दाग चेहरे पर लेकिन साफ कर रहे आईना…नीति आयोग की गरीबी वाली लिस्ट पर हंगामा है क्यों बरपा
कोई देश गरीबी को आखिर क्यों मापता है? क्यों तमाम कसौटियों पर कसने के बाद राज्यों की श्रेणियां बनाता है? किस राज्य में कितनी गरीबी है, कितने गरीब हैं, आखिर क्यों पता करता है? इसका जवाब है- गरीबी मिटाने के लिए। नीतियां तय करने के लिए। यह जानने के लिए कि कहां क्या कमी है। आजादी के बाद से ही देश में गरीबी मिटाने की बातें होती रही हैं लेकिन गरीबी है कि मिटती नहीं। अब जब नीति आयोग ने पहली बार राज्यों के लिए ‘गरीबी सूचकांक’ की लिस्ट जारी की है यानी गरीबी के मामले में राज्यों को रैंकिंग दी है। बिहार, झारखंड, यूपी जैसे राज्य फिसड्डी साबित हुए हैं। लेकिन सच्चाई कबूल करने और सुधार की कोशिश के बजाय सियासत होने लगी है। कोई ठीकरा फोड़ने के लिए दूसरे का सिर तलाश रहा है तो कोई रैंकिंग पर ही सवाल खड़े कर रहा है। आइए समझते हैं नीति आयोग का ‘गरीबी सूचकांक’ कैसे सियासी आरोप-प्रत्यारोप का जरिया बन गया है।
नीति आयोग की पहली ‘गरीबी सूचकांक’ रिपोर्ट
नीति आयोग ने पहली बार Multidimensional Poverty Index यानी बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक देश में अगर सबसे ज्यादा कहीं गरीबी है तो वह बिहार है। यहां आधी से ज्यादा आबादी गरीब है। गरीबी के मामले में दूसरे नंबर पर झारखंड है। यूपी तीसरे पर है। चौथे नंबर पर मध्य प्रदेश और पांचवें पर मेघालय है। बिहार, झारखंड और यूपी के सबसे गरीब राज्यों के तौर पर सामने आने के बाद इन राज्यों में राजनीति गरमा गई है। खासकर बिहार और झारखंड में इस रैंकिंग पर सियासी कोहराम मचा है।
सवालों पर कन्नी काट गए नीतीश
बिहार सरकार विकास के बड़े-बड़े दावे करती रही है। सीएम नीतीश कुमार की छवि ‘विकास पुरुष’ के तौर स्थापित करने की कोशिश करती रही है। लेकिन MPI रिपोर्ट ने विकास के बड़े-बड़े दावों की हवा निकाल दी है। ‘विकास पुरुष’ की छवि को तार-तार कर दी है। शुक्रवार को जब नीतीश कुमार से नीति आयोग की ‘गरीबी सूचकांक’ रिपोर्ट के बारे में पत्रकारों ने पूछा तो उनसे कुछ कहते नहीं बना। उन्होंने यह कहते हुए कन्नी काट ली कि आप किस रिपोर्ट की बात कर रहे हैं? मैंने अभी वह रिपोर्ट नहीं देखी है।
शहरों की रैंकिंग पर नीतीश के मंत्री ने नीति आयोग पर ही खड़े कर दिए सवाल
हकीकत कबूल करने और उसी के हिसाब से जरूरी सुधार करने की जगह नीतीश सरकार बहानेबाजी में जुटी है। MPI रिपोर्ट से पहले नीति आयोग ने ही विकास के मामले में देशभर के 56 शहरों की रैंकिंग जारी की थी। राज्य की राजधानी पटना ‘सतत विकास लक्ष्य शहरी भारत सूचकांक’ (SDG Urban Index) में देश के 56 शहरों की लिस्ट में 52वें पायदान पर है। नीतीश सरकार के मंत्री विजय कुमार चौधरी ने नीति आयोग की रिपोर्ट पर ही सवाल उठा दिया। विकास मापने के पैमाने को ही गलत ठहरा दिया और नीति आयोग को ‘संतुलित पैमाना’ बनाने की नसीहत देने लगे।
‘नीतीश कुमार को चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए’
गरीबी में बिहार के टॉप राज्य बनने पर नीतीश कुमार के चिर-प्रतिद्वंद्वी लालू प्रसाद यादव को उन पर हमले का बड़ा मौका मिल गया। राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख ने कहा, ‘नीतीश कुमार को चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए।’
बिहार की दुर्गति दिखाती रिपोर्ट
बिहार की दुर्गति का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि वहां की करीब 52 फीसदी आबादी (51.91%) गरीब है यानी आधी आबादी से ज्यादा। रिपोर्ट बताती है कि देश में सबसे ज्यादा कुपोषित लोग अगर कहीं हैं तो बिहार में। उसके बाद झारखंड, एमपी, यूपी और छत्तीसगढ़ का नंबर आता है। गर्भवती महिलाओं की खराब सेहत के मामले में भी बिहार ही टॉप पर। अगर किसी राज्य में सबसे ज्यादा बच्चे स्कूली शिक्षा से वंचित हैं तो वह बिहार है। देश के किसी राज्य में अगर सबसे ज्यादा आबादी खाना पकाने के ईंधन से वंचित है तो वह भी बिहार है। यहां सबसे ज्यादा आबादी बिजली से वंचित है।
यूपी में सबसे ज्यादा बाल मृत्यु दर
झारखंड में 42.16 तो यूपी में 37.79 प्रतिशत जनसंख्या गरीब है। मध्य प्रदेश में 36.65 प्रतिशत और मेघालय में 32.67 फीसदी आबादी गरीब है। देश में सबसे ज्यादा प्रतिशत आबादी अगर स्वच्छता सुविधाओं से वंचित है तो वह राज्य भी झारखंड ही है। बाल मृत्यु दर के मामले में उत्तर प्रदेश की स्थिति पूरे देश में सबसे खराब है। इस मामले में दूसरे नंबर पर बिहार और तीसरे पर मध्य प्रदेश है। दूसरी तरफ, सबसे कम गरीब केरल में हैं जहां महज 0.71 प्रतिशत जनसंख्या गरीब है। उसके अलावा गोवा (3.76 प्रतिशत), सिक्किम (3.82 प्रतिशत), तमिलनाडु (4.89 प्रतिशत) और पंजाब (5.59 प्रतिशत) पूरे देश में सबसे कम गरीब लोग वाले राज्य हैं।
झारखंड में एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ने में मशगूल सरकार और विपक्ष
झारखंड की बुरी स्थिति के लिए राज्य सरकार और विपक्ष एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। झारखंड बीजेपी चीफ दीपक प्रकाश ने MPI रिपोर्ट को लेकर हेमंत सोरेन सरकार पर हमला बोला है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार सिर्फ अधिकारियों का तबादला कर पैसे उगाहने में बिजी है। सोरेन सरकार केंद्र सरकार की योजनाओं को लागू करने में नाकाम है। दूसरी तरफ, सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा राज्य के खराब प्रदर्शन का ठीकरा पूर्ववर्ती बीजेपी सरकारों पर फोड़ रही है। झामुमो प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने बीजेपी को जवाबदेह ठहराते हुए पूछा कि सूबे में सबसे ज्यादा वक्त तक बीजेपी ही सत्ता में रही लिहाजा जवाब तो उसे देना चाहिए कि गरीबी का यह आलम क्यों है।
12 पैमानों के आधार पर नीति आयोग ने तय की रैंकिंग
बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) में मुख्य रूप से परिवार की आर्थिक और अभाव की स्थिति को आंका जाता है। भारत के एमपीआई में तीन समान आयामों- स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर का मूल्यांकन किया जाता है। इसका आकलन पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, प्रसवपूर्व देखभाल, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, खाना पकाने के ईंधन, स्वच्छता, पीने के पानी, बिजली, आवास, संपत्ति और बैंक खाते जैसे 12 संकेतकों के जरिए किया जाता है।
फोटो और समाचार साभार : नवभारत टाइम्स