'यादव लैंड' की जुगत में खिलाड़ी, लाडलों के लिए बहा रहे पसीने, लालू-मुलायम में कितनी जान बाकी?
लखनऊ/पटनाबिहार और उत्तर प्रदेश के दो सबसे मजबूत सियासी परिवार (लालू यादव और मुलायम यादव) सत्ता की लड़ाई में पिछड़ गया है। जिन्होंने विरासत को खड़ा किया, वो एक बार फिर बुढ़ापे में पटना और लखनऊ में गोटियां सेट कर रहे हैं ताकि उनके लाडले की ताजपोशी हो सके।
जब विरासत की ‘आग’ मद्धिम पड़ने लगती है तो लौ तेज करने के लिए अनुभव की जरूरत पड़ती है। यही वो चीज है जो शतरंज के मोहरों को फिट करने में काम आती है। उत्तर प्रदेश पर एकछत्र राज करनेवाले मुलायम सिंह यादव और बिहार को ‘लालू लैंड’ बताने वाले आरजेडी सुप्रीमो आजकल इसी रोल में हैं।
लखनऊ/पटना
बिहार और उत्तर प्रदेश के दो सबसे मजबूत सियासी परिवार (लालू यादव और मुलायम यादव) सत्ता की लड़ाई में पिछड़ गया है। जिन्होंने विरासत को खड़ा किया, वो एक बार फिर बुढ़ापे में पटना और लखनऊ में गोटियां सेट कर रहे हैं ताकि उनके लाडले की ताजपोशी हो सके।
…ताकि पूरी हो सके लाडलों की ख्वाहिश
लालू यादव जब जेल से छूटे तो दिल्ली में मुलायम सिंह यादव से उनकी मुलाकात हुई थी। दोनों आपस में रिश्तेदार भी हैं तो कुशल-छेम कोई बड़ी बात नहीं है। मगर इसके साथ-साथ दोनों देश के दो बड़े राज्यों के बड़े नेता भी हैं। दोनों अपने प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। दोनों की अपनी पार्टी है, जिसके वो सुप्रीमो कहे जाते हैं। मुलायम ने अपने बेटे अखिलेश यादव को सियासी सत्ता सौंप दी। एक टर्म वो मुख्यमंत्री भी रहे। दूसरी बार मुंह की खानी पड़ी। एक बार फिर जोर-आजमाइश कर रहे हैं, मगर ‘कुर्सी’ दूर दिख रही है। उधर, लंबे समय बाद लालू यादव की पार्टी नीतीश कुमार के साथ सत्ता में लौटी। मगर इसका सुख ज्यादा दिनों तक नहीं भोग सके। दोबारा मौका मिला तो चूक गए। इस बात का मलाल लालू को रह गया कि बेटे को ‘राजा’ नहीं बना सके। जबकि मुलायम सिंह की ख्वाहिश है कि किसी तरह इस बार उनका ‘लाल’ लखनऊ की ‘ताज’ संभाल ले।
बेटे के लिए फिल्डिंग में जुटे मुलायम सिंह यादव
उत्तर प्रदेश में चुनावी आहट आने के साथ ही मुलायम सिंह यादव लाइम लाइट में आ गए। परिवार के बाकी सदस्य भी ऐक्टिव मोड में हैं। सभी को लगता है कि आपसी मनमुटाव अपनी जगह है, मगर बिन सत्ता सब सून है। ऐसे में अलग-अलग लड़ने से अच्छा है कि नेताजी (मुलायम सिंह यादव) के नाम पर सब एकजुट हों और अखिलेश को ‘कुर्सी’ तक पहुंचाने में मदद करें। इसके लिए जरूरी है कि मुलायम सिंह यादव की तस्वीरें मीडिया में जाती रहे। ऐक्टिविटी का कवरेज होता रहे। मुलायम सिंह यादव ने अपने 83वें जन्मदिन पर कहा कि ‘उनको खुशी तभी मिलेगी, जब गरीब से गरीब जनता का जन्मदिन मनाया जाए। मुझे बुलाइए तो मैं खुद आऊंगा। आपको विश्वास दिलाता हूं जो आशा आप हमसे करते हो उसे पूरा करके दिखाऊंगा। हमारे नौजवान (अखिलेश यादव) में जोश है, वही आगे ले जाएगा। जिस विश्वास के साथ सम्मान कर रहे हैं मेरा, हम उसे पूरा करेंगे। मतलब मुलायम सिंह यादव अपने बेटे के लिए फिल्डिंग करने में जुटे हैं।
राजा भैया और मुलायम सिंह यादव की हुई मुलाकात
83 साल के मुलायम सिंह यादव लखनऊ में वो तमाम काम कर रहे हैं जो एक सीरियस राजनेता करता है। वो कैमरे पर खुद को बिल्कुल फिट दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ नेताओं से मिलजुल रहे हैं। मुलायम सिंह यादव वैसे लोगों को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं, जो उनके बेटे अखिलेश यादव से किसी न किसी वजह से नाराज हैं। उनमें एक बड़ा नाम है राजा भैया का। जनसत्ता दल लोकतांत्रिक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व कैबिनेट मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने मुलायम सिंह यादव से मुलाकात की। चुनाव से पहले मुलाकात के मायने भी निकाले जा रहे हैं। यूपी के एक खास तबके में राजा भैया की ठीकठाक पहुंच मानी जाती है। कई सीटों पर उनके एक इशारे से जीत और हार प्रभावित होती है। राजा भैया को अपनी अहमियत मालूम है और उस हिसाब से खुद को इस्तेमाल करने की इजाजत भी देते हैं। राजा भैया का मूड भांपने की कोशिश मुलायम सिंह यादव कर रहे हैं।
कवि कुमार विश्वास पर भी मुलायम सिंह यादव की नजर
मुलायम सिंह यादव कितना ऐक्टिव हैं, इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने कवि कुमार विश्वास को समाजवादी पार्टी में शामिल होने का न्यौता दे दिया। लखनऊ में इंदिरा प्रतिष्ठान में रामगोपाल यादव की किताब ‘राजनीति के उस पार’ का विमोचन समारोह था। इस कार्यक्रम में कुमार विश्वास मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद थे। मुलायम सिंह के साथ बैठे कवि उदय प्रताप सिंह ने कहा कि ‘कुमार विश्वास एक बड़े कवि हैं। नेताजी (मुलायम यादव) मेरे कानों में कह रहे थे कि अगर वो किसी पार्टी में नहीं हैं, तो आप उन्हें समाजवादी पार्टी में क्यों नहीं लेते?’ इसके बाद कुमार विश्वास मुस्कुराने लगे और अखिलेश यादव का चेहरा भी खिल गया। हालांकि कुमार विश्वास ने नेताजी के ऑफर को कोई भाव नहीं दिया।
सेटिंग-गेटिंग नहीं, अब रिजल्ट वाले वोटर
उधर, बिहार उपचुनाव में जब तेजस्वी यादव को लगा कि उनका जादू नहीं चल पा रहा तो उन्होंने तुरुप के पत्ते की तरह पिता का इस्तेमाल किया। करीब छह साल बाद किसी चुनावी कैंपेन में बीमार लालू यादव को उतार दिया। आरजेडी सुप्रीमो दिल्ली से निकलते ही पूरी तरह फॉर्म में दिखे। एक से बढ़कर एक ‘टॉप क्लास’ के पॉलिटिकल बयान दिए। ताकि उनके वोटर एकजुट हो जाएं। रिजल्ट आते-आते नतीजों में पिछड़ गए। दरअसल पिछले 10-15 साल में एक ऐसा वोटर क्लास तैयार हो गया है, जो ग्राउंड रिजल्ट पर वोट देने का फैसला करता है। उसको न तो किसी जाति से मतलब है और ना ही किसी पार्टी से। उसे सिर्फ और सिर्फ परिणाम चाहिए। हालांकि अब तक वैसे लोगों की तादाद बहुत कम है लेकिन हार-जीत को तो प्रभावित कर ही सकता है। लालू और मुलायम को फीडबैक देनेवाले लोगों में स्कील्ड लोगों की कमी दिखती है। आज भी वो सेटिंग-गेटिंग में लगे रहते हैं। इसका नतीजा ये होता है कि जीतते-जीतते, जीत हाथ से फिसल जाती है।
बेटे की ‘करियर स्टेयरिंग’ पर लालू का हाथ!
उपचुनाव में बेटे को जीत दिलाने के लिए करीब साढ़े चार साल बाद लालू यादव बिहार लौटे। जीत नहीं मिली। फिर चारा घोटाले में पेशी के लिए पटना आए। इस बार लालू यादव कुछ ज्यादा चहलकदमी करते दिख रहे हैं। लोगों से मिल-जुल भी रहे हैं। बुधवार को तो सालों बाद लालू यादव ने अपनी पहली गाड़ी (जीप) पर हाथ फेरा। राबड़ी आवास के आसपास उसे ड्राइव किया। इसके बाद पार्टी ऑफिस गए। वहां पर छह टन के लालटेन (चुनाव चिन्ह) का अनावरण किया। इसके बाद कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। दरअसल, आरजेडी की पहचान ही लालू यादव से है। अपने नेता को देखकर कार्यकर्ता जोश में आ जाते हैं। लालू के नाम पर सब भूल जाते हैं। एक और खास बात है कि अगर कोई कार्यकर्ता लालू यादव से मिलना चाहे तो थोड़ी मशक्कत के बाद मिल सकता है। मगर ‘गोल्डन स्पून’ लेकर पैदा होनेवाले तथाकथित नेताओं के साथ वैसी बात नहीं है। पिता की फोटो लगाकर कितने दिनों राजनीति चलेगी या फिर नहीं चलेगी, कहना मुश्किल है।
बेटों के लिए बुढ़ापे में भी जी-जान से जुटे ‘खिलाड़ी’
दरअसल, बिहार और यूपी के दोनों यादव परिवारों की पहचान ही राजनीति से है। ये खुद को अपनी जाति का सबसे बड़ा नेता मानते हैं। दोनों एक-दूसरे की मदद भी करते हैं। जैसे अपनी रोजी-रोटी के लिए कोई नौकरी करता है, कोई दुकान खोलता है तो कोई रोहड़ी-ठेला लगाता है। ठीक उसी तरह राजनीति ही इनकी रोजी-रोजगार है। उसी से इनकी पहचान है। मगर राजनीति का असली सुख तब भोग पाते हैं, जब सत्ता मिलती है। अब हालात ऐसे बन गए हैं कि बिहार-यूपी में सबसे ज्यादा धाक रखने वाले दोनों सियासी परिवार के वारिस कुर्सी की लड़ाई में अपने प्रतिद्वंद्वियों से पिछड़ते दिख रहे हैं। लाडलों को नींद उड़ी हुई है। बेटों को चैन मिले इसके लिए पिता बुढ़ापे में पसीने बहा रहे हैं। तमाम बीमारियों को पीछे छोड़ते हुए लालू यादव जीप का एक्सक्लेटर दबा रहे हैं तो बुजुर्गियत वाली परेशानियों को दरकिनार कर मुलायम सिंह यादव खुद को फिट दिखाने की कोशिश में जुटे हैं। पार्टी ऑफिस से लेकर सेटिंग-गेटिंग तक में खुद को व्यस्त कर रखा है।
फोटो और समाचार साभार : नवभारत टाइम्स