फीस नहीं देने वाले दलित स्टूडेंट के मामले में सुप्रीम कोर्ट जज ने किया असीम शक्ति का इस्तेमाल, जानिए संविधान का अनुच्छेद 142

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नई दिल्ली
आईआईटी मुम्बई में एक दलित स्टूडेंट को दाखिल करने का सुप्रीम आदेश हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपनी असीम शक्ति का प्रयोग करते हुए एक छात्र के भविष्य को उजड़ने से बचाया। कोर्ट ने एक छात्र की मजबूरी हालत को समझा और धारा 142 का प्रयोग किया। संविधान की इस धारा का प्रयोग बहुत ही रेअर परिस्थियों में किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने एक नजीर पेश करते हुए एक छात्र को राहत प्रदान की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप इस बच्चे का भविष्य अधर में नहीं छोड़ सकते। इसका कुछ निष्कर्ष। आइये जानते हैं अनुच्छेद 142 के बारे में। कब और कहां इसका इस्तेमाल किया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने किया अधिकार का इस्तेमाल आईआईटी मुंबई का छात्र तकनीकी कारण से छात्र समय पर फीस नहीं भर पाया था सुप्रीम कोर्ट ने अपने असीम अधिकार का इस्तेमाल किया और कहा कि इस मामले में मानवीय अप्रोच अपनाया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई समय पर फीस नहीं दिया तो जाहिर है वित्तीय संकट रहा होगा। जस्टिस डीआई चंद्रचूड़ ने अपने आसिम शक्ति का इस्तेमाल कर उक्त स्टूडेंट के लिए सीट देने और दाखिला देने का ऑर्डर किया है। कोर्ट ने कहा 48 घण्टे में ऑर्डर का पालन करें।

सुप्रीम कोर्ट पहले भी कर चुका है इसका इस्तेमालसुप्रीम कोर्ट कोई भी आदेश पारित करता है तो वो संविधान में मौजूद धाराओं के दायरे में रहता है। सुप्रीम कोर्ट भी संविधान से ऊपर कोई भी फैसला नहीं देता। संविधान में मौजूद अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल कई बड़े फैसलों के दौरान किया गया है। अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करते हुए कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े को मंदिर निर्माण ट्रस्ट में शामिल करने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में भी बाबरी विध्वंस केस को लखनऊ ट्रांसफर करने के लिए अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल किया था। सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 का उपयोग करते हुए मणिपुर के एक मंत्री को राज्य मंत्रिमंडल से हटा दिया था। इस अनुच्छेद के तहत कोर्ट का आदेश तब तक लागू रहता है, जब तक कि कोई और कानून न बना दिया जाए।

आर्टिकल 142 क्या कहता है?आसान भाषा में अनुच्छेद 142 को आप सुप्रीम कोर्ट का वीटो पावर समझ लीजिए। सुप्रीम कोर्ट बहुत ही रेअर परिस्थिति में इसका प्रयोग करती है। इसको लागू किए जाने के बाद जब तक किसी अन्य कानून को लागू नहीं किया जाता तब तक सर्वोच्च न्यायालय का आदेश सर्वोपरि होगा। अपने न्यायिक निर्णय देते समय न्यायालय ऐसे निर्णय दे सकता है जो इसके समक्ष लंबित पड़े किसी भी मामले को पूर्ण करने के लिये आवश्यक हों और इसके द्वारा दिये गए आदेश संपूर्ण भारत संघ में तब तक लागू होंगे जब तक इससे संबंधित किसी अन्य प्रावधान को लागू नहीं कर दिया जाता है।

किसी भी मामले को पूरा करने के लिए इसका इस्तेमालअनुच्छेद 142 के तहत अदालत फैसले में ऐसे निर्देश शामिल कर सकती है, जो उसके सामने चल रहे किसी मामले को पूरा करने के लिये जरूरी हों। साथ ही कोर्ट किसी व्यक्ति की मौजूदगी और किसी दस्तावेज की जांच के लिए आदेश दे सकता है। कोर्ट अवमानना और सजा को सुनिश्चित करने के लिए जरूरी कदम उठाने का निर्देश भी दे सकता है। इस छात्र के मामले में भी ऐसा ही हुआ। अदालत ने अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए आदेश दिया कि छात्र का एडमिशन दिया जाए।

एससी कोटे में 864 वां रैंक सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्टूडेंट ने जेईई मेन्स एग्जाम में मई 2021 में बैठा और पास हुआ। फिर 3 अक्टूबर को आईआईटी जेईई एडवांस 2021 में वह बैठा और एससी कोटे में 864 वां रैंक पाया। 29 अक्टूबर को जेओएसएए पोर्टल में दस्तावेज और फीस के लिए लॉग इन किया। दस्तावेज अपलोड कर दिया लेकिन उसकी फीस स्वीकार्य नहीं हुई क्योंकि वह तय रकम से कम था। अगले दिन उसने अपनी बहन से उधार लिया और फिर फीस देने के लिए 10 से 12 बार 30 अक्टूबर को अटेंप्ट किया लेकिन फीस स्वीकार्य नहीं हुआ।

फीस नहीं दे पाया था छात्र 31 अक्टूबर को साइबर कैफे से उसने फीस देने के लिए ट्राई किया लेकिन सफल नहीं हुआ। इसके बाद वह खड़गपुर आईआईटी गया लेकिन वहां अधिकारियों ने फीस स्वीकार करने में असमर्थता जाहिर की। मामला बॉम्बे हाई कोर्ट गया लेकिन हाई कोर्ट से राहत नहीं मिलने के बाद उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दलित स्टूडेंट तकनीकी गड़बड़ी के कारण दाखिला प्रक्रिया पूरी नहीं कर पाया और अगर उसे मौजूदा एकेडमिक सेशन में शामिल नहीं किया गया तो वह अगली बार प्रवेश परीक्षा में नहीं बैठ पाएगा क्योंकि वह दो लगातार प्रयास पूरा कर लिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने किया इस्तेमालसुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जब अथॉरिटी ने कहा कि सीटें भर चुकी है और याची स्टूडेंट को दाखिला किसी अन्य स्टूडेंट के बदले देने प ड़ेंगे। इस पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि विकल्प खोजे जाने का सवाल नहीं है। आपको हम मौका दे रहे हैं नहीं तो हम 142 के तहत अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करेंगे। आप इस स्टूडेंट को बीच अधर में नहीं रहने दे सकते हैं। जब अथॉरिटी से निर्देश लेकर उनके वकील ने कहा कि सीटें भर चुकी है तब सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद-142 का इस्तेमाल किया और स्टूडेंट को दाखिला देने को कहा।

फोटो और समाचार साभार : नवभारत टाइम्स

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