पीएम मोदी का उदास चेहरा, झिलमिलाती आंखें…आज का दिन बहुत भारी है

पीएम मोदी का उदास चेहरा, झिलमिलाती आंखें…आज का दिन बहुत भारी है
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नई दिल्ली
‘समय रहते रिफॉर्म की जरूरत है। सैन्य व्यवस्था में सुधार के लिए कई रिपोर्ट आई। हमारी तीनों सेना के बीच समन्वय तो है लेकिन आज जैसे दुनिया बदल रही है, आज जिस प्रकार से तकनीक आधारित व्यवस्था बन रही है, वैसे में भारत को भी टुकड़ों में नहीं सोचना होगा। तीनों सेनाओं को एक साथ आना होगा। विश्व में बदलते हुए युद्ध के स्वरूप और सुरक्षा के अनुरूप हमारी सेना हो। आज हमने निर्णय किया है कि चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की व्यवस्था करेंगे और सीडीएस तीनों सेनाओं के बीच समन्वय स्थापित करेगा।’….ये कुछ पंक्तियां आपको याद आ रही होंगी। 15 अगस्त, 2019 को स्वतंत्रता दिवस की 73वीं वर्षगांठ पर लाल किले की प्राचीर से ये भाषण दिया था।

पीएम मोदी ने की थी घोषणाभाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आर्मी, नेवी और एयरफ़ोर्स के बीच अच्छे समन्वय के लिए चीफ़ ऑफ डिफेंस स्टाफ पद बनाने की घोषणा की थी। इस बात का जिक्र करना आज क्यों जरुरी हो गया इसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण है। जिस किसी ने भी पीएम मोदी को उस वक्त से देखा होगा जब वो गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे तो उनकी पर्सनालिटी से वाकिफ होंगे। कितनी भी बड़ी मुसीबत में पीएम मोदी का चेहरा कभी उदास नहीं देखा।

पीएम मोदी का उदास चेहरापीएम मोदी के चेहरे में उदासी, उनकी डबडबातीं आंखें, कंपकपाते होंठ, थम कर चलते उनके कदम…इस बात के साक्षी हैं कि उन्होंने क्या खोया है। उनका चेहरा एक इबारत की तरह पढ़ा जा सकता है। ऐसा चेहरा पीएम मोदी का तब देखा था जब पुलवामा का हमला हुआ था और उन वीर सपूतों का पार्थिव शरीर पालम एयरबेस ही आए थे जहां आज दुबारा पीएम मोदी पहुंचे। पीएम के लिए ये पल बेहद नाजुक था। घर का पिता लाख तकलीफों के बाद भी आंखों पर आंसू नहीं आने देता। जानते हैं क्यों, इसलिए क्योंकि उसके पीछे उसका परिवार होता है जो उनके आंसुओं से कमजोर होता है। यही हाल पीएम का था। पीएम मोदी का परिवार ये पूरा देश है। वो इस देश के मुखिया है और अगर मुसीबत में मुखिया रो गया तो देश का क्या होगा।

ऐसा लग रहा था मुश्किल से रोक रहे थे आंसूबहुत मुश्किल होता है वो वक्त जब चाहकर भी आप रो नहीं पाते। एक शेर यहां पर याद आता है, युवा शायर हैं अब्बास कमर उनका बेहद मशहूर शेर है कि असीर-ए-ज़ब्त इजाज़त नहीं हमें , रो पा रहे हैं आप बधाई है रोइए। आज देश का मुखिया रोना चाहता था उसका चेहरा ऐसा था मानों असहनीय पीड़ा के बाद भी वो कराह नहीं पा रहे हैं। जनरल रावत पीएम मोदी के सबसे करीबी शख्सों में से थे। उनके हर छोटे बड़े फैसलों में हमेशा उनके साथ रहने वाले। देश के खिलाफ कितनी भी बड़ी मुसीबत हो जनरल रावत एक मिनट में पीएम मोदी को चिंता से मुक्त कर देते थे। पीएम मोदी को एक भरोसा था कि जनरल रावत हैं न कुछ नहीं होगा।

पीएम मोदी का संदेशअपने सेनापति के निधन से राजा टूट जाता है। लेकिन यहां पर टूटना नहीं था और मजबूती से मुकाबला करना था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे ही खबर सुनी कि अब जनरल रावत इस दुनिया में नहीं रहे तो उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘जनरल बिपिन रावत एक शानदार सैनिक थे। सच्चे देशभक्त, जिन्होंने सेना के आधुनिकीकरण में अहम भूमिका निभाई। सामरिक और रणनीतिक मामलों में उनकी दृष्टिकोण अतुलनीय था। उनके नहीं रहने से मैं बहुत दुखी हूं। भारत उनके योगदान को कभी नहीं भूलेगा।’

पीएम मोदी बहुत मानते थे सीडीएस रावत को31 दिसंबर, 2016 को जब जनरल बिपिन रावत को थल सेना की कमान सौंपी गई तभी पता चल गया था कि प्रधानमंत्री मोदी उन पर बहुत भरोसा करते हैं। जरनल रावत का थल सेना प्रमुख बनना कोई सामान्य प्रक्रिया नहीं थी। उन्हें सेना की कमान उनके दो सीनियर अधिकारियों की वरिष्ठता की उपेक्षा कर दी गई थी। अगर पारंपरिक प्रक्रिया से सेना प्रमुख बनाया जाता तो वरिष्ठता के आधार पर तब ईस्टर्न कमांड के प्रमुख जनरल प्रवीण बख्शी और दक्षिणी कमांड के प्रमुख पी मोहम्मदाली हारिज़ की बारी थी।

पीएम मोदी ने रावत को चुना था आर्मी चीफलेकिन मोदी सरकार ने वरिष्ठता की जगह इन दोनों के जूनियर जनरल रावत को पसंद किया। तब कई विशेषज्ञों ने कहा था कि जनरल रावत भारत की सुरक्षा से जुड़ी वर्तमान चुनौतियों से निपटने में सक्षम हैं। तब भारत के सामने तीन बड़ी चुनौतियां थीं, सीमा पार से आतंवाद पर लगाम लगाना, पश्चिमी छोर से छद्म युद्ध को रोकना और पूर्वोत्तर भारत में उग्रवादियों पर लगाम लगाना। तब जनरल रावत के बारे में कहा गया था कि पिछले तीन दशकों से टकराव वाले क्षेत्र में सेना के सफल ऑपरेशन चलाने का उनके पास सबसे उम्दा अनुभव है।

एक कुशल सैन्य अफसरजनरल रावत एक होनहार सैनिक थे। जनरल रावत एक कुशल सैन्य अधिकारी थे। जनरल रावत एक कुशल रणनीतिकार थे। उनके पास उग्रवाद और लाइन ऑफ कंट्रोल की चुनौतियों से निपटने का भी एक दशक का अनुभव था। पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद को काबू में करने और म्यांमार में विद्रोहियों के कैंपों को खत्म कराने में भी जनरल रावत की अहम भूमिका मानी जाती है। 1986 में जब चीन के साथ तनाव बढ़ा था, तब जनरल रावत सरहद पर एक बटालियन के कर्नल कमांडिंग थे।

फोटो और समाचार साभार : नवभारत टाइम्स

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