
रांची: कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो सहित झारखंड के रोमन कैथोलिक चर्च के आदिवासी बिशपों ने शनिवार को राज्यपाल द्रौपदी मुरमू से राजभवन में जाकर मुलाकात की. सभी ने सीएनटी और एसपीटी एक्ट में सरकार की ओर से प्रस्तावित संशोधन को रोकने की मांग की. राज्यपाल को ज्ञापन भी सौंपा.
ज्ञापन में कहा गया है कि हम झारखंड के आदिवासी बिशप हाल ही में झारखंड सरकार द्वारा राज्य विधानसभा में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 (सीएनटी) और संताल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949 (एसपीटी) में पारित संशोधन से आहत हैं. ज्ञापन में कहा गया है कि सीएनटी, एसपीटी एक्ट में संशोधन से यहां के आदिवासी भूमि से बेदखल हो जायेंगे. वे भूमिहीन हो जायेंगे. बिशपों ने अपने ज्ञापन में राज्यपाल से आग्रह किया है कि वह इस संशोधन को कानूनी रूप देने से राेकें. इसके लिए आदिवासी कैथोलिक बिशप और झारखंड का आदिवासी समुदाय उनके आभारी रहेंगे.
राज्यपाल के पास है बिल
विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान 23 नवंबर को सीएनटी, एसपीटी में संशोधन का प्रस्ताव पारित हुआ था. इसके बाद सरकार ने 18 दिसंबर को इस बिल को मंजूरी के लिए राज्यपाल के पास भेजा था. करीब ढाई माह से बिल राज्यपाल के पास है. राज्यपाल की सहमति के बाद ही इसे केंद्रीय गृह मंत्रालय के माध्यम से राष्ट्रपति को भेजा जायेगा. राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद ही यह कानून का रूप ले पायेगा.
इन्होंने की मुलाकात : रांची के महाधर्माध्यक्ष कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो व कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो, कैथोलिक बिशप कांफ्रेंस ऑफ इंडिया (सीबीसीआइ) के आदिवासी मामलों के विभाग के अध्यक्ष सह सिमडेगा के धर्माध्यक्ष बिशप विंसेंट बरवा, जमशेदपुर के धर्माध्यक्ष बिशप फेलिक्स टोप्पो, गुमला के धर्माध्यक्ष बिशप पॉल लकड़ा, हजारीबाग के धर्माध्यक्ष बिशप आनंद जोजो और रांची के सहायक धर्माध्यक्ष बिशप तेलेस्फोर बिलुंग.
ज्ञापन में इनके भी हस्ताक्षर : दुमका के धर्माध्यक्ष बिशप जूलियस मरांडी, खूंटी के धर्माध्यक्ष बिशप विनय कंडुलना.
क्या है राज्यपाल के पास विकल्प
राज्यपाल सरकार के प्रस्ताव से संतुष्ट होने के बाद एक्ट में बिल को केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजेंगी, वहां से यह मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास जायेगा. राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही कानून का रूप ले लेगा
राज्यपाल सरकार के प्रस्ताव से संतुष्ट नहीं होती, तो इसे वापस कर सकती हैं. हालांकि सरकार की ओर से कैबिनेट के माध्यम से बिल दोबारा राज्यपाल को भेजा जाता है, तो राजभवन की संवैधानिक बाध्यता हो जायेगी
राज्यपाल विधेयक को कब तक अपने पास रख सकती हैं, इसकी कोई समय सीमा तय नहीं है