डेटा सुरक्षा: जांच एजेंसियां कानून के दायरे से बाहर, संसदीय समिति की रिपोर्ट स्वीकार
करीब दो साल तक चली लंबी चर्चा के बाद निजी डेटा सुरक्षा विधेयक से संबंधित संसद की संयुक्त समिति की रिपोर्ट को सोमवार को स्वीकार कर लिया गया। इसमें उस प्रावधान को बरकरार रखा गया है, जो सरकार को अपनी जांच एजेंसियों को इस प्रस्तावित कानून के दायरे से मुक्त रखने का अधिकार देता है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश समेत कई विपक्षी नेताओं ने इस प्रावधान और कुछ अन्य बिंदुओं को लेकर अपनी ओर से असहमति का नोट भी दिया।
लोगों के निजी डेटा की सुरक्षा और डेटा सुरक्षा प्राधिकरण की स्थापना के मकसद से यह विधेयक 2019 में लाया गया था। इसके बाद इस विधेयक को छानबीन और आवश्यक सुझावों के लिए इस समिति के पास भेजा गया था।
कांग्रेस, TMC, बीजेडी विरोध में
कांग्रेस के चार सांसदों, तृणमूल कांग्रेस के दो और बीजू जनता दल (बीजद) के एक सांसद ने समिति की कुछ सिफारिशों को लेकर अपनी असहमति जताई। निजी डेटा सुरक्षा विधेयक के मुताबिक, केंद्र सरकार राष्ट्रीय हित की सुरक्षा, राज्य की सुरक्षा, लोक व्यवस्था और देश की संप्रभुता एवं अखंडता की रक्षा के लिए अपनी एजेंसियों को इस प्रस्तावित कानून के प्रावधानों से छूट दे सकती है।
एजेंसियों को छूट देने का विरोध
विपक्षी सदस्यों की ओर से मुख्य रूप से इसको लेकर विरोध जताया गया कि केंद्र सरकार को अपनी एजेंसियों को कानून के दायरे से छूट देने के लिए बेहिसाब ताकत दी जा रही है। कुछ विपक्षी सदस्यों ने सुझाव दिया था कि सरकार को अपनी एजेंसियों को छूट देने के लिए संसदीय मंजूरी लेनी चाहिए ताकि व्यापक जवाबदेही हो सके, हालांकि इस सुझाव को स्वीकार नहीं किया गया।
माना जा रहा है कि यह विधेयक 29 नवंबर से आरंभ हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान सरकार और विपक्ष के बीच गतिरोध का नया जरिया हो सकता है। सूत्रों के मुताबिक, संसद की संयुक्त समिति ने इस विधेयक को लेकर कुल 93 अनुशंसाएं की हैं और सरकार के कामकाज और लोगों की निजता की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने का प्रयास हुआ है।
समिति का तर्क भी समझिए
समिति के प्रमुख पीपी चौधरी ने कहा कि सरकार और उसकी एजेंसियों की डेटा को लेकर प्रक्रिया आगे बढ़ाने से उसी स्थिति में छूट दी गई है, जब इसका उपयोग लोगों के फायदे के लिए हो। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े विषयों पर किसी तरह की अनुमति की जरूरत नहीं होगी।
उन्होंने कहा, ‘सदस्यों और दूसरे संबंधित पक्षों के साथ गहन विचार-विमर्श के बाद यह रिपोर्ट आई है। मैं सहयोग के लिए सभी सदस्यों का आभार प्रकट करता हूं। इस प्रस्तावित कानून का वैश्विक असर होगा और डेटा सुरक्षा को लेकर अंतरराष्ट्रीय मानक भी तय होंगे।’
जयराम रमेश का असहमति का नोट
राज्यसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक जयराम रमेश ने कहा कि उन्हें असहमति का यह विस्तृत नोट देना पड़ा, क्योंकि उनके सुझावों को स्वीकार नहीं किया गया और वह समिति के सदस्यों को मना नहीं सके। तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओब्रायन और महुआ मोइत्रा ने भी असहमति का नोट दिया। कांग्रेस के अन्य सदस्यों, मनीष तिवारी, गौरव गोगोई और विवेक तन्खा तथा बीजद सांसद अमर पटनायक ने भी असहमति का नोट दिया।
समिति की रिपोर्ट में विलंब इसलिए हुआ कि इसकी पूर्व अध्यक्ष मीनाक्षी लेखी को कुछ महीने पहले केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया था। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी के सांसद पी. पी. चौधरी को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया। पूर्व केंद्रीय मंत्री रमेश ने चौधरी की अध्यक्षता में पिछले चार महीनों में हुए समिति के कामकाज की सराहना की।
समिति में शामिल तृणमूल कांग्रेस के सदस्यों ने भी असहमति का नोट सौंपा और कहा कि यह विधेयक स्वभाव से ही नुकसान पहुंचाने वाला है। उन्होंने समिति के कामकाज को लेकर भी सवाल किया। सूत्रों के मुताबिक, ओब्रायन और महुआ ने असहमति के नोट में आरोप लगाया कि यह समिति अपनी जिम्मेदारी से विमुख हो गई और संबंधित पक्षों को विचार-विमर्श के लिए पर्याप्त समय एवं अवसर नहीं दिया गया।
उन्होंने यह भी कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान समिति की कई बैठकें हुईं, जिनमें दिल्ली से बाहर होने के कारण कई सदस्यों के लिए शामिल होना बहुत मुश्किल था। सूत्रों के अनुसार, इन सांसदों ने विधेयक का यह कहते हुए विरोध किया कि इसमें निजता के अधिकार की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उचित उपाय नहीं किए गए हैं।
राज्यसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक रमेश ने असहमति के नोट में यह भी सुझाव दिया कि विधेयक की सबसे महत्वपूर्ण धारा 35 तथा धारा 12 में संशोधन किया जाए। उन्होंने कहा कि धारा 35 केंद्र सरकार को असीम शक्तियां देती है कि वह किसी भी सरकारी एजेंसी को इस प्रस्तावित कानून के दायरे से बाहर रख दे।
रमेश ने कहा कि समिति की रिपोर्ट में निजी क्षेत्र की कंपनियों को नयी डेटा सुरक्षा व्यवस्था के दायरे में आने के लिए दो साल का समय देने का सुझाव दिया है, जबकि सरकारों या उनकी एजेंसियों के लिए ऐसा नहीं किया गया है।
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने समिति के कामकाज को लेकर इसके प्रमुख चौधरी का धन्यवाद किया और कहा कि वह इस प्रस्तावित कानून के बुनियादी स्वरूप से असहमत हैं और ऐसे में उन्होंने असहमति का विस्तृत नोट सौंपा है।
उन्होंने यह दावा भी किया कि यह प्रस्तावित अधिनियम, कानून की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाएगा। लोकसभा में कांग्रेस के उप नेता गौरव गोगोई ने विधेयक को लेकर कहा कि जासूसी और इससे जुड़े अत्याधुनिक ढांचा स्थापित किए जाने के प्रयास के कारण पैदा हुई चिंताओं पर पूरी तरह ध्यान नहीं दिया गया है।
फोटो और समाचार साभार : नवभारत टाइम्स